Sunday, 22 May 2016

कहीं चोरी न हो जाएं सांसें...!

जब बोतलबंद हवा के रूप मंे सांसें बेचने की तैयारी हो रही है, तो यह जानना दिलचस्प होगा कि हवाओं और सांसों को लेकर इंसान क्या-क्या विश्वास पालता आया है...
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हवाएं 'मुक्त" भले ही हों मगर लगता है उनके 'मुफ्त" होने के दिन लदने वाले हैं। कम से कम शुद्ध हवा के...। प्रदूषित हवा के दौर में व्यवसाय का मौका पाकर एक कनाडाई फर्म ने भारत में, खास तौर पर दिल्ली में शुद्ध हवा बेचने का इरादा जताया है। इससे पहले यह कंपनी चीन में अपनी बोतलबंद हवा बेचकर अच्छा-खासा मुनाफा कमा चुकी है। यह परफ्यूम या डियो की शीशी की तरह होता है, जिसमें से स्प्रे के रूप में हवा निकलती है और मास्क के माध्यम से इस हवा में सांस ली जा सकती है। बोतलबंद हवा खरीदकर सांस लेने का विचार आज हमें भले ही अटपटा और यहां तक कि आपत्तिजनक भी लगे मगर कौन जाने, दूर-निकट के भविष्य में यह एक आम चलन ही हो जाए...! आखिर बोतलबंद पानी की कल्पना भी तो कभी इंसान को इतनी ही अटपटी और आपत्तिजनक लगी होगी...!
वायु भले ही अदृश्य हो लेकिन जीवन के लिए आवश्यक तत्व के रूप में इसका महत्व मनुष्य शुरू से ही पहचान गया था। इसीलिए उसने पृथ्वी, जल, अग्नि के साथ-साथ वायु को भी पूजना शुरू कर दिया था। वायु को किसी देवता या देवी के रूप में पूजे जाने का इतिहास हर प्राचीन संस्कृति में मिलता है। कई जगह तो अलग-अलग दिशा से चलने वाली हवाओं को अलग-अलग नाम से और अलग-अलग रूप में भी पूजा गया। मसलन, ग्रीस में उत्तरी हवा को बोरियस के नाम से जाना जाता था और इसे जाड़े का वाहक माना गया। इसी तरह जेफिरस (पश्चिमी हवा) को वसंत का वाहक, नोटोस (दक्षिणी हवा) को तूफानों का वाहक और यूरस (पूर्वी हवा) को वर्षा का वाहक माना गया। इन चारों को रात्रिकालीन आकाश के देवता तथा भोर की देवी की संतान माना जाता था। इन हवाओं को कभी पंख वाले देवताओं के रूप में चित्रित किया जाता था, तो कभी अश्वों के रूप में। कहा जाता था कि ये अश्व आंधियों के देवता एओलस के अस्तबल में रहते हैं। ये तो हुई पृथ्वी पर चलने वाली हवाएं, जिनसे हम मनुष्यों का वास्ता पड़ता है और जिन्हें हम अपनी सांसों के माध्यम से भीतर लेते हैं। ग्रीस में 'ईथर" नामक ऊपरी, शुद्ध हवा की अवधारणा भी थी, जिसमें देवता सांसें लेते हैं। इस हवा को भी देवता रूप में चित्रित किया जाता था। मिस्र में ऐसा विश्वास था कि अग्नि देवता की सांस से वायु की उत्पत्ति हुई।
सांस के रूप में जब हवा शरीर में प्रवेश करती है, तो इसे प्राण बख्शती है। इसका यही गुण इसे जीवनदायी बनाता है। प्राचीन मिस्र में कहा जाता था कि देवी-देवता मिट्टी की निर्जीव देह की नाक व मुंह के पास जीवन की कुंजी ले जाते हैं, तब देह को पहली सांस प्राप्त होती है और वह जीवंत हो उठती है। कई अन्य संस्कृतियों मंे भी इससे मिलते-जुलते अंदाज में प्रथम श्वास की प्राप्ति से निर्जीव देह में प्राण का संचार होने का वर्णन मिलता है। अब, जबकि सांस के देह में प्रवेश करने से ही उसमें प्राण का संचार होता है, तो जाहिर है कि सांस छिन जाने से वह पुन: निष्प्राण हो जाती है। सांस के यूं छिन जाने के बारे में भी कुछ रोचक मान्यताएं चली आई हैं। पूर्वी चीन में कहा जाता है कि चूहे मनुष्य की सांस चुराने की क्षमता रखते हैं! मानव श्वास पाकर चूहे ताकतवर बन जाते हैं, यहां तक कि मनुष्य का रूप भी धारण कर सकते हैं! इसलिए रात को, जब मनुष्य सोते हैं, तब चूहे उनकी नाक के पास आसन जमाकर उनकी सांस चुरा लेते हैं...! चीन में यदि चूहा 'सांस चोर" माना जाता है, तो कुछ पश्चिमी देशों में बिल्ली इसी गुनाह के लिए बदनाम है। इन देशों में यह अंधविश्वास चला आया है कि बिल्लियां मानव शिशुओं के पास जाकर उनकी सांसें चुरा लेती हैं। सन् 1791 में इंग्लैंड में एक शिशु की रहस्यमय मृत्यु की जांच कर रहे अधिकारी ने तो बाकायदा छानबीन करके यह निष्कर्ष दिया कि एक बिल्ली ने शिशु की सांसें चुरा लीं, जिससे उसकी मृत्यु हो गई!

इसी प्रकार अमेरिका लाए गए अफ्रीकी गुलामों के वंशज 'बू हैग" नामक दुष्ट आत्माओं को मानते आए हैं, जो मनुष्यों की सांसें चुराती हैं। बू हैग के पास न तो अपनी चमड़ी होती है और न ही अपनी सांसें। अपनी पहचान गुप्त बनाए रखने के लिए वे मनुष्य की चमड़ी छीनकर धारण कर लेती हैं। ऊर्जा प्राप्त करने के लिए वे सोते मनुष्यों की सांस चुराती हैं। मगर ऐसा करते वक्त वे इस बात का ध्यान रखती हैं कि मनुष्य जीवित रहे क्योंकि ऊर्जा का अगला 'रिचार्ज" लेने के लिए भी तो उन्हें वापस आना पड़ेगा। सो वे एक बार में बस इतनी सांस चुराती हैं कि सो रहा इंसान बेहद गहरी नींद में चला जाए। जागने पर उसे अपनी सांस कुछ उखड़ी हुई-सी लगेगी और थकान महसूस होगी। हां, यदि मनुष्य ने बू हैग के साथ संघर्ष करने की कोशिश की, तो बू हैग उसकी चमड़ी ही उड़ा ले जाएगी...! जो भी हो, सांस चुराने का यह कार्यक्रम बू हैग को रात में ही निपटाना होता है। कारण यह कि सांस चुराने के लिए उसे अपनी वस्त्रनुमा चमड़ी घर छोड़कर आना होता है और यदि पौ फटने से पहले उसने घर लौटकर फिर से चमड़ी धारण नहीं कर ली, तो उसे सदा के लिए बिना चमड़ी के ही रहना होगा। लोगों ने बू हैग के हाथों अपनी सांसों की चोरी की रोकथाम के लिए भी बड़ा ही मजेदार उपाय खोज निकाला। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप अपने बिस्तर के पास एक मोटी झाड़ू रख दें, तो सुरक्षित रह सकते हैं। सांस चुराने आई बू हैग का ध्यान इससे बंट जाएगा और वह झाड़ू के तिनके गिनने बैठ जाएगी। इस गिनती के चक्कर में रात बीत जाएगी और आपकी सांसें महफूज रहेंगीं...! 

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