Sunday 28 August 2016

कान कटवाकर सींग गंवाने वाला ऊंट!

क्या ऊंट कभी लंबे कानों और बड़े सींगों को धारण करता था? रेगिस्तान के जहाज पर ऐसे कई-कई किस्से सवार होते आए हैं। मगर इस प्राणी के साथ इंसान के संबंध का एक पहलू अभी-अभी सामने आया है...
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छोटी-बड़ी बीमारियों की फेहरिस्त में यदि सबसे 'मामूली" बीमारी को चिह्नित करने को कहा जाए, तो शायद हम सभी जुकाम का नाम लेंगे। आखिर जुकाम से ज्यादा मामूली क्या हो सकता है? मगर हाल ही में वैज्ञानिकों ने मनुष्यों में जुकाम की उत्पत्ति का जो कारण बताया है, उसे आप शायद ही मामूली मानेंगे। कहा जा रहा है कि जुकाम के लिए जिम्मेदार एक वायरस ऊंटों से मनुष्यों में आया। यानी जुकाम ऊंट की इंसान को देन है! हां, यह जरूर आश्चर्य की बात है कि ऊंट को लेकर न जाने कितने विश्वास, मान्यताएं और दंतकथाएं गढ़ने वाले इंसान को इस प्राणी के साथ अपने रिश्ते के इस पहलू के बारे में अब जाकर पता चला...
माना जाता है कि दुनिया के पहले-पहले ऊंट आज से 4-5 करोड़ साल पहले उत्तरी अमेरिका में हुए थे और तब उनका आकार खरगोश के बराबर हुआ करता था! बाद में इनके विभिन्ना वंशज विश्व के कई इलाकों में फैले। सूखे इलाकों में ये मनुष्य के लिए उपयोगी सिद्ध हुए, सो इन्हें पाला गया, उपयोग में लाया गया। जरूरत से उपजे इस सान्निाध्य ने कल्पनाओं को पंख दिए और मनुष्य ने ऊंट को लेकर ढेरों किस्से व कल्पनाएं गढ़ डालीं। ऊंट की शारीरिक विशेषताओं में उसका कूबड़ प्रमुख है। लंबे समय तक यह धारणा रही कि ऊंट अपने कूबड़ में पानी का भंडार रखते हैं और इसी कारण वे रेगिस्तान में कई-कई दिन तक बिना पानी के भी रह लेते हैं। मगर सच यह है कि इस कूबड़ में पानी नहीं, वसा को जमा किया जाता है, जो भोजन के अभाव में उसके शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है।
ईसप की एक कथा के अनुसार तो पहले-पहल ऊंट के लंबे-लंबे कान भी हुआ करते थे मगर वह इतने से संतुष्ट नहीं था। उसे सांड की तरह सींग चाहिए थे। वह सींग मांगने के लिए देवराज ज़्युस के पास गया। ज़्युस ने उसे समझाया कि तुम्हें मैंने इतने खूबसूरत, लंबे कान तो दिए हैं, तुम इनसे खुश क्यों नहीं हो? मगर ऊंट तो बस सींग की जिद पर ही अड़ा रहा। नाराज ज़्युस ने उसे सींग तो नहीं ही दिए, उसके कान भी काटकर छोटे कर दिए!
इसके विपरीत, मंगोलिया की एक लोककथा में कहा गया है कि एक समय ऊंट के सिर पर वैसे ही सींग हुआ करते थे, जैसे कि आज रेनडियर के सिर पर पाए जाते हैं। एक दिन जब वह चर रहा था, तो एक रेनडियर उसके पास आया और बोला, 'क्या तुम मुझे अपने सींग एक दिन के लिए उधार दे सकते हो? आज सिंह और बाघिन की शादी है, मैं ये सुंदर सींग लगाकर शादी में जाऊंगा। कल यहीं आकर मैं इन्हें लौटा जाऊंगा।" नादान ऊंट उसकी बातों में आ गया और अपने सींग उसे दे बैठा। जाहिर है, रेनडियर उसके सींग लौटाने कभी नहीं आया और ऊंट उसकी राह ही ताकता रह गया।

जहां ऊंट संबंधी ये लोककथाएं सदियों से चली आई हैं, वहीं एक भुतहा ऊंट का किस्सा उन्नाीसवीं सदी के अमेरिका में काफी प्रचलित हुआ था। दरअसल अमेरिकी सेना में माल ढोने के लिए ऊंट लाए गए थे लेकिन वे अपेक्षा के अनुसार उपयोगी सिद्ध नहीं हुए। आखिरकार सेना ने इनमें से कुछ को नीलाम कर दिया और बाकी ऊंटों को एरिजोना के रेगिस्तान में छोड़ दिया गया। इसके बाद कई वर्षों तक लोग वहां के रेगिस्तान में ऊंट देखने के दावे करते रहे। इन्हीं में शामिल था 'लाल भूत" के नाम से कुख्यात हुआ ऊंट। लोगों पर किसी अज्ञात, विशाल पशु के हमले होने लगे और घटनास्थल पर ऊंट के पैरों के निशान व लाल बाल पाए गए। फिर कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने इस हमलावर ऊंट को देखा है और उसकी पीठ पर कोई सवार भी है, हालांकि लगता नहीं कि सवार जीवित है! एक दिन कुछ लोगों ने इसी ऊंट की पीठ से कुछ गिरते हुए देखा। ऊंट तो चला गया लेकिन जब उन लोगों ने उस स्थान पर जाकर देखा तो पाया कि उसकी पीठ से जो चीज गिरी थी, वह एक मानव खोपड़ी थी! इसके बाद कोई एक दशक तक सिरकटी लाश लिए यह ऊंट लोगों को आतंकित करता रहा। आखिरकार एक दिन एक किसान ने अपने खेत में घुस आए इस 'लाल भूत" को मार डाला। तब उसकी पीठ से सिरकटी लाश गायब हो चुकी थी लेकिन वे फीते मौजूद थे, जिनसे लाश को उसकी पीठ पर बांधा गया था। यह कभी ज्ञात नहीं हो सका कि आखिर वह किसकी लाश थी और किसने व क्यों उसे उस विशाल लाल ऊंट की पीठ पर बांध दिया था। वैसे इसके बाद भी काफी समय तक एरिजोना के रेगिस्तान से गुजरने वाले कुछ लोग दावे करते रहे कि उन्होंने सिरकटी लाश ढोता एक विशाल लाल ऊंट देखा है...!

Sunday 21 August 2016

जो जीता वही सिकंदर

यदि कोई रेस महज जीत की खुशी का अनुभव करने के लिए न लगाई जाए, बल्कि किसी और मंतव्य से लगाई जाए, तो फिर इसके आयाम ही बदल जाते हैं। मसलन, जब रेस में जीत किसी शर्त का हिस्सा होती है...
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रेडी? वन, टू, थ्री, गो...! इन शब्दों के साथ न जाने कितने ही लोगों के बचपन की स्मृतियां जुड़ी होंगी। 'रेस लगाने" की शुरुआत लगभग तभी से हो जाती है जब आप चलना/ दौड़ना सीख लेते हैं। नन्हे कदमों की यह दौड़ आखिरकार करियर की चूहा दौड़ में जाकर कहीं खो जाती है। मगर प्रतिस्पर्धी से तेज दौड़कर उससे आगे निकलकर फिनिशिंग लाइन पार कर जाने में जो रोमांच और उपलब्धि का एहसास होता है, उसका कोई मुकाबला नहीं। वहीं, यदि कोई रेस महज जीत की खुशी का अनुभव करने के लिए न लगाई जाए, बल्कि किसी और मंतव्य से लगाई जाए, तो फिर इसके आयाम ही बदल जाते हैं। मसलन, जब रेस में जीत किसी शर्त का हिस्सा होती है...। ऐसे किस्से-कहानियों की भरमार है, जिनमें 'तुम जीते तो ऐसा, मैं जीतूं तो वैसा" वाली शर्त के तहत कोई रेस आयोजित की गई हो। फिर चाहे वह दौड़ने की बात हो या फिर घोड़े, रथ आदि दौड़ाने की। पौराणिक और लोक कथाओं से लेकर फिल्मी कथाओं तक यह सिलसिला चला है।
कहा जाता है कि प्राचीन ग्रीस में लीडिया के राजकुमार पेलॉप्स को पीसा के राजा इनॉमियस की बेटी हिपोडेमिया से प्रेम हो गया। आग दोनों ओर लगी थी मगर इनॉमियस से भविष्यवक्ताओं ने कहा था कि उसका दामाद ही उसकी हत्या कर देगा। इस कारण वह किसी हाल में अपनी बेटी का ब्याह नहीं करना चाहता था। उसने शर्त रखी थी कि हिपोडेमिया से वही शादी कर सकेगा, जो उसे (इनॉमियस को) रथ की दौड़ में हरा दे। जो रेस हार जाएगा, वह न सिर्फ हिपोडेमिया के हाथ से वंचित रहेगा, बल्कि अपने प्राण भी गंवा बैठेगा। एक-दो नहीं, अट्ठारह नौजवान हिपोडेमिया की चाह में रेस हारकर अपने सिर कलम करा चुके थे। इसके बावजूद पेलॉप्स ने हिम्मत की और रेस की चुनौती स्वीकार की। वह जानता था कि इनॉमियस को हराना आसान नहीं होगा, सो उसने मदद के लिए समुद्र के देवता पोसायडन का आह्वान किया, जिनकी उस पर विशेष कृपा थी। पोसायडन ने उसके लिए पंख लगे घोड़ों का रथ प्रस्तुत कर दिया। यही नहीं, पेलॉप्स और हिपोडेमिया ने मिलकर इनॉमियस के रथ के पहियों के धुरे की कीलें हटाकर उनकी जगह मोम की कील लगा दी। रेस शुरू हुई और इनॉमियस जीतने ही वाला था कि उसके रथ के पहिये निकलकर अलग हो गए और वह जमीन पर आ गिरा। सरपट दौड़ते घोड़े उसे उसकी मृत्यु की ओर ले गए।
कुछ इससे मिलती-जुलती कहानी मेलानियन नामक युवक की है, जिसे अटलांटा नामक शिकारी युवती से प्रेम हो गया। अटलांटा ने शर्त रख छोड़ी थी कि वह उसी से शादी करेगी, जो दौड़ में उसे हरा दे। मेलानियन ने प्रेम की देवी से मदद की गुहार की, जिन्होंने उसे तीन स्वर्णिम सेब दिए। दौड़ते समय जब भी अटलांटा आगे निकल जाती, मेलानियन एक सेब उसके कदमों में फेंक देता। अटलांटा ललचाकर उसे उठाने के लिए रुकती, तब तक वह आगे निकल जाता। जब अटलांटा तीसरा सेब उठाने के लिए रुकी, तो मेलानियन ने रेस पूरी कर ली और उसे ब्याहने का हकदार बन गया।

चीनी राशिचक्र की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि इसके पीछे भी एक रेस ही थी। देवताओं के राजा ने ऐलान किया कि बारह राशियों के प्रतीक के तौर पर उन बारह प्राणियों को शामिल किया जाएगा, जो रेस में प्रथम बारह स्थान पाएंगे। इस रेस में काफी उठा-पटक हुई, षड़यंत्र और चालबाजियां भी हुईं और अंतत: वे बारह प्राणी जीते, जिन्हें आज तक चीनी कैलेंडर वर्ष बारी-बारी से समर्पित किया जाता है।