मानव और
मच्छर की जंग में मच्छर ही हर बार सेर का सवा सेर होकर सामने आता है। ऐसे में
इंसान करे तो क्या करे...?
वह खुद को दिलासा ही
दे सकता है कि उसे परास्त करने वाला मच्छर दरअसल कोई मामूली, तुच्छ प्राणी नहीं, बल्कि इससे बढ़कर कोई शक्ति है...।
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आप चैन की
नींद सो रहे हैं और तभी कान में एक अप्रिय 'गुनगुन"
की ध्वनि आपको जगा
देती है। मच्छर ने आप पर और आपकी नींद पर एक साथ हमला बोल दिया है...। अब शुरू होती है जंग प्रकृति के 'सबसे विकसित" प्राणी (यानी कि आप)
और एक तुच्छ, अदना प्राणी (मच्छर)
के बीच। यह वह जंग है, जिसमें डील-डौल या बुद्धि से विजेता का फैसला हो, यह कतई जरूरी नहीं है। छोटी-छोटी बलाएं अक्सर बड़ी बलाओं के मुकाबले कहीं अधिक पीड़ादायक
सिद्ध होती हैं और मच्छर भी इससे अलग नहीं है। मच्छर और मानव की जंग में भी तमाम
इंसानी जधेजहद के बावजूद पलड़ा ले-देकर मच्छर के ही पक्ष में झुका नजर
आता है। मनुष्य उसे मारने-भगाने के उपाय-दर-उपाय करता जाता है और वह है कि हर बार सेर का सवा सेर होकर
सामने आ धमकता है। ऐसे में इंसान करे तो क्या करे...? बहुत आसान है। वह खुद को यह दिलासा तो दे ही
सकता है कि उसे परास्त करने वाला मच्छर दरअसल कोई मामूली, तुच्छ प्राणी नहीं, बल्कि
इससे बढ़कर कोई शक्ति है...। जी हां, मच्छरों से परेशान इंसान ने इनकी उत्पत्ति को लेकर जो मिथक गढ़े
हैं, वे बड़े ही रोचक हैं।
अमेरिका
के एक आदिवासी समुदाय के लोग बताते हैं कि सैंकड़ों साल पहले एक राक्षस हुआ करता था, जो मानव के मांस और रक्त का शौकीन था। वह
रोज किसी-न-किसी का शिकार करता। लोग उससे आक्रांत थे। आखिर एक दिन पंचायत
बैठी और इस बात पर विचार-विमर्श होने लगा कि राक्षस के आतंक
से कैसे निपटा जाए। एक वीर आदमी आगे आया और उसने दावा किया कि उसके पास राक्षस को
मारने की योजना है। वह जाकर उस स्थान पर लेट गया, जहां राक्षस अक्सर आता था। जब राक्षस आया, तो उसने मृत होने का नाटक किया। राक्षस खुश
हो गया कि आज तो हट्टा-कट्टा शिकार तैयार ही पड़ा मिल गया।
वह उसे उठाकर अपनी गुफा में ले गया। उसे गुफा में पटककर राक्षस चूल्हे के लिए लकड़ी
लाने बाहर चला गया। इस बीच वह वीर उठा और उसने राक्षस का विशाल छुरा उठा लिया। कुछ
ही देर में राक्षस का बेटा गुफा में आया, तो
उसने उस नन्हे राक्षस को दबोच लिया और छुरा उसकी गर्दन पर रखकर पूछा, 'सच-सच बताओ,
तुम्हारे पिता का दिल
कहां है, वर्ना मैं तुम्हारी गर्दन काट
दूंगा।" डरा हुआ नन्हा राक्षस बोल उठा, 'पिताजी का हृदय उनकी बायीं एड़ी में है।" तभी राक्षस लकड़ी लेकर लौटा। जैसे ही उसने
गुफा में अपना बायां पैर रखा,
वीर मानव ने छुरे से
उसकी एड़ी काटकर अलग कर दी। राक्षस वहीं ढेर हो गया। ...मगर मरते-मरते वह बोला, 'तुमने भले ही मुझे मार दिया हो लेकिन मैं
तुम मनुष्यों का खून पीना नहीं छोड़ूंगा।" वीर
मानव हंस पड़ा और बोला,
'देखता हूं तुम कैसे
हमारा खून पीते हो!"
उसने राक्षस के शरीर
के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और हर टुकड़े को अलग से
जला दिया। फिर सारी राख एकत्रित कर हवा में उड़ा दी मगर यह क्या...! राख का एक-एक कण एक उड़ते हुए जंतु में बदल गया। देखते ही देखते हवा में
राख के बजाय मच्छरों की फौज उड़ रही थी। इस प्रकार मच्छर अस्तित्व में आए और आज भी
अपने मूल स्वरूप 'राक्षस" की मौत का बदला हम मनुष्यों से ले रहे हैं...!
मच्छर की
उत्पत्ति से जुड़ी वियतनामी कहानी में कोई राक्षस-वाक्षस नहीं है, बल्कि
प्रेम और धोखा है। इसके अनुसार,
एक व्यक्ति अपनी पत्नी
से बेहद प्रेम करता था लेकिन भरी जवानी में पत्नी चल बसी। वह उसके बिना जीने की
कल्पना भी नहीं कर सकता था,
सो मृत्यु के देवता से
गुजारिश की कि वे उसकी पत्नी को फिर जिंदा कर दें। देवता ने कहा कि यदि तुम अपने
खून की तीन बूंदें अपनी पत्नी के होंठों पर डालोगे, तो वह जी उठेगी। पति ने खुशी-खुशी अपना खून बहाया और तीन बूंदें पत्नी के होठों पर डाल दीं।
पत्नी की मृत देह में जान आ गई। पति की खुशी का ठिकाना न रहा। ... मगर उसकी यह खुशी ज्यादा दिन नहीं ठहरी।
पत्नी को प्रेम से अधिक पैसा प्यारा था। एक दिन वह एक अमीर जहाजी के साथ भाग गई! पति ने उसे रोकना चाहा लेकिन वह नहीं रुकी।
तब पति ने कहा, 'जाना है तो जाओ लेकिन पहले मेरे खून
की वे तीन बूंदें मुझे लौटा दो,
जो तुम्हें जिंदा करने
के लिए मैंने दी थीं।"
पति से पीछा छुड़ाने के
लिए पत्नी ने अपनी उंगली में सुई चुभोई और तीन बूंद खून निकाल लिया। जैसे ही उसने
ऐसा किया, वह ढेर होकर गिर पड़ी और फिर से मर
गई! कहा जाता है कि उसी की आत्मा मच्छर
के रूप में लौट आई और फिर से अपना मानव रूप पाने के लिए पति के खून की तीन बूंदें
तलाशने लगी। उन्हीं तीन बूंदों की तलाश में आज भी मच्छर हमारा खून चूसते हैं।
यह तो हुआ
मच्छरों के खून चूसने का मिथकीय राज लेकिन उनके द्वारा हमारे कान के पास आकर गुनगुनाने
का क्या कारण है? अफ्रीका का एक मिथक इसका भी जवाब
देता है। इसके अनुसार,
मच्छर शुरूआत से ही
बहुत शैतान था। वह जा-जाकर जंगल के सारे प्राणियों के कान
में कुछ-न-कुछ उल्टी-सीधी बात करता रहता था। उसकी बकवास
से तंग आकर एक दिन जंगली छिपकली ने अपने कानों में पेड़ की टहनियां लगा लीं। उसे इस
तरह देखकर जंगल के कुछ अन्य पशु डर गए। डर के मारे वे अजीब हरकतें करने लगे। इन
हरकतों के कारण कुछ और प्राणी डर गए। डर की श्र्ाृंखला आगे बढ़ती गई। जंगल का जीवन
अस्त-व्यस्त हो गया। इसी ऊहापोह में बंदर
के हाथों उल्लू के बच्चे की हत्या हो गई। बच्चे की मौत का विलाप करती मादा उल्लू
सुबह सूरज को नींद से जगाने की अपनी ड्यूटी नहीं निभा पाई और भोर नहीं हुई! इस सारे गड़बड़-घोटाले से तंग आकर जंगल के प्राणियों ने सभा कर पता लगाने की
कोशिश की कि इसका जिम्मेदार आखिर कौन है। छानबीन का निष्कर्ष निकला कि मच्छर ही
दोषी है। जब मच्छर ने यह सुना,
तो वह वहां से भाग खड़ा
हुआ और छिप गया। आज भी वह छिपा रहता है और रात में हमारे कान के पास आ-आकर पूछता है, 'क्या तुम अब भी मुझसे नाराज हो...?"
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