क्या पाप
करने के बाद अपनी आत्मा की मुक्ति का सौदा किया जा सकता है? अपने पापों की सजा से बचने के लिए क्या
इन्हें किसी और के सिर हस्तांतरित करना संभव है? इंसान ने इसके भी रास्ते तलाश किए हैं और उन पर चला है।
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पुरानी
फिल्मों में एक दृश्य बहुत आम हुआ करता था। कोई अमीरजादा कहीं खून कर आता और फिर
वह या उसका पिता किसी गरीब,
मजबूर के आगे रुपयों
का लालच देकर उसे यह खून अपने सिर लेने के लिए तैयार कर लेता। गरीब पुलिस/ अदालत के सामने खुद को दोषी बता देता और जेल
चला जाता। कहानी बड़ी फिल्मी होती। मगर ऐसे किस्से यदा-कदा हकीकत में भी सामने आते रहे हैं। यह तो हुई अपराध की सजा से
बच निकलने के लिए कानून की आंखों में धूल झोंकने की बात। लेकिन क्या किसी पाप की
सजा से बचने के लिए ऐसा ही बलि का बकरा आगे कर साक्षात ईश्वर को धोखा दिया जा सकता
है? बात सुनने में अटपटी लग सकती है
लेकिन इंसानी दिमाग की खुराफातों की कोई सीमा नहीं।
पाप और
पुण्य की अवधारणा हर समाज-संस्कृति में रहती आई है। मृत्यु
होने पर गुनाहों की सजा का सिद्धांत इंसान सदा मानता आया है। वह यह भी जानता आया
है कि दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसने कभी कोई पाप न किया हो, तो भला वह कैसे अपवाद हो सकता है! इसलिए मृत्यु उपरांत अपने पापों का अंजाम
भुगतने का भय उस पर व्याप्त रहा है। इसी अंजाम से बचने की जुगत में उसने पाप
मुक्ति की अनूठी तरकीब निकाल ली। वह यह कि कुछ सिक्कों के बदले में अपने पाप का
ठीकरा किसी गरीब के सिर फोड़ दिया जाए और 'पापमुक्त"
का लेबल लगवाकर परलोक
रवाना हुआ जाए! आज की कॉर्पोरेट भाषा में कहें, तो खुद पाप कर उसके अंजाम की 'आउटसोर्सिंग" कर दी जाए। गोया पाप भी फोन नंबर की तर्ज पर
पोर्ट होकर एक आत्मा छोड़ दूसरी आत्मा से नत्थी हो जाए!
ब्रिटेन
के ग्रामीण इलाकों में लंबे समय तक एक प्रथा प्रचलित थी, जिसे 'सिन ईटिंग" यानी पाप भक्षण कहा जाता था। इसमें होता यह
था कि घर में किसी की मृत्यु होने पर परिजन उसके शव पर कुछ देर के लिए ब्रेड का
टुकड़ा रख देते या उसे शव के ऊपर से गुजारते। उनका विश्वास था कि ऐसा करने से
दिवंगत के सारे पाप ब्रेड सोख लेती है। फिर किसी पेशेवर पाप भक्षक को बुलाया जाता, जो यह ब्रेड खा लेता। इसके साथ उसे कुछ
मदिरा भी पिला दी जाती। दिवंगत के पाप सोख चुकी ब्रेड खाने से उसके पाप उस पेशेवर
पाप भक्षक में स्थानांतरित हो जाते। कभी-कभी
पाप भक्षक अंत्येष्टि के समय बाकायदा घोषणा करता कि उसने दिवंगत के पाप अपने ऊपर
ले लिए हैं और दिवंगत आत्मा पाप के बोझ से मुक्त होकर परलोक के लिए रवाना हो सकती
है। इस सबके बदले उस गरीब को चंद सिक्के दे दिए जाते। जाहिर है, इस पेशे में वे ही आते, जो नितांत निर्धन व निरुपाय होते। समाज
उन्हें हिकारत से देखता,
क्योंकि वे इतने-इतने पापों का बोझ जो लेकर जी रहे होते थे।
उनकी बस्ती गांव के बाहर होती। उन्हें केवल पाप परोसने के लिए गांव में बुलाया
जाता।
इंग्लैंड
की यह प्रथा किस प्रकार शुरू हुई,
इस बारे में ठीक-ठीक कुछ कह पाना मुश्किल है। वैसे यह माना
जाता है कि पहले धनी वर्ग में किसी की मृत्यु होने पर गरीबों को बुलाकर भोजन कराया
जाता और उनसे आग्रह किया जाता कि वे दिवंगत आत्मा की मुक्ति/ शांति के लिए प्रार्थना करें। यही रिवाज आगे
चलकर पाप भक्षण प्रथा में बदल गया।
ऐसा भी
नहीं है कि पाप के हस्तांतरण की ऐसी प्रथा केवल इंग्लैंड में ही रही हो। प्राचीन
मेक्सिको में त्लेजलत्येतल नामक देवी को पाप मुक्ति की देवी कहा जाता था। ऐसा
विश्वास था कि यदि अंतिम घड़ी में कोई इस देवी के समक्ष अपने सारे पापों का स्वीकार
कर ले, तो देवी उसके पापों का भक्षण कर
लेती हैं और उस व्यक्ति की आत्मा पाप के बोझ से मुक्त होकर परलोक सिधार सकती है।
मिस्र व यूनान में भी इससे मिलती-जुलती प्रथा हुआ करती थी। इसराइल
में एक खास पर्व पर एक बकरे के समक्ष पापों का स्वीकार किया जाता और फिर उसे पहाड़
से नीचे फेंककर बकरे व पाप दोनों से मुक्ति पा ली जाती थी...!
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