बैंगन को
कभी प्रेम का फल कहा गया,
तो कभी पागलपन का फल।
इसे बीमारियों की जड़ भी माना गया और शुभत्व का प्रतीक भी।
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मध्य-पूर्वी देशों में एक कहावत है कि तीन
बैंगनों का सपना देखना खुशी का प्रतीक होता है। बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती
है। जिस सब्जी (तकनीकी रूप से फल) के बारे में हमारे यहां अनेक लोगों की राय
है कि यह 'बेगुण" है, उसे सपने में देखना भला खुशी का प्रतीक कैसे हुआ? और वह भी एक नहीं, तीन-तीन बैंगन! यह कहावत इतना तो जाहिर करती ही है कि मध्य-पूर्व में बैंगन किस कदर लोकप्रिय रहा है।
सच भी यह है कि हालांकि बैंगन की उत्पत्ति भारत में हुई मानी जाती है लेकिन इसे
सबसे ज्यादा प्यार व लोकप्रियता मिली मध्य-पूर्व में। तुर्की में यह इस कदर खाया जाता रहा है कि वहां
दक्षिणी हवाओं का नाम ही 'बैंगन की हवा" रख दिया गया था। कारण यह कि ये हवाएं उन
चूल्हों की आग भड़काती थीं,
जिन पर गली-गली में बैंगन पकाया जा रहा होता। वैसे
तुर्की में आज भी इसका उपयोग इतने व्यापक तौर पर होता है कि एक किस्सा यह भी है कि
जब एक विदेशी अतिथि से भोजन के उपरांत पूछा गया कि और क्या लीजिएगा, तो बेचारे को कहना पड़ा, 'बस, एक ग्लास पानी ... और
कृपया उसमें बैंगन मत डालिएगा!"
बैंगन की
इतिहास देखें, तो हम पाते हैं कि यह जहां-जहां गया, वहां या तो जबर्दस्त रूप से लोकप्रिय हुआ या फिर उतने ही व्यापक
तौर पर बदनाम। जब यह दक्षिण योरप पहुंचा, तो
वहां के लोगों ने इसे 'प्रेम का फल" कहा क्योंकि उनका मानना था कि इसमें यौन
शक्ति वर्द्धक गुण होते हैं। मगर जब यह अपनी यात्रा में थोड़ा आगे बढ़ा और उत्तरी
योरप में गया, तो लोगों ने इसे 'पागलपन का फल" नाम दिया। उनका मानना था कि बैंगन खाने से
दिमागी संतुलन जाता रहता है!
यह भी बताया जाता है
कि कुछ योरपीय देशों ने बैंगन को पहले-पहल
भोज्य पदार्थ के बजाए दांतदर्द की दवा के तौर पर अपनाया था। कहते हैं कि सत्रहवीं
सदी में फ्रांसीसी सम्राट लुईस सोलहवें को नए-नए फल-सब्जियों को आजमाने व अपने मेहमानों
को परोसकर उनकी वाहवाही पाने का शौक था। इसी क्रम में उन्होंने बैंगन को भी अपनी
शाही रसोई में स्थान दिया। मगर जब यह उनके मेहमानों को परोसा गया, तो उन्हें यह कोई खास रास नहीं आया।
उधर
अमेरिका का बैंगन से परिचय कराने का श्रेय वहां के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन
को जाता है। उन्हें काश्तकारी का शौक था और वे योरप से नए-नए पौधों के बीज मंगाकर अपने यहां उगाते थे। उन्हीं ने पहले-पहल अमेरिका में बैंगन उगाया। हालांकि उस
समय तक अमेरिका में भी इसकी कुख्याति पहुंच चुकी थी। लोग इसे दिमागी असंतुलन के
अलावा कुष्ठ रोग व कैंसर का कारक भी मानते थे। यही कारण है कि शुरुआत में
अमेरिकियों ने इसे उगाया भी,
तो सजावटी पौधे के तौर
पर। कोई एक सदी के बाद ही उन्होंने इसे खाने की हिम्मत जुटाना शुरू किया!
एक समय
बैंगन फारस (आधुनिक ईरान) में भी बदनाम था, जहां इसे मुंहासों से लेकर मिर्गी के दौरे तक के लिए जिम्मेदार
ठहराया जाता था! उधर चीन व जापान ने अपने यहां बैंगन
के आगमन का दिल खोलकर स्वागत किया। जापान में तो यहां तक कहा जाता है कि नया साल
शुरू होने पर सबसे पहले फुजी पर्वत, फिर
बाज और उसके बाद तीसरे क्रम पर बैंगन के दर्शन होना शुभ होता है!
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