श्राप की
अवधारणा शायद मानव इतिहास जितनी ही पुरानी है। इससे जुड़े किस्से-कहानियां एक तरह से मनुष्य के परपीड़क रूप की
बानगी भी दिखाते हैं।
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आयरलैंड
में कुछ खास तरह के पत्थर पाए जाते हैं, जिनकी
बनावट जरा लीक से हटकर है। इनमें कुछ तो प्राकृतिक रूप से यह बनावट लिए हुए होते
हैं, वहीं अन्य को पुरातन काल में इस तरह
तराशा गया था। इनका बीच का हिस्सा कुछ दबा हुआ होता है, जिससे कटोरेनुमा आकृति बन जाती है। इस पत्थर के 'कटोरे" में बारिश का पानी भर जाता है, जिसे पवित्र मानने की परंपरा रहती आई है।
कहा जाता है कि एक संत के जन्म के तुरंत बाद उनका सिर एक पत्थर से टकरा गया था, जिससे पत्थर में गड्ढेनुमा आकृति बन गई और
इसमें भरने वाले बारिश के पानी में तमाम रोगों का इलाज करने का चमत्कारिक गुण आ
गया। खैर, इस कटोरे में सिर्फ पानी ही नहीं
होता, कई बार कुछ कंकर या छोटे पत्थर भी
इसमें आ ठहरते हैं। पत्थर के कटोरे में मौजूद इन छोटे पत्थरों का प्रयोग लोग
पारंपरिक रूप से आशीर्वाद और श्राप दोनों देने के लिए करते आए हैं। किसी के भले की
कामना करनी हो, तो हाथ से उस छोटे पत्थर को घड़ी की
सुई की दिशा में घुमाते हुए प्रार्थना की जाती है या सीधे-सीधे बोल दिया जाता है कि फलां की बीमारी ठीक हो जाए या फलां को
जीवन की सारी खुशियां मिलें आदि। वहीं यदि किसी को श्राप देना हो, तो उसी पत्थर को घड़ी की सुई की विपरीत दिशा
में घुमाते हुए शत्रु का बुरा चाहा जाता है। अब इसे मानव की नकारात्मक प्रवृत्ति
कहें या कुछ और, आम बोलचाल में इन पत्थरों को 'दुआ के पत्थर" के बजाए 'बद्दुआ/
श्राप के पत्थर" ही कहा जाता है!
भलाई और
बुराई के दो छोरों के बीच अपनी जीवन नैया खेता आ रहा मनुष्य कभी अन्याय का शिकार
होने पर, तो कभी निरे कपट के चलते, शिद्दत से दूसरे के बुरे की कामना करता है।
साथ ही, उसके किस्सों-कहानियों, पुरातन आख्यानों आदि में श्रापों का खूब वर्णन मिलता है। उसने
माना कि कुछ खास शक्तियां या सिद्धि प्राप्त लोग जब किसी का बुरा चाहते हैं, तो वास्तव में उनका बुरा होता है। ऐसा
विश्वास देशों और संस्कृतियों की सीमाएं लांघकर समूचे मानव जगत में पाया जाता है।
साथ ही, इसके चलते श्राप संबंधी कुछ दिलचस्प
जनश्रुतियां, पौराणिक किस्से आदि भी सदियों से
चले आए हैं।
प्राचीन
ग्रीक आख्यानों में ट्रॉय की राजकुमारी कैसेंड्रा का जिक्र आता है। सत्य और
भविष्यकथन के देवता अपोलो का दिल कैसेंड्रा पर आ गया। उन्होंने राजकुमारी के समक्ष
प्रणय प्रस्ताव पेश किया और बदले में उसे भविष्य देखने का वरदान देने का वादा
किया। कैसेेंड्रा ने अपोलो का प्रस्ताव स्वीकार किया लेकिन भविष्य देखने की शक्ति
प्राप्त होते ही अपनी बात से पलट गई और अपोलो को ठुकरा दिया! जाहिर है, इस धोखे से अपोलो को कुपित होना ही था। उन्होंने तत्काल
कैसेंड्रा को श्राप दे डाला कि वह जब भी कोई भविष्यवाणी करेगी, तो उस पर कोई यकीन नहीं करेगा। कैसेंड्रा
आजीवन इस श्राप को ढोती रही। वह जब-जब
भविष्य में किसी अनिष्ट को भांपकर लोगों को आगाह करती, उस पर अविश्वास ही किया जाता। यहां तक कि उसने अपने प्रिय नगर
ट्रॉय की बर्बादी का मंजर भी पहले ही देख लिया था लेकिन उसे टाल न सकी क्योंकि
किसी ने उस पर यकीन नहीं किया।
क्या कभी
किसी श्राप को भी वरदान में बदला जा सकता है? ईरान व आसपास के इलाकों में प्रचलित कथाओं में नार्ट कबीले के
लोगों के बारे में बताया जाता है। कहते हैं कि एक बार ईश्वर इन लोगों से नाराज हो
गए और इन्हें श्राप दिया कि वे दिन भर में चाहे जितना भी गेहूं काटें, शाम को उन्हें एक बाल्टी भर गेहूं ही मिलेंगे।
नार्ट लोग बड़े शातिर निकले। वे अब दिन में बस एक मुट्ठी गेहूं काटकर आराम फरमाने
बैठ जाते और शाम को बाल्टी भर गेहूं पाते!