Sunday 24 March 2013

पर्वतों पर गुंजायमान आस्था


 
पहाड़ों के शिखरों को अक्सर श्रद्धा की ऊँचाइयों से टक्कर मिलती है।
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पर्वतों पर दैवीय उपस्थिति की आस्था हर साल हजारों-लाखों आस्थावानों का रुख इनकी ओर कर देती है। वे कठिन चढ़ाई, विपरीत मौसम और तमाम तरह के भौतिक कष्टों एवं चुनौतियों से दो-दो हाथ करते हुए अपने ईष्ट के दर्शन, पूजन हेतु निकल पड़ते हैं आस्था के सफर पर। हमारे यहाँ बाबा अमरनाथ या माँ वैष्णोदेवी के दर्शन हेतु पहाड़ चढ़ते श्रद्धालु इसका उदाहरण हैं। साल-दर-साल आस्था का यह रेला देखते ही बनता है और पर्वतों के शिखर मानो आध्यात्मिक तरंगों से नहा उठते हैं। कुछ ऐसे ही दृश्य थोड़े-बहुत अंतर के साथ दुनिया के विभिन्न पर्वतों पर देखने को मिलते हैं।

उत्तर-पश्चिमी स्पेन में स्थित सैंटियेगो में योरप भर से श्रद्धालु बीते एक हजार से भी अधिक वर्षों से तीर्थयात्रा करने आते हैं। यहाँ एक भव्य चर्च में संत जेम्स का मकबरा स्थित है। योरप के विभिन्न स्थानों से यहाँ के लिए प्राचीन मार्ग हैं, जिन पर चलकर श्रद्धालु सैंटियेगो आते हैं। इनमें प्रमुख मार्ग दक्षिण फ्रांस से सैंटियेगो जाता है और लगभग एक हजार मील लंबा है। इतना लंबा सफर पैदल तय करने की फुर्सत आज के दौर में बहुत कम लोगों के पास होती है, सो अधिकांश लोग अन्य छोटे मार्गों से चलकर सैंटियेगो पहुँचते हैं। अधिकांश रास्ते पहाड़ों के बीच से प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थलों से होकर जाते हैं। यहाँ आने वाले लोग भी अलग-अलग कारणों से आते हैं। कुछ तो संत जेम्स को श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं, जबकि कुछ लोग किसी चीज की दुआ करने आते हैं और कुछ किसी पाप का प्रायश्चित करने। कोई किसी दिवंगत प्रियजन की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए चला आता है, जबकि कुछ इसलिए आते हैं कि इस यात्रा के दौरान उन्हें रूहानी सुकून मिलता है। कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ स्वच्छ हवा में लंबी पैदल यात्रा कर सेहत बनाने के इरादे से आते हैं! उद्देश्य जो भी हो, इनका यात्रा करने का तरीका वही रहता है। एक बैग में जरूरत जितने कपड़े डाले, बैग कंधों पर टाँगा और चल पड़े... पूरे यात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं के लिए रैन-बसेरे बने हुए हैं। किसी गाँव में यह भी हो तो स्थानीय लोग तीर्थ यात्रियों के रहने-खाने का इंतजाम कर देते हैं।

संत जेम्स का प्रतीक है कंगूरेदार सीपी और पूरे यात्रा मार्ग पर यात्रियों को राह भटकने से बचाने के लिए इस सीपी के चिह्न लगाए जाते हैं। रैन बसेरे भी इन चिह्नों के माध्यम से अपनी सेवाओं के बारे में सूचित करते हैं। कई श्रद्धालु भी अपने कपड़ों या बैग पर इस निशान को लेकर चलते हैं ताकि उन्हें देखते ही लोग समझ जाएँ कि वे सैंटियेगो तीर्थ के लिए जा रहे हैं। यूँ तो साल भर यहाँ श्रद्धालुओं का आना जारी रहता है लेकिन हर साल 25 जुलाई को सैंटियेगो में संत जेम्स का स्मृति दिवस बड़े स्तर पर मनाया जाता है, सो कई श्रद्धालु अपनी यात्रा इस तरह जमाते हैं कि 25 जुलाई को वे सैंटियेगो पहुँच जाएँ। जिस साल यह तारीख रविवार को पड़ती है, उस साल इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।

इसी प्रकार आयरलैंड में क्रोआग पैट्रिक नामक पवित्र पहाड़ पर हर साल जुलाई के अंतिम रविवार को हजारों श्रद्धालु आते हैं। मान्यता यह है कि संत पैट्रिक ने 441 ईसवीं में इस पहाड़ी के शिखर पर 40 दिन तक तपस्या की थी और फिर अपनी शक्तियों से आयरलैंड के सारे राक्षसों को परास्त कर दिया था। तभी से यह तीर्थ स्थल बन गया। यूँ इस पहाड़ी का महत्व ईसाई धर्म के यहाँ पहुँचने से भी पहले से रहा है। तब स्थानीय लोग इसे अपने ईष्ट देव का निवास स्थल मानकर पूजते थे। फसल कटाई का उत्सव यहाँ बड़े पैमाने पर मनाया जाता था। स्थानीय महिलाएँ उत्सव की रात पहाड़ी के शिखर पर सोती थीं क्योंकि उन्हें विश्वास था कि उर्वरता के इस उत्सव पर यहाँ सोने से उन्हें भरपूर संतान सुख प्राप्त होगा। आज साल भर में यहाँ दस लाख के करीब लोग आते हैं। इनमें कुछ तो प्रायश्चित के तौर पर नंगे पाँव चलते हैं और कुछ घुटनों के बल भी चले आते हैं! कुछ अन्य लोग इससे भी आगे जाकर रात के घुप्प अंधेरे में पहाड़ी चढ़ते हैं। यात्रा के अंत में सुखद आध्यात्मिक अनुभूति होने की बात हर यात्री करता है।

बोस्निया-हर्जेगोविना में क्रिजेवाक नामक पहाड़ का विशेष धार्मिक महत्व है। 1933 में ईसा के बलिदान का 1900वाँ वर्ष पवित्र वर्ष घोषित किया गया। कहते हैं कि पोप पायस ग्यारहवें को स्वप्न में ईश्वरीय संदेश मिला कि उन्हें इस पहाड़ पर एक विशाल क्रॉस स्थापित करना चाहिए। उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर शिखर पर 16 टन वजनी क्रॉस की स्थापना की, जिसमें उस मूल क्रॉस का अंश भी मिलाया गया, जिस पर ईसा को सजा--मौत दी गई थी। लोग कहते हैं कि पहले इस इलाके में खूब बर्फीले तूफान आते थे, जिनसे फसलों को भारी क्षति होती थी। इस क्रॉस की स्थापना के बाद से ये तूफान आने बंद हो गए। स्थानीय लोगों का यह भी विश्वास है कि इस पहाड़ पर कई बार माता मरियम ने श्रद्धालुओं को दर्शन दिए हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि लोग बड़ी संख्या में यह पहाड़ चढ़कर शिखर पर स्थापित क्रॉस के आगे प्रार्थना करने आते हैं। बुजुर्गों बीमारों को कुर्सी पर बिठाकर या स्ट्रेचर पर लिटाकर ले जाया जाता है।

पहाड़ों में श्रद्धा के बल पर शारीरिक कष्ट सहकर यात्राएँ करने के और भी कई उदाहरण हैं। दक्षिण अमेरिका से लेकर जापान तक और ईरान से लेकर अफ्रीका तक ऐसी तीर्थ यात्राएँ होती हैं। क्या इसे देखकर आपको यह नहीं लगता कि कहीं--कहीं हमारी आस्थाओं का प्रेरक बिंदु और उनका अंतिम गंतव्य एक ही होता है?