Sunday 10 December 2017

आफत की नन्ही पुड़िया

क्या नन्ही-सी गिलहरी इतने बड़े कारनामे कर सकती है कि सूरज को ही निगल ले या विभिन्ना लोकों को आपस में लड़वा दे? विश्व की कुछ पौराणिक मान्यताएं तो ऐसा ही कहती हैं...
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अमेरिका के एक आदिवासी समुदाय में ऐसा माना जाता आया है कि सूर्य ग्रहण के लिए काली गिलहरी जिम्मेदार है। उस इलाके में पाई जाने वाली यह काली गिलहरी अपनी शरारतों के लिए ख्यात, या कहें कुख्यात है। अपने शरारती स्वभाव के चलते ही यह समय-समय पर सूर्य को निगलने की कोशिश करती है और इसी से सूर्य ग्रहण होता है। जाहिर है, आदि काल में लोगों के लिए सूर्य का यूं अंधकार की ओट में चले जाना भयाक्रांत करने वाला अनुभव था। तो इस 'आपदा" को दूर करने के प्रयास करना भी लाजिमी था। ये आदिवासी मानते थे कि यदि गिलहरी को डरा दिया जाए, तो वह सूर्य को खाने का प्रयास करना छोड़ सकती है। तो जैसे ही सूर्य ग्रहण शुरू होता और किसी की उस पर निगाह पड़ती, चारों ओर मुनादी कर दी जाती कि काली गिलहरी सूर्य को निगल रही है। बस, सारे लोग अपने-अपने घर से निकल आते और गिलहरी को डराने के लिए ज्यादा से ज्यादा शोर मचाने में जुट जाते। बर्तन-भांडे, घंटे-घड़ियाल बजाए जाते। साथ ही चीखने-चिल्लाने के स्वर भी इनमें मिला दिए जाते। अक्सर इनके पालतू श्वान भी इस शोरगुल में अपना सुर मिला देते। फिर, जैसे-जैसे ग्रहण समाप्त होने लगता, लोग खुशी के मारे झूम उठते। फिर से मुनादी होती कि काली गिलहरी डर गई है। ग्रहण समाप्त होते ही चारों ओर खुशियां फैल जातीं। लोगों को यकीन हो जाता कि उनके शोर-गुल के कारण ही काली गिलहरी ने डर के मारे सूरज को खाने का इरादा त्याग दिया।
यूं गिलहरी को बड़ा मासूम व निरीह प्राणी माना जाता है। ऐसे में यह दिलचस्प है कि कहीं इसे इतनी बड़ी 'शरारत" के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए। एक अन्य अमेरिकी समुदाय में लाल गिलहरी की ख्याति भी बदमिजाजी के लिए है। कहा जाता है कि बहुत पहले यह गिलहरी भालू जितनी बड़ी हुआ करती थी और किसी पर भी हमला बोल दिया करती थी। तब ईश्वर ने उसका आकार छोटा कर दिया, ताकि वह दूसरों को नुकसान न पहुंचा सके। मगर ईश्वर उसका स्वभाव बदलना भूल गए। इसीलिए आकार छोटा होने के बावजूद लाल गिलहरी की बदमिजाजी नहीं गई। अब चूंकि वह किसी को शारीरिक नुकसान तो पहुंचा नहीं सकती, सो यूं ही चिल्ला-पुकार करती फिरती है। यही नहीं, वह विभिन्ना प्राणियों के कान भरकर उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ भड़काती है, ताकि वे आपस में लड़ मरें!
स्कैंडिनेवियाई देशों की पौराणिक मान्यताओं में रैटाटॉस्कर नामक गिलहरी का जिक्र आता है। यह उस महावृक्ष पर रहती है, जो नौ लोकों को जोड़ता है। रहती ही नहीं है, यह वृक्ष के सबसे निचले भाग, यानी सबसे निचले लोक से लेकर सबसे ऊंचे भाग, यानी सबसे ऊंचे लोक तक आती-जाती है व संदेशवाहक का काम करती है। हालांकि यहां भी अक्सर वह शरारत पर उतर आती है और एक से दूसरे लोक को भेजे जाने वाले संदेशों में अपनी ओर से मिर्च-मसाला मिला देती है, जिससे लोकों के बीच ठन जाती है!

पश्चिमी देशों में गिलहरी के सपनों को लेकर भी दिलचस्प धारणाएं चली आई हैं। कोई कहता है कि सपने में गिलहरी को देखने का मतलब है कि आपको व्यक्तिगत संबंधों में प्रेम का और व्यवसाय में मुनाफे का अभाव है। वहीं कोई कहता है कि अगर सपने में आप गिलहरी को भोजन इकट्ठा करते हुए देखें, तो इसका मतलब है कि आपको धनलाभ होने वाला है। यदि सपने में आप गिलहरी को खाना खिला रहे हैं, तो इसका मतलब हुआ कि आपके पास धन-धान्य की कमी नहीं है। यानी बहुत कुछ कहती है गिलहरी...!

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