यदि आपको
किसी के मरणोपरांत विवाह में आमंत्रित किया जाए, तो कैसा लगेगा?
चौंक गए ना? मगर कुछ देशों में ऐसे विवाह होते आए हैं और
अब भी हो रहे हैं...!
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क्या
प्रेतात्माएं भी शादी करती हैं?
यह प्रश्न अजीब लग
सकता है मगर अजूबों से भरी इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं। जी हां, कुछ देशों में ऐसे विवाहों की भी परंपरा है, जिनमें दूल्हा या दुल्हन या फिर दोनों ही अब
इस संसार में नहीं रहे। चीन,
जापान, कोरिया व सूदान जैसे देशों में ऐसी परंपरा
रही है और फ्रांस में यह तुलनात्मक रूप से नई पहल है। संभवत: इस किस्म की सबसे प्राचीन परंपरा चीन में
रही है, जहां यह करीब 2200 साल पहले शुरू हुई। चीनी समाज में विवाह
परंपरा का महत्व इस कदर था कि किसी अविवाहित के मृत्यु को प्राप्त होने पर उसकी
आत्मा को चैन न मिलने का अंदेशा लोगों को रहता था। यह भी माना जाता था कि दिवंगत
के अविवाहित रह जाने पर उसके परिवार पर किसी-न-किसी प्रकार की विपदा आ सकती है।
इसलिए उसका विवाह कराना जरूरी हो जाता है। अमूमन अविवाहित दिवंगत के लिए कोई
अविवाहित दिवंगत जोड़ीदार ही ढूंढा जाता और पूरे रस्मो-रिवाज से विवाह संपन्ना कराया जाता। हैरत की बात तो यह है कि आज
के दौर में भी इस परंपरा के पालन की घटनाएं सामने आती रहती हैं, हालांकि इसे कानूनन अवैध घोषित कर दिया गया
है!
इस तरह का
'प्रेत विवाह" उस स्थिति में भी किया जाता है, जब किसी व्यक्ति की सगाई तो हो गई हो लेकिन
शादी से पहले ही वह चल बसा हो। यदि पुरुष का देहांत हुआ हो, तो उसका मरणोपरांत विवाह कराने से न केवल
उसकी आत्मा को शांति मिलती है,
बल्कि उसकी मंगेतर को
उसकी ब्याहता होने के सारे अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। अक्सर ऐसे विवाह में
दूल्हे के प्रतीक स्वरूप एक सफेद मुर्गा विवाह मंडप में बिठाया जाता है। इसी
प्रकार यदि सगाई के बाद महिला की मृत्यु हो जाए, तो उसका विवाह करना जरूरी माना जाता है क्योंकि अंतिम संस्कार
की रस्में ससुराल पक्ष द्वारा ही अदा की जाती हैं। ऐसे में जो रस्म निभाई जाती है, उसमें विवाह और शवयात्रा के मिले-जुले तत्व होते हैं। मरणोपरांत विवाह की
रस्म चीन में इसलिए भी व्याप्त रही है क्योंकि छोटे भाई या बहन की शादी तब तक नहीं
की जाती, जब तक कि बड़े की न हो जाए। फिर भले
ही बड़े भाई या बहन की शादी मरणोपरांत क्यों न हो!
जापान में
भी मरणोपरांत विवाह की रस्म होती है मगर वहां दिवंगत का विवाह किसी जीवित व्यक्ति
से करने के बजाए गुड्डे या गुड़िया के साथ किया जाता है। कांच के आवरण के भीतर
दिवंगत व्यक्ति का चित्र तथा उसकी पत्नी/ पति
के प्रतीक स्वरूप गुड़िया/
गुड्डे को रखा जाता
है।
अफ्रीकी
देश सूदान के एक समुदाय में मरणोपरांत विवाह थोड़ा अलग होता है। वहां यदि कोई पुरुष
बिना शादी के मृत्यु को प्राप्त होता है, तो
उसके भाई या अन्य रिश्तेदार से ही उसकी मंगेतर की शादी कर दी जाती है। मगर यह भाई
या अन्य रिश्तेदार यहां केवल दिवंगत का प्रतिनिधि भर होता है। महिला को उससे जो
बच्चे होते हैं, उनका पिता उस दिवंगत व्यक्ति को ही
माना जाता है।
फ्रांस
यूं तो पश्चिमी विश्व के आधुनिकतम देशों में से एक है लेकिन एक तरह के मरणोपरांत
विवाह का चलन वहां भी है और यह पूरी तरह वैध भी है। प्रथम विश्व युद्ध में बड़ी
संख्या में शहीद हुए सैनिकों की मंगेतरों ने उनके मरणोपरांत उनसे विवाह रचाया था।
फिर 1959 में एक बांध फूटने से 423 लोग मारे गए। जब तत्कालीन राष्ट्रपति
चार्ल्स द गॉल घटनास्थल का मुआयना करने पहुंचे, तो एक महिला ने उनसे गुजारिश की कि उसे इस त्रासदी में मारे गए
अपने मंगेतर से शादी करने की अनुमति दी जाए। राष्ट्रपति इस पर द्रवित हो उठे और
कुछ ही दिन बाद संसद में कानून बनाकर ऐसे विवाह का रास्ता साफ कर दिया गया।
हालांकि इसके लिए राष्ट्रपति से अनुमति लेनी पड़ती है और कई शर्तों पर खरा उतरना
होता है।
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