नर्म, मुलायम रेशम का इतिहास गोपनीयता व षड़यंत्र
के कई उतार-चढ़ावों से भरा हुआ है। जहां चीन ने
इससे खूब कमाई की, वहीं एक समय रोमन साम्राज्य की
अर्थव्यवस्था पर इसके कारण संकट के बादल मंडराने लगे थे।
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रेशम के
मुलायम स्पर्श की मुरीद दुनिया सदियों से है। तमाम वस्त्रों के बीच इसका विशिष्ट
स्थान रहता आया है। एक समय बहुत ही सीमित लोगों तक इसकी पहुंच थी। रेशम की
जन्मस्थली चीन में इसके निर्माण के राज की रक्षा इस कदर की जाती थी कि सीमाओं पर
देश से बाहर जा रहे लोगों की तलाशी ली जाती थी। यदि किसी के पास रेशम के कीड़े, कोये (ककून)
आदि पाए जाते, तो उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया जाता
था। बताते हैं कि इस प्रकार चीन ने लगभग 30 सदियों तक रेशम पर अपना एकाधिकार बनाए रखा था!
रेशम की
खोज को लेकर चली आई चीनी कथा बड़ी मजेदार है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में चीनी
सम्राट शुआनयुआन की पत्नी ली जू एक दिन शहतूत के पेड़ के नीचे बैठकर चाय पी रही थी
कि अचानक उसके प्याले में कुछ जंगली कोये गिर गए। उसने कोये निकालने की कोशिश की, तो पाया कि उनमें से रेशे निकलते जा रहे
हैं। इस प्रकार रेशम की खोज हुई। इस खोज के सम्मान में ली जू को लोगों ने रेशम की
देवी का दर्जा दे डाला। आज भी चीन के हुझोऊ शहर में प्रति वर्ष अप्रैल में मनाए
जाने वाले एक उत्सव में ली जू देवी की विशेष तौर पर पूजा की जाती है और रेशम की
खोज करने के लिए उनका धन्यवाद दिया जाता है। चीनी लोगों को रेशम पर अपना एकाधिकार
इस कदर प्यारा था कि लंबे समय तक उन्होंने इसे देश से बाहर ले जाने पर पाबंदी लगाए
रखी। आखिरकार जब एक राजकुमारी दूसरे देश में ब्याही गई और उसने अपने प्रिय रेशमी
परिधानों के बगैर ससुराल जाने से इनकार कर दिया, तब रेशम ने पहली बार देश की सरहद पार की। मगर इसके बाद भी
सदियों तक इसे बनाने की विधि को गुप्त रखा गया।
खैर, रेशम ही नहीं, इसके उत्पादन की विधि भी अंतत: दूसरे देशों में फैली। यह जहां भी गया, पहले-पहल इसका उपयोग राजघरानों तक ही
सीमित रहा। बताया जाता है कि एक बार रोमन सम्राट जूलियस सीजर रेशमी परिधान धारण कर
एक नाटक देखने गए। उनके द्वारा पहना गया रेशमी कपड़ा इतना आकर्षक था कि लोग नाटक को
भूलकर उनके कपड़ों को ही देखते रहे! एक
समय ऐसा भी आया, जब रोम के रईसों में रेशम का चस्का
इस कदर बढ़ा कि इससे साम्राज्य की अर्थव्यवस्था गड़बड़ाने का अंदेशा होने लगा। कारण
यह कि बेहद महंगे दामों पर रेशम खरीदे जाने के चलते रोम के सोने के भंडार घटने
लगे। तब संसद ने कभी अर्थव्यवस्था, तो
कभी नैतिकता का हवाला देकर रेशम के उपभोग को हतोत्साहित करने का प्रयास किया। उधर
चीन ने रेशम के व्यापार से जमकर कमाई की और इस व्यापार की ही गरज से 6 हजार मील लंबा रेशम मार्ग अस्तित्व में आया।
रेशम
निर्माण की विधि जिस किसी के भी हाथ लगी, उसने
इसे गुप्त रखने के भरसक प्रयास किए। इसके कारण छल-प्रपंच व षड़यंत्रों का लंबा दौर चला। माना जाता है कि आधुनिक
तुर्की में रेशम निर्माण तब शुरू हुआ, जब
सम्राट के कहने पर कुछ साधु अपनी बांस की खोखली लाठियों में रेशम के कीड़े के अंडे
छुपाकर चीन से ले आए!
चीनी लोक
साहित्य में रेशम से जुड़ी कहानियों की भरमार है। ऐसी ही एक कहानी में शहतूत के पेड़
के जन्म के बारे में बताया गया है। इसके अनुसार, एक आदमी अपनी बेटी तथा घोड़े के साथ रहता था। एक बार उसे काम के
सिलसिले में दूर देश जाना पड़ा। कुछ दिन बाद उसकी बेटी को पिता की याद सताने लगी और
उसने घोड़े से कह दिया,
'जाओ, जाकर मेरे पिताजी को ढूंढ लाओ। यदि तुम
उन्हें ले आए, तो मैं तुमसे शादी कर लूंगी।" घोड़ा गया व अपने मालिक को खोज लाया। पिता को
पाकर बेटी की खुशी का ठिकाना न रहा मगर वह घोड़े से किया गया वादा भूल गई। घोड़ा
अनमना रहने लगा। उसके व्यवहार से मालिक को कुछ शक हुआ। उसने बेटी से पूछा कि क्या
मेरी अनुपस्थिति में तुमने घोड़े से कोई बात की थी? बेटी ने शादी के वादे के बारे में बताया। इस पर पिता ने घोड़े को
मार डाला ताकि बेटी को उससे ब्याह न करना पड़े। मगर एक दिन जब वह लड़की घर से बाहर
निकली, तो घोड़े की आत्मा ने तिलस्मी लबादा
ओढ़ाकर उसे एक कोया बना दिया,
जिसमें से कुछ समय बाद
शहतूत का पेड़ उग आया...।
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