चोटी की
भूमिका श्रृंगार तक ही सीमित नहीं है। इसका संबंध सामाजिक रुतबे, आस्था और अध्यात्म तक से रहता आया है...।
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चोटियां
इन दिनों काफी चर्चा में हैं। यूं हम इन्हें भारतीय परंपरा से ही जोड़ते आए हैं मगर
बालों की चोटी बनाने की परंपरा अधिकांश प्राचीन सभ्यताओं में रही है। खास बात यह
कि चोटी बनाने का मामला केवल बालों के श्रृंगार या सुविधा से ही नहीं जुड़ा, इसका संबंध संस्कृति, समाज व आस्थाओं से भी रहा है। चोटी की
परंपरा कितनी पुरानी है,
इसका अंदाजा इस बात से
लगाया जा सकता है कि ऑस्ट्रिया में पाई गई 25000 से 28000 साल पुरानी एक मूर्ति में एक स्त्री के बाल
चोटियों में बंधे दर्शाए गए हैं!
ऐसा भी नहीं है कि
चोटी बनाना महिलाओं तक ही सीमित रहा हो। पुरातन काल में जब पुरुषों का भी लंबे बाल
रखना आम था, तब उनके सर पर भी चोटी सजती थी। यह
परंपरा आज भी विश्व के अनेक कबीलाई समाजों में जारी है।
चोटियों
की विविधता का आलम यह है कि कई अफ्रीकी कबीले खास तरह की चोटी के माध्यम से ही
अपनी पहचान प्रकट करते हैं। यानी चोटी देखकर कहा जा सकता है कि अमुक व्यक्ति किस
कबीले का है। मिस्री साम्राज्य में राजसी परिवारों की स्त्रियों की चोटियां आम
स्त्रियों से अलग हुआ करती थीं। वहीं रोमन काल में श्रेष्ठी वर्ग की महिलाओं में
चोटियां स्टेटस सिंबल थीं। चोटी की संरचना जितनी अधिक जटिल हो, माना जाता था कि महिला उतने ही धनी कुल से
है। इसका व्यवहारिक पहलू यह था कि साधारण परिवारों की महिलाओं के पास इतनी फुर्सत
होने का सवाल ही नहीं उठता था कि वे अपनी चोटी को लेकर लंबे-चौड़े प्रयोग कर सकें। उत्तरी अमेरिका के कुछ
जनजातीय समुदायों की परंपरानुसार केवल अविवाहित युवतियां चोटी बनाती हैं, जबकि विवाहित महिलाएं अपने बाल खुले रखती
हैं। किसी समुदाय मंे पुरुष तीन चोटियां बनाते हैं और महिलाएं दो, वहीं मैदानी इलाकों के अमेरिकी आदिवासी
समुदाय में महिलाएं बाल छोटे रखती हैं और पुरुष अपने लंबे बालों की चोटियां बनाते
हैं!
चोटियों
के श्रृंगार के भी विविध तरीके अलग-अलग
समाजों में देखे जाते हैं। मोती-मनकों से लेकर घास-पत्तियों तक से चोटी को सजाया जाता है।
उत्तरी अमेरिका में एक खास प्रकार की घास को धरती माता के पवित्र बाल माना जाता
है। कुछ समुदायों में इस घास को अपनी चोटी में गूंथने की परंपरा है। कहा जाता है
कि इससे व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से धरती माता के साथ जुड़ता है और उसके मन में
पवित्रता का संचार होता है। अफ्रीका के मांगबेटु समुदाय की महिलाएं पशुओं की हड्डी
से बनी सींकों से अपनी चोटियां सजाती हैं। वहीं मसाई सुमदाय के पुरुष अपनी चोटी पर
गोबर लगाते हैं! उधर हिंबा समुदाय की महिलाएं अपनी
चोटी पर गेरू, राख, मक्खन व कुछ जड़ी-बूटियां
मलकर उसका रूप निखारती हैं।
अफ्रीकी
समुदायों में मौजूद जटिल चोटियां बनाने की परंपरा विश्व प्रसिद्ध है। मगर यह बात
कम लोग जानते हैं कि वहां चोटियां बनाने को लेकर कई तरह के नियम-कायदे भी हैं, निषेध भी और अंधविश्वास भी। मसलन, यह कि किसी एक व्यक्ति को ही दूसरे की चोटी बनानी चाहिए। यदि एक
साथ दो लोग किसी की चोटी बनाते हैं, तो
जल्द ही उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाती है। यह भी कि खुले आसमान के नीचे चोटी
नहीं बनानी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को किसी अन्य की चोटी बनाने की मनाही है।
मजेदार बात यह है कि जिसने आपकी चोटी बना दी, उसे धन्यवाद कहना भी अशुभ समझा जाता है!
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