मानव सदा
सूर्य के प्रताप का कायल रहा है और शासक अपना संबंध सूर्य से जोड़ते रहे हैं। अनेक
देशों के शासक सूर्यवंशी होने का दावा करते आए हैं।
***
सूर्य का
हमारे जीवन, हमारी संस्कृति और हमारी आस्थाओं
में क्या स्थान है,
यह सर्वविदित है।
पृथ्वी को जीवन ऊर्जा प्रदान करने वाले सूर्य की महत्ता लगभग हर युग में, हर कहीं स्वीकार की गई है। यही कारण है कि
विभिन्ना रूपों में सूर्य की पूजा मानव सभ्यता का अभिन्ना अंग रही है। दक्षिण
अमेरिका के इन्का साम्राज्य में सूर्य देवता इन्टी को सृष्टि निर्माता वीराकोचा का
पुत्र माना गया। समुद्र की देवी उनकी मां थीं और पृथ्वी तथा चंद्रमा उसकी बहनें।
चूंकि सूर्य की कृपा से ही फसलें उगती थीं, सो इन्का लोगों के मन में इन्टी देव के प्रति असीम श्रद्धा थी।
मगर सदा अपनी कृपा बरसाने वाले इन्टी कभी-कभी अपने भक्तों से रुष्ट भी हो जाते थे। सूर्य ग्रहण को उनके
क्रोध का परिणाम माना जाता था। तब रुष्ट सूर्यदेव को मनाने के लिए विशेष चढ़ावे
चढ़ाए जाते थे।
इस दक्षिण
अमेरिकी सभ्यता में सूर्य के प्रति श्र्ाृद्धा इस कदर व्याप्त थी कि शासक वंश
स्वयं को इन्टी, यानी सूर्य का ही वंशज बताता था।
कहा जाता था कि पृथ्वीवासियों की अराजकता व असभ्यता से इन्टी दुखी थे, इसलिए उन्होंने अपने पुत्र मान्को कपाक से
कहा कि वह पृथ्वी पर जाए और मनुष्यों को सही तरीके से जीना सिखाए। इस प्रकार
मान्को कपाक ने धरती पर सभ्यता की स्थापना की और प्रथम इन्का सम्राट बने। यह कुछ
वैसा ही है, जैसे भारत में सूर्यवंश की उत्पत्ति
सूर्य से मानी गई है। इंडोनेशिया,
ऑस्ट्रेलिया आदि की
कुछ जनजातियां भी स्वयं को सूर्य देव की वंशज मानती आई हैं। मिस्र में सम्राट को
चित्रों में अक्सर सिर पर सूर्य को धारण किए हुए दर्शाया जाता था।
सूर्य की
शक्ति का कायल होने के लिए आदि काल से ही मनुष्य के पास अनेक कारण थे। ऊर्जा के इस
अनंत स्रोत से ही समस्त सृष्टि जीवन पाती है। आसमान में विराजित सूर्य की नजर से
समस्त संसार में कुछ भी छुपा नहीं रह सकता। फिर, यह भी है कि सूर्य प्रकाश का परम स्रोत है और प्रकाश को हमेशा
से ज्ञान के साथ जोड़ा जाता आया है। सो सूर्य ज्ञानवान भी माना गया। वह अपना प्रकाश
व अपनी ऊष्मा समूचे संसार को समान रूप से प्रदान करता है, इसलिए वह न्यायप्रिय भी हुआ। इस प्रकार सूर्य को उन गुणों से
लैस पाया गया, जो शासक वर्ग स्वयं में दर्शाना
चाहता है। यही कारण है कि हर दौर,
हर काल में शासक अपना
संबंध सूर्य से जोड़ते आए हैं। उधर मेसोपोटामिया में राजा को 'मेरे आका" की तर्ज पर 'मेरे सूर्य"
कहकर संबोधित किया
जाता था।
वापस
इन्का सभ्यता की बात करें,
तो वहां तीन नैतिक
सिद्धांतों पर जोर दिया जाता था। ये थे- चोरी
मत करोे, झूठ मत बोलो और आलस मत करो। मान्यता
यह थी कि जो लोग इन सिद्धांतों का पालन करते हैं, वे मृत्यु के बाद सूर्य की ऊष्मा के बीच रहते हैं और जो इनका
पालन नहीं करते, उन्हें मृत्यु उपरांत सर्द धरती पर
ही सदा के लिए रहना होता है। जांबिया की जनजातियां मानती आई हैं कि आसमान के देवता
सूर्य पर वास करते हैं। इसी प्रकार मिस्र में कहा जाता था कि सृष्टि का सृजन करने
वाले अमुन देव सूर्य पर रहते हैं। घाना व माली जैसे अफ्रीकी देशों में भी सृष्टि
निर्माता का वास सूर्य पर माना गया था।
धारणाएं व
अस्थाएं अनेक हैं मगर ये सब यही दर्शाती हैं कि सूर्य हमेशा से मानव को विस्मित
करता आया है। और यह तय है कि आसमान में टंगा यह आग का विराट गोला जब तक धधकता
रहेगा, तब तक विस्मय का रिश्ता बना रहेगा।
No comments:
Post a Comment