Sunday 24 January 2016

मदिरा के नए-पुराने देव!

एक देवी द्वारा मनुष्य से शादी करने पर नाराज देवता तब संतुष्ट हुए, जब मदिरा से परिचित होकर मनुष्य देवों के 'समकक्ष" हो गए...!
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उत्तर कोरिया के सर्वेसर्वा किम जोंग उन निरंतर मानव मात्र के कल्याण हेतु जुटे हुए हैं। अपने सभी देशवासियों के लिए अपनी व अपनी धर्मपत्नी की हेयरस्टाइल को अनिवार्य करने और अमेरिका को नेस्तनाबूद करने में सक्षम हाइड्रोजन बम बनाने (का दावा करने) के बाद उन्होंने एक और क्रांतिकारी उपलब्धि का ऐलान करवाया है। दावा है कि उत्तर कोरिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी शराब का आविष्कार किया है, जिसे पीने के बाद हैंगओवर नहीं होगा। खबर में स्पष्ट किया गया है कि इस शराब से नशा तो जरूर होगा, बस हैंगओवर नहीं होगा। किम साहब की प्राथमिकताओं की दाद देनी होगी। उत्तर कोरिया लगातार खाद्यान्ना की कमी से जूझता आया है। वर्तमान में भी वहां सूखे की वजह से हालात गंभीर हैं और खुद सरकारी मीडिया ने इसे पिछले 100 वर्षों का सबसे भयावह सूखा बताया है। ऐसे में किम महोदय के नेतृत्व में उनके यशस्वी वैज्ञानिकों ने हैंगओवर-मुक्त मदिरा के निर्माण में अपना समय, ऊर्जा और प्रतिभा उड़ेल दी, इसे आप क्या कहेंगे...! खैर, अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने का अधिकार हर देश को है, सो उत्तर कोरिया भी निश्चित ही गौरवान्वित है। वहां धर्म का चलन बहुत अधिक नहीं है मगर यदि होता, तो शायद व्यक्ति-पूजा के लिए कुख्यात इस देश में किम जोंग उन को बाकी तमाम उपाधियों के अलावा मदिरा के देवता का तमगा भी मिल गया होता...!
यदि ऐसा हो जाए, तो किम मदिरा के देवता/देवियों की लंबी फेहरिस्त के नवीनतम सदस्य बन जाएंगे। शराब का निर्माण पहले-पहल कहां और किसने किया, यह ठीक-ठीक बताना मुश्किल है मगर इतना तय है कि सभी प्राचीन सभ्यताओं में किसी--किसी रूप में इसका निर्माण और सेवन होता था। इसके गुणों का महिमामंडन भी किया जाता था और इसके दुष्प्रभावों के प्रति आगाह भी। मजेदार बात यह है कि अन्ना के देवी-देवताओं की तर्ज पर अनेक संस्कृतियों में मदिरा के देवी-देवता भी हुए हैं। अफ्रीका में जुलु जनजाति मबाबा मवाना वरेसा नामक देवी को मानता आया है, जो वर्षा, कृषि और उर्वरता की देवी होने के साथ-साथ मदिरा की देवी भी हैं क्योंकि उन्हीं ने मनुष्यों को मदिरा बनाना सिखाया। इसके पीछे एक बड़ी रूमानी कहानी बताई जाती है। इसके अनुसार, मबाबा को स्वर्गलोक में अपने लिए कोई योग्य वर नहीं मिला, तो वे उसकी तलाश में पृथ्वीलोक पर पधारीं। यहां उनकी भेंट एक चरवाहे से हुई और वे उसे दिल दे बैठीं। दोनों ने शादी कर ली और सुख से रहने लगे। मगर स्वर्गलोक में इस रिश्ते को लेकर बड़ी नाराजगी थी। देवता मनुष्यों को हेय समझते थे और इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे कि एक देवी ने एक साधारण मनुष्य से विवाह किया है। तब मबाबा ने मनुष्यों के लिए मदिरा बनाई और इसे बनाने की विधि भी उनसे साझा की। अब तक देवताओं का विशेषाधिकार रही मदिरा को पीकर मनुष्य भी एक प्रकार से देवताओं के समकक्ष आ गए और फिर देवताओं को इस रिश्ते पर नाराजगी नहीं रही...!
ग्रीस में डायोनाइसस और रोम में बैकस को मदिरा के देवता का खिताब मिला हुआ है। डायोनाइसस को ऐसे लोगों का रक्षक भी माना जाता है, जो परंपरागत समाज के नहीं हैं या कहें कि बहिष्कृत हैं। उन्हें अक्सर एक भव्य जुलूस में जाता हुआ चित्रित किया जाता है, जिसमें उनके स्त्री व पुरुष भक्त सुध-बुध खोकर नृत्य करते चल रहे हैं। लोमड़ी की खाल धारण किए बैठे डायोनाइसस के रथ को शेर खींच रहे हैं। उधर प्राचीन सुमेरिया में निनकासी को मदिरा की देवी का रुतबा मिला हुआ है। कहा जाता है कि देवलोक में मदिरा का निर्माण उन्हीं के जिम्मे था। इसी लीक पर चलते हुए सुमेरिया में लंबे समय तक शराब बनाना महिलाओं का ही काम माना जाता था। निनकासी के लिए जो स्तुति गाई जाती थी, वह एक तरह से मदिरा निर्माण की विधि ही थी! प्राचीन योरप में ही केल्टिक समुदाय सुकेलस को खेतों, जंगलों और मदिरा का देवता मानता था। इन्हें मुख्य रूप से ग्रामीणों और गुलामों का इष्ट देव कहा जाता था और हमेशा हाथ में मदिरा का पात्र लिए दर्शाया जाता था। दक्षिण अमेरिका की माया सभ्यता में शराब के देवता अकेन थे, जिनके नाम का शब्दिक अर्थ 'डकार" या 'कराह" था! शायद वे उत्तर कोरियाइयों जितने खुशनसीब नहीं थे और हैंगओवर से बच नहीं पाते थे...! 

Sunday 10 January 2016

वफादारी दिलाता सूरजमुखी!

वफादारी पाने से लेकर संतान पाने तक और सच से साक्षात्कार करने से लेकर परियों के दर्शन करने तक, सूरजमुखी के अनेक 'उपयोग" ढूंढ निकाले हैं मनुष्य ने...!
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क्या आप सूरज की ओर देख सकते हैं? यदि हां, तो कितनी देर के लिए? मुश्किल है न? आंखों के लिए नुकसानदायक भी है। ऐसे में अगर कोई अपना पूरा जीवन ही सूरज को ताकने में गुजार दे तो...? सूरजमुखी के फूल की पहचान ही सूरज की ओर उन्मुख होने के चलते है। यूं तो सभी वनस्पतियों के अस्तित्व के लिए सूर्य का प्रकाश और ऊष्मा जरूरी है मगर सूरजमुखी का तो अस्तित्व ही मानो सूर्य को समर्पित है। इसकी पहचान इस कदर सूरज से जुड़ी हुई है कि विश्व में जहां-जहां भी यह उगता है, इसका नामकरण सूरज से ही जुड़ा हुआ है और सूर्य से इसके रिश्ते को लेकर दिलचस्प दंतकथाएं प्रचलित रही हैं।
यूनान में अपोलो को सूर्य देवता का दर्जा प्राप्त था और माना जाता था कि वे प्रतिदिन अपने सुनहरे रथ पर सवार हो पूर्व से पश्चिम की यात्रा करते हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यंत सुदर्शन था और हर कोई उन्हें चाहता था। उनके सुदर्शन व्यक्तित्व के कारण ही नहीं, बल्कि इसलिए भी कि उनसे ही संसार में जीवन विद्यमान था। मगर सब चाहने वालों में क्लाइटिया जरा हटकर थी। वह एक जलकन्या थी, जो इस कदर सूर्यदेव अपोलो पर आसक्त हो गई कि सारा-सारा दिन अपलक उन्हें ही निहारती रहती थी। मगर उसका यह प्रेम एकतरफा था। अपोलो उसे नहीं, बल्कि जल देवता की पुत्री डेफ्नी को चाहते थे। क्लाइटिया खाना-पीना त्यागकर अपने एकतरफा प्रेम में सूर्य को एकटक देखते-देखते एक फूल में परिवर्तित हो गई। कुछ लोग मानते हैं कि खुद अपोलो ने उसकी निगाह से परेशान होकर अपनी दिव्य शक्तियों से उसे फूल बना दिया। कुछ अन्य लोग मानते हैं कि बाकी देवताओं ने क्लाइटिया पर रहम खाकर उसे फूल में परिवर्तित कर दिया। यही फूल सूरजमुखी कहलाया।
मेक्सिको के एज्टेक लोग सूर्य उपासक थे। ऐसे में यह अस्वाभाविक नहीं था कि वे सूरजमुखी के फूल को भी दिव्य मानते थे और उसे भी पूजते थे। उनके सूर्य मंदिरों की पुजारिनें सूरजमुखी के फूलों को अपने बालों में सजाती थीं। समझा जाता है कि सूरजमुखी की उत्पत्ति मध्य व दक्षिण अमेरिका में ही हुई और योरपीय उपनिवेशक उसे योरप ले गए, जहां से वह विश्व के अन्य भागों में भी फैला। अमेरिकी आदिवासियों में फूल समेत सूरजमुखी के समूचे पौधे और इसके गुणों को लेकर कई तरह की धारणाएं रहती आई हैं। इन्हें अपने घर के आसपास उगाना शुभ माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि यदि आप सूर्यास्त के समय सूरजमुखी का एक फूल तोड़कर उसे धारण कर लें, तो अगले दिन आपके साथ कुछ अच्छा जरूर होगा। सूर्य को जीवन-दायक होने के कारण उर्वरता प्रतीक भी माना जाता है। उसके इस गुण का विस्तार सूरजमुखी के पौधे में भी हो गया है। मान्यता है कि इसके बीज खाने या इसकी पंखुड़ियों से स्नान करने से संतान प्राप्ति होती है! चूंकि यह फूल प्रेम के मामले में सूरज के प्रति वफादार है, सो इसे वफादारी का प्रतीक भी कहा जाता है। इसके चलते यह धारणा चल पड़ी कि अगर आप सूरजमुखी के बीज या इसका तेल किसी के भोजन में मिला दें, तो वह आपके प्रति वफादार बना रहेगा! यह भी कहा जाता है कि यदि आप अपने तकिए के नीचे सूरजमुखी का फूल रखकर सोएंगे, तो आपका सच से साक्षात्कार हो सकता है।
योरप के कुछ भागों में सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में सूरजमुखी का एक और दिलचस्प उपयोग देखा गया। ग्रामीण इलाकों में जादू-टोना करने वाले एक खास लेप बनाते थे, जिसे लगाने पर परियों के दर्शन होने का दावा किया जाता था! यह लेप गर्मियों में सूर्य के तेज से खिलने वाले फूलों को सूरजमुखी के तेल में मिलाकर, तीन दिन तक धूप में रखकर तैयार किया जाता था।

उधर इटली की एक लोककथा के अनुसार, सूरजमुखी पहले बेहद बदसूरत हुआ करता था और फूल बिरादरी में वह उपहास का पात्र था। यहां तक कि पशु भी उसे देख मुंह बिचका लेते थे। उसके उदासी भरे जीवन में खुशी का एकमात्र स्रोत था सूर्य, जिसकी सुनहरी किरणों को देखते ही उसमें आनंद का संचार हो जाता था और जिसे निहारने में उसका दिन बीत जाता था। सूर्य अपने इस खामोश चाहने वाले से अवगत था। एक दिन उसे इस उपेक्षित फूल पर दया आ गई और उसने अपनी विशेष शक्तियों से लैस जादुई किरणें इस फूल पर डालीं। देखते ही देखते फूल का रंग-रूप निखर उठा। वह सूर्य की ही तरह तेजस्वी, सुनहरी आभा से दमकता हुआ नजर आने लगा। अब बाकी सारे फूल उसकी ओर सम्मानपूर्वक देखने लगे। नया जीवन पाकर वह फूल सूरज के प्रति कृतज्ञता से भर उठा। सूरज ने भी उस पर अपना और प्यार लुटाते हुए उसे अपना नाम बख्शा और वह सूरजमुखी कहलाया। मजेदार बात यह है कि लोककथा से परे, यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि सूरजमुखी मूल रूप से उस रूप में नहीं था, जैसा हम आज इसे देखते हैं। मनुष्य ने अपने लाभ के लिए इसमें निरंतर परिवर्तन किए, जिससे कि यह अधिक संख्या में तथा अधिक बड़े बीज दे। इन्हीं परिवर्तनों का परिणाम है आज हमारे सामने मौजूद सूरजमुखी...।