कहते हैं
प्रेम की तड़प ने बादाम के पेड़ को जन्म दिया। प्रेम ने ही इस पेड़ को माध्यम बनाकर
एक अवसादग्रस्त राजकुमारी का दुख दूर किया। जीवन की ही तरह कुछ मीठे और कुछ कड़वे
बादाम कई तरह से हमारे लिए प्रेरक हैं।
***
एथेन्स के
राजा डेमोफोन को थ्रेस नामक राज्य से गुजरते हुए वहां की राजकुमारी फीलिस से प्रेम
हो गया। दोनों ने शादी भी कर ली। मगर राजा का फर्ज उसे पुकार रहा था। उसे युद्ध पर
जाना था। वह फीलिस से यह वादा करके गया कि वह शीघ्र ही लौटेगा और फीलिस को अपने
साथ अपने देश ले जाएगा। समय बीतता गया, फीलिस
बेसब्री से अपने पति का इंतजार करती रही। वह रोज समुद्र तट पर जाकर दूर, क्षितिज की ओर ताकती रहती कि कब डेमोफोन का
जहाज आता हुआ दिखे। आखिर उसका सब्र जवाब दे गया। उसे यकीन हो गया कि डेमोफोन ने
उसे भुला दिया है और अब वह कभी नहीं लौटेगा। अपने असहनीय दुख से छुटकारा पाने के
लिए उसने खुदकुशी कर ली। यह देख देवता इतने द्रवित हो गए कि उन्होंने फीलिस को एक
वृक्ष का रूप दे दिया ताकि वह सदा जीती रहे। उधर डेमोफोन आखिरकार लौटा और जब उसे
फीलिस की मृत्यु की खबर बताई गई,
तो उसका दिल टूट गया।
यह पता चलने पर कि फीलिस अब भी एक वृक्ष के रूप में मौजूद है, वह उस वृक्ष के पास गया और उसे आलिंगनबद्ध
कर लिया। उसका आलिंगन पाते ही वृक्ष पर फूल खिल उठे। प्रेम, प्रतीक्षा और प्रतिबद्धता का प्रतीक बने उस
वृक्ष को आज हम बादाम के पेड़ के रूप में जानते हैं।
अब जिस
पेड़ की उत्पत्ति की कहानी ही इतनी रूमानी और चमत्कारिक हो, उसके गुणों और उपयोगों तथा उससे जुड़ी दंतकथाओं का भी दिलचस्प
होना लाजिमी है। बादाम का कई संस्कृतियों में विशेष महत्व रहता आया है। यहूदी
संस्कृति में इसका खास धार्मिक और पौराणिक महत्व है। कहा जाता है कि यहूदी धर्म के
संस्थापक मोजेस (मूसा) के भाई ऐरन अपने हाथ में जो दंड लेकर चलते थे, उसमें चमत्कारिक शक्तियां थीं। यह दंड बादाम
के पेड़ की लकड़ी से ही बना था। इसकी एक ओर मीठे और दूसरी ओर कड़वे बादाम उगते थे।
यदि लोग ईश्वर के कहे अनुसार चलते, तो
दंड पर मीठे बादाम के फल पकते और यदि वे ईश्वर के आदेश का उल्लंघन करते, तो दंड पर कड़वे बादाम उग आते। आज भी यहूदी
लोग खास पर्वों पर बादाम की टहनियां लेकर अपने धर्मस्थल सिनेगॉग में जाते हैं।
यहूदियों के लिए बादाम के पेड़ का महत्व इसलिए भी है कि इसराइल में साल की पहली-पहली बहार इसी पेड़ पर आती है।
इटली, ग्रीस से लेकर मध्य पूर्व के देशों तक में
विवाह समारोहों में मीठे बादाम परोसे जाने का रिवाज चला आया है। बादाम के ऊपर शकर
का रंग-बिरंगा आवरण चढ़ाकर ये मीठे बादाम
तैयार किए जाते हैं। इसके पीछे भावना यह है कि ताजा बादामों का स्वाद कुछ मीठा और
कुछ कड़वा होता है। इस लिहाज से ये जीवन के प्रतीक होते हैं क्योंकि हमारे जीवन में
भी तो कुछ मीठा और कुछ कड़वा रहता है। इस मीठे-कड़वे बादाम पर शकर का आवरण चढ़ाकर यह कामना की जाती है कि
नवविवाहितों का जीवन कड़वा कम और मीठा अधिक रहेगा। कुछ जगहों पर दूल्हा-दुल्हन को पांच बादाम भेंट किए जाते हैं, जो पांच नेमतों के सूचक होते हैं। ये हैं
स्वास्थ्य, धन, प्रसन्नाता,
उर्वरता तथा दीर्घायु।
कहीं-कहीं शादी में आए मेहमानों को भी
इसी प्रकार पांच बादाम भेंट किए जाते हैं।
पुर्तगाल
के दक्षिणी इलाके में बादाम के पेड़ प्रचुरता से पाए जाते हैं। यहां इतने पेड़ कैसे
आए? इसके पीछे एक बड़ी ही मार्मिक कहानी
बताई जाती है। बहुत पहले इस इलाके में इब्न अलमुनसिम नामक राजकुमार हुआ करता था।
उसे ठेठ उत्तरी योरप की राजकुमार गिल्डा से प्रेम हो गया। दोनों विवाह बंधन में
बंध गए। शुरुआती समय तो अच्छा बीता लेकिन फिर गिल्डा को उसके देश की याद सताने
लगी। खास तौर पर वहां के बर्फ से ढंके पेड़ और मैदान देखने के लिए वह तरस गई। घर की
याद में वह इस कदर अवसादग्रस्त हो गई, कि
बीमार पड़ती चली गई। उसका दुख देखकर इब्न अलमुनसिम भी बेहद दुखी था। वह पत्नी का दुख
दूर करने की कोई युक्ति खोजने लगा। एक दिन उसे युक्ति मिल ही गई। उसने आदेश दिया
कि राजमहल की दीवारों से लेकर दूर, जहां
तक नजर जाए, वहां तक बादाम के हजारों पौधे लगाए
जाएं। जब पेड़ उग आए और उन पर बहार आ गई, तो
राजकुमार ने राजमहल की सारी खिड़कियां खुलवा दीं और अपनी बीमार पत्नी को ले जाकर
बाहर का नजारा दिखाया। सफेद फूलों से आच्छादित पेड़ों का नजारा ठीक ऐसा था मानो दूर-दूर तक चारों ओर बर्फ की चादर ढंकी हो। यह
देखकर गिल्डा का दिल खुशी से झूम उठा। देखते ही देखते वह स्वस्थ हो गई। इसके बाद
हर साल जाड़े में जब बादाम पर बहार आती, तो
अपने मायके-सा 'हिमाच्छादित"
दृश्य देखकर गिल्डा
खुश हो जाती। उसका सारा दुख जाता रहा और जीवन खुशियों से भर गया।
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