Sunday 27 March 2016

नन्हे-से कंकड़ के बड़े-से अफसाने

कहने को इस विराट संसार में हल्के-फुल्के, नन्हे-से कंकड़ की कोई खास बखत नहीं होनी चाहिए मगर ऐसा है नहीं...
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नदी या समुद्र किनारे घूमकर लौटने वाले लोग अक्सर वहां से खूबसूरत कंकड़ ले आते हैं। सुंदर वस्तुओं का संग्रह करना वैसे भी एक लोकप्रिय शौक है। फिर ये कंकड़ यात्रा की यादगार का भी काम करते हैं। मगर अति तो हर चीज की बुरी ही होती है न! कुछ लोकप्रिय पर्यटन स्थलों से लोग इतनी बड़ी संख्या में कंकड़ ले जाते हैं कि वहां की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंच सकता है। हाल ही में ताईवान ने इस मामले में सख्ती दिखाई। ताइपेई विमानतल पर बाहर जाती उड़ानें पकड़ने वाले यात्रियों के सामान से ऐसे ही कंकड़ जब्त किए जाने लगे। दो महीने में कुल 100 किलो कंकड़ जमा हो गए, जिन्हें वापस समुद्री किनारों पर बिखेर दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि जो एक-दो कंकड़ उठा ले जाता है, उसे लगता है कि इससे भला क्या फर्क पड़ेगा मगर सभी ऐसा करने लगेंगे, तो पारिस्थितिकी का क्या होगा!
ताईवान की यह घटना छोटे-छोटे कंकड़ों के बड़े 'प्रभाव" का रूपक भी प्रस्तुत करती है। कहने को इस विराट संसार में हल्के-फुल्के, नन्हे-से कंकड़ की कोई खास बखत नहीं होनी चाहिए मगर ऐसा है नहीं। जब छोटी-छोटी बूंदों से घड़ा भरता है, तो छोटे-छोटे कंकड़ों से भी बड़े-बड़े काम होते हैं। वह कहानी तो आपको याद होगी ही, जिसमें एक प्यासा कौआ पानी के घड़े तक तो पहुंचा मगर उसमें थोड़ा ही पानी था, जिस तक उसकी चोंच नहीं पहुंच सकती थी। सो उसने पानी को ही चोंच तक लाने का उपाय किया। एक-एक कंकड़ घड़े में डालकर उसने पानी का स्तर ऊंचा उठा दिया और अपनी प्यास बुझा ली।
कंकड़ पानी की ही नहीं, ज्ञान की प्यास भी बुझा सकते हैं, खास तौर पर यदि यह ज्ञान भविष्य में होने वाली किसी घटना से जुड़ा हो...। ग्रीक पौराणिक कथाओं में तीन देवियों का उल्लेख आता है, जिन्हें संयुक्त रूप से 'थ्रियाई" कहा जाता है। उनका शरीर आधा मानव का और आधा मधुमक्खी का था। हालांकि वे देवियों की 'उच्च श्रेणी" में नहीं आती थीं, मगर उन्हें भविष्यकथन का ज्ञान प्राप्त था। यह भविष्यकथन वे कंकड़ों की मदद से करती थीं। वे कंकड़ों को उछालतीं और उनके जमीन पर गिरने पर बनने वाले पैटर्न के आधार पर बतातीं कि भविष्य में क्या होने वाला है! दरअसल 'थ्रियाई" का अर्थ ही होता है कंकड़। यानी इन्हें 'कंकड़ देवियां" भी कह सकते हैं, जो कंकड़ द्वारा भविष्य बताती थीं।
ग्रीस की ही एक अन्य पौराणिक कथा में कंकड़ों का अनूठा प्रयोग सामने आता है। हर्मिज देवराज ज़्यूस के पुत्र और देवताओं के संदेशवाहक थे। ज़्यूस की पत्नी तो हेरा थीं मगर उनके संबंध कई अन्य स्त्रियों से भी थे। हर्मिज भी ऐसी ही एक अन्य स्त्री की संतान थे। उधर ज़्यूस का दिल आईओ नामक एक और स्त्री पर आ गया, जिसे हेरा ने अपनी गिरफ्त में लेकर अपने विश्वस्त सेवक, सौ आंखों वाले दानव आरगस की निगरानी में रखा। उसकी सभी आंखें एक साथ बंद नहीं होती थीं, सो वह सदा जागता रहता था। ज़्यूस ने आईओ को हेरा की कैद से छुड़ाने में हर्मिज की मदद मांगी और हर्मिज तैयार हो गया। वह एक बातूनी चरवाहा बनकर आरगस के पास गया और उसे भांति-भांति के किस्से सुनाने लगा। सभी किस्से एक से बढ़कर एक उबाऊ थे और ऊब के कारण आरगस को नींद आने लगी। उसकी आंखें एक-एक कर बंद होने लगीं। आखिरकार वह हुआ, जो पहले कभी नहीं हुआ था। आरगस की सभी सौ आंखें बंद हो गईं और वह ऊंघने लगा। मौका पाकर हर्मिज ने उसकी हत्या कर दी और आईओ को छुड़ाकर ज़्यूस के पास ले गया। इस धोखे से और इससे भी बढ़कर अपने वफादार सेवक की हत्या से हेरा आगबबूला हो गईं। उन्होंने हर्मिज को देवताओं की अदालत में ला खड़ा किया। हर्मिज पर हत्या का मुकदमा चला। वाकपटुता के चलते अपने पक्ष में उन्होंने ऐसी दलीलें दीं कि सभी देवता उनके कायल हो गए। फैसले के लिए हर देवता के हाथ में एक कंकड़ दिया गया। उनसे कहा गया कि वे जिसके पक्ष में फैसला देना चाहते हैं, अपना कंकड़ उसके कदमों में फेंक दें। सभी ने अपने कंकड़ हर्मिज के कदमों में फेंके। कंकड़ों के ढेर में हर्मिज दब गए और देवताओं की अदालत से बरी हो गए!

चलते-चलते कंकड़ों के एक और उपयोग पर गौर करें। बताया जाता है कि पेंग्विनों की एक प्रजाति के लिए कंकड़ रोमांटिक गिफ्ट का काम भी करते हैं! प्रजनन काल में नर पेंग्विन घूम-घूमकर सुंदर, चिकने कंकड़ तलाशते हैं और फिर सर्वश्रेष्ठ कंकड़ मिलने पर उसे ले जाकर अपनी पसंद की मादा के सामने पेश करते हैं। मादा विभिन्ना नर पेंग्विनों द्वारा लाए गए कंकड़ों में से एक को चुनती है और इसे लाने वाला नर उसका साथी बन जाता है...! 

Sunday 13 March 2016

एक घाट पर शेर और बकरी...?

विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के बीच मित्रता के किस्से हम पंचतंत्र आदि की नीति-कथाओं में पढ़ते-सुनते आए हैं। इन कथाओं से हम चाहे कितने ही आनंदित हों मगर हम यही मानकर चलते हैं कि पशुओं के बीच ऐसे संबंध वास्तविक जीवन में नहीं होते। ... पर कभी-कभी नीति-कथाओं के आदर्श साक्षात रूप में सामने आ जाते हैं...!
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संकट में पड़े पशुओं के लिए अमेरिका में बनाई गई एक पनाहगाह में बाघ, सिंह और भालू की दोस्ती की खूब चर्चा है। इन तीनों की अस्वाभाविक मित्रता दर्शकों को लुभा रही है। प्राकृतिक रूप से इन तीनों पशुओं में सौहार्द्रपूर्ण संबंध नहीं होते। बाघ और सिंह अमूमन एक ही जंगल मंे रहते भी नहीं। मगर ये तीनों मित्र तब से साथ हैं, जब मात्र कुछ माह की उम्र में इन्हें एक ड्रग डीलर के यहां से बरामद कर इधर लाया गया था। तीनों कमजोर, बीमार और घायल थे। ऐसे में उनके बीच ऐसा सखा भाव जागा, जो आज पंद्रह साल बाद भी कायम है। तीनों हमेशा साथ ही रहते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं के बीच छुटपन में मित्रता होना अजूबा नहीं है मगर परिपक्वता आने के बाद यह मित्रता अक्सर टूट जाती है। इसलिए बाघ, सिंह और भालू की यह दोस्ती अपवाद ही कही जाएगी।
विभिन्ना प्रजातियों के पशुओं के बीच मित्रता के किस्से हम पंचतंत्र आदि की नीति-कथाओं में पढ़ते-सुनते आए हैं। इन कथाओं से हम चाहे कितने ही आनंदित हों मगर हम यही मानकर चलते हैं कि पशुओं के बीच ऐसे संबंध वास्तविक जीवन में नहीं होते। फिर भी, ऐसे किस्से जीवन का कोई सबक देने के अपने उद्देश्य में सफल हो ही जाते हैं। फिलिपीन्स की ऐसी ही एक कथा शेर और खरगोश की दोस्ती के बारे में है। इसके अनुसार, इन दोनों की दोस्ती अटूट थी। खरगोश अपने दोस्त को शिकार करने में मदद किया करता था। वह शिकार को लुभाकर शेर की दिशा में ले जाता और शेर बड़े इत्मीनान से शिकार कर लेता। बदले में खरगोश को यह फायदा था कि अपने ताकतवर दोस्त के चलते उसे अन्य खतरनाक जानवरों से कोई डर न था। फिर एक बार जंगल में ऐसी बीमारी फैली कि सारे पशु एक-एक कर मरने लगे। आखिर में नदी के मगरमच्छों के अलावा बस, यह शेर और खरगोश ही जिंदा बचे। खरगोश तो घास-फूस खाकर गुजारा कर लेता मगर शेर का मारे भूख के बुरा हाल होने लगा। आखिर भूख के चलते वह अपने दोस्त को ललचाई नजरों से देखने लगा। खरगोश उसके इरादों को भांप गया और उससे दूर-दूर रहने लगा। मगर शेर उसके पीछे आ ही जाता। आखिर एक रात खरगोश ने मरने का नाटक किया। जब शेर उसे मरा हुआ मानकर चला गया, तो खरगोश ने नदी में तैर रहे एक मगरमच्छ को बुलाकर पूछा, 'आप लोग संख्या में कितने हो?" मगरमच्छ ने जवाब दिया, 'बहुत सारे।" इस पर खरगोश बोला, 'मैं कैसे मानूं? आप सब नदी के इस किनारे से उस किनारे तक कतार लगा लो, मैं एक-एक को गिनूंगा।" मगरमच्छ ने अपने सारे साथियों को बुला लिया। सबने कतार बना ली। तब खरगोश बारी-बारी से एक-एक मगरमच्छ की पीठ पर कूदता हुआ गिनने लगा, 'एक, दो, तीन, चार...." और यूं गिनते-गिनते वह नदी के उस पार पहुंच गया, जहां उसे अपने अब 'भूतपूर्व" हो चुके दोस्त से कोई खतरा नहीं था...! इस कहानी का संदेश यही है कि स्वार्थ के चलते दोस्ती का रिश्ता कभी भी टूट सकता है और ऐसी स्थिति आने पर यथाशीघ्र इस रिश्ते को समाप्त कर देना ही ठीक होता है।
यूं शेर और खरगोश की दोस्ती होना असंभव लगता है और हमारी तर्कशक्ति यही कहती है कि अगर ऐसी दोस्ती हो भी जाए, तो उसका हश्र इस फिलिपीनी कहानी की तरह ही होगा। यानी शेर आखिर में 'अपनी वाली" पर आ ही जाएगा। आखिर हर पशु की अपनी प्रकृति होती है। हम मनुष्य हिंसा को त्याज और सहचर्य को वांछनीय मानते हैं। मगर पशु जगत में इस प्रकार की नैतिक संहिता काम नहीं करती। इसके बावजूद हम एक ऐसे आदर्श संसार की कामना करते हैं, जहां ऐसे नैतिक आदर्श पशु जगत पर भी लागू हों। याद है न, आदर्श संसार की वह प्राचीन भारतीय परिकल्पना, जिसमें शेर और बकरी एक ही घाट का पानी पिएंगे/ पीते थे...? बाइबल में भी ऐसे आदर्श संसार का उल्लेख है, जिसमें भेड़िया और भेड़, तेंदुआ और मेमना, शेर और बछड़ा साथ रहेंगे। इसे शब्दश: न भी लें, तो कुल मिलाकर यह आदर्श है एक ऐसे विश्व का, जिसमें कोई क्लेश, कोई हिंसा, कोई स्वार्थ, कोई भय नहीं होगा।

हम स्वयं को ऐसे किसी आदर्श संसार में पाएंगे, इसकी निकट भविष्य में तो कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती। मगर पशु जगत की असंभव, अस्वाभाविक मित्रताओं के उदाहरण जब-तब हमारे सामने आते रहते हैं और हमें गुदगुदाते हैं। ... और शायद हमारे दिल में कहीं यह आस भी जगाते हैं, कि एक दिन ऐसी दुनिया वास्तव में होगी, जिसमें शेर और बकरी एक ही घाट से पानी पिएंगे...।