इतिहास की
राहें और राहों का इतिहास अनेकानेक दिलचस्प किस्सों से भरा पड़ा है...।
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कभी सोचा
है, यदि सड़कें न होतीं तो जीवन कैसा
होता? कैसे होता सफर, कैसे होता पर्यटन, कैसे होता व्यापार और कैसे निभती सामाजिकता? सीमाओं तक किस प्रकार पहुंचते सैनिक और रोगी
कैसे पहुंचते चिकित्सक के पास?
कह सकते हैं कि सड़कें
न होतीं तो सभ्यता भी न होती। कच्चे रास्तों ने जब पक्की सड़कों का रूप लेना शुरू
किया, तो मनुष्य ने अपने विकासक्रम में एक
लंबी छलांग लगाई। पहिए के आविष्कार की सार्थकता सिद्ध करने के लिए सड़कें जरूरी
थीं।
सड़कें
बनीं, तो लंबे-लंबे सफर शुरु हुए। ऐसा नहीं है कि इससे पहले सफर नहीं होते थे।
होते थे, मगर सड़कों ने उन्हें गति दी, व्यवस्थित और सुगम बनाया। लंबे सफर की
संभावनाओं के रोमांच के साथ ही इंसान के मन में अनजान राहों की अनिश्चितताओं का भय
भी व्याप्त हुआ। तब उसने अपनी सुरक्षा के लिए और अपने सफर के उद्देश्य की पूर्ति
के लिए किसी दिव्य शक्ति का आह्वान करना जरूरी समझा। प्राचीन रोम में जहां एबियोना
जाते सफर की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली देवी के रूप में पूजी जाती थीं, वहीं एडियोना वापसी के सफर की देवी मानी
जाती थीं। देश कोई भी हो,
प्राचीन मार्गों के
किनारों पर अक्सर किसी आराध्य के छोटे-बड़े
देवालय बनाए जाते थे। इनकी उपस्थिति मात्र से और इनके समक्ष शीष नवाने से सफर के
दौरान किसी परा शक्ति का सुरक्षा कवच प्राप्त होने का आभास होता था। यूनान में
प्रकाश के देवता अपोलो को सुरक्षित यात्रा के लिए प्रसन्ना किया जाता था। इसका एक
कारण तो यह था कि यात्रा दिन के प्रकाश में की जाती थी और दूसरा कारण यह कि सूर्य
के रथ का सारथी होने के नाते अपोलो स्वयं एक दिव्य यात्री थे। सफर के लिए अच्छा
मौसम अनिवार्य था, सो कई जगहों पर सुरक्षित सफर के लिए
मौसम के देवताओं का आह्वान करने के प्रमाण भी मिलते हैं। यूनान में सफर के दौरान
अच्छे मौसम के लिए आर्टिमिस देवी से प्रार्थना की जाती, तो मध्य पूर्व में बालशामिन देवता से। जापान में लोग रास्ते में
भूत-पिशाचों से रक्षा के लिए याचीमाता
हिमी और याचीमाता हिको नामक देवियों से आग्रह करते थे। मेसोपोटामिया के लोग मानते
थे कि हासामेलिस देवता उन्हें अदृश्यता का चोगा ओढ़ाकर उनकी यात्रा सुरक्षित पूरी
कराते हैं।
सड़कें
बनीं, तो यात्राओं को दिशा मिली मगर जहां
दो राहें आकर एक-दूसरे से मिल, आगे बढ़ जातीं, वहां भ्रम का जिन्ना उठ खड़ा होता। अब इस राह चलें या उस राह? दायें मुड़ें या बायें या फिर सीधे ही चलते
जाएं? चौराहों और तिराहों ने आदि काल के
यात्रियों को काफी आक्रांत किया। इतना, कि
इनसे पार लगाने के लिए उन्हें किसी पृथक आराध्य की जरूरत महसूस हुई। रोम में तो
तिराहों पर रक्षा करने के लिए एक पृथक देवी थीं, ट्रिविया। माना जाता था कि इनके तीन सिर हैं, जिनकी मदद से वे एक ही समय में तीन दिशाओं
में देख सकती हैं। 'ट्रिविया" का शाब्दिक अर्थ ही 'तीन राहें" होता है। तिराहों पर ट्रिविया देवी की
मूर्ति स्थापित की जाती थी,
जहां यात्री उन्हें
चढ़ावा चढ़ाते थे। यूनान में हेकटी देवी भी इसी तरह तिराहों की देवी के रूप में पूजी
जाती थीं। उन्हें प्रसन्ना करने के लिए यात्री अपने भोजन का एक हिस्सा चढ़ावे के
तौर पर तिराहे पर छोड़ जाते थे। अक्सर तिराहों पर एक खंभा खड़ा कर उस पर तीन दिशाओं
में तीन मुखौटे लटका दिए जाते थे। ये देवी हेकटी के प्रतीक होते और इनके जरिये
देवी का आह्वान किया जाता कि वे यात्रियों को सही राह चुनने में मदद करें।
जहां दो
राहें आपस में मिलती हैं,
उस स्थान को दो लोकों
के मिलन-स्थल के रूप में भी देखा गया। ऐसी
मान्यताएं रही हैं कि इस स्थान पर परालौकिक गतिविधियां होती हैं। इसलिए चौराहों पर
तरह-तरह के टोने-टोटके करने के रिवाज अनेक संस्कृतियों में
मिलते हैं। मध्य योरप के बोमरवॉल्ड पर्वतों में बसने वाली जनजातियों में यह
विश्वास था कि 30 अप्रैल की रात को चौराहों पर
चुड़ैलों की सभा होती है। सो इस रात जांबाज युवा चौराहों पर जाकर कोड़े फटकारते थे, जिससे ये चुड़ैलें भाग खड़ी हों। इसी प्रकार 23 जून को सेंट जॉन्स ईव के मौके पर चौराहों पर
अलाव जलाकर दुष्टात्माओं को भगाने का यत्न किया जाता। एक समय इंग्लैंड में
मृत्युदंड प्राप्त अपराधियों तथा आत्महत्या करने वाले लोगों को चौराहों पर दफनाया
जाता था। इसके पीछे मान्यता यह थी कि इस तरह मरने वालों की आत्मा बेचैन रहती है और
लोगों को परेशान करने के लिए आ सकती है। चौराहे पर दफन करने से आत्मा चकरा जाती है
कि किस ओर जाए! इस प्रकार यह लोगों को परेशान करने
के लिए बस्ती में नहीं आ पाती...। सन् 1823 में इसी प्रकार एक चौराहे पर हो रहे अंतिम
संस्कार में जुटी भीड़ के कारण सम्राट जॉर्ज चतुर्थ का काफिला थम गया और वे विलंब
से महल पहुंच सके। इस पर नाराज सम्राट ने ब्रिटिश संसद से आग्रह किया कि वह कानून
बनाकर चौराहों पर दफन के इस रिवाज को समाप्त कराए। तब जाकर यह परंपरा बंद हुई। सच, इतिहास की राहें और राहों का इतिहास ऐसे ही
अनेकानेक दिलचस्प किस्सों से भरा पड़ा है।
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