पहेलियां
केवल मनोरंजन या टाइम-पास का जरिया ही नहीं, इनका लंबा व समृद्ध इतिहास रहा है। खुशी के
उत्सव से लेकर मातम के मौकों तक पर ये खास स्थान रखती हैं।
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मानव इस
बात का दंभ भरता है कि वह संसार का सबसे बुद्धिमान प्राणी है। पता नहीं शेष
प्राणियों की इस बारे में क्या राय है मगर चलो, मान लेते हैं कि यही सच है क्योंकि शेष प्राणियों की राय जानने
का फिलहाल हमारे पास कोई माध्यम नहीं है। अब जब बुद्धि भी है और उसकी तीक्ष्णता का
आभास भी, तो इस बुद्धि के इर्द-गिर्द खेल रचने का कर्म भी होना ही था। सो
मानव पहेलियां रच बैठा। दिमागी कसरत का यह अनूठा खेल न जाने कितनी सदियों से चला
आया है। यहां बात सिर्फ घुमा-फिराकर कोई सवाल पूछने तक सीमित
नहीं है। कहीं पहेलियों में साहित्य की नफासत है, तो कहीं खांटी गंवई प्रज्ञा और कहीं दार्शनिक गूढ़ता भी।
पहेली
किसी एक देश या समाज या संस्कृति की मिल्कियत नहीं। संसार की पहली पहेली कहां, कब और किसके द्वारा रची गई, यह भी दावे से नहीं कहा जा सकता। वैसे ठोस
रूप में संरक्षित सबसे पुरानी पहेलियां मेसोपोटामिया (वर्तमान में इराक) की
प्राचीन सुमेरियाई सभ्यता से संबंधित बताई जाती हैं। ये 25 पहेलियां 2350
ईसा पूर्व के एक फलक
पर दर्ज हैं। इनमें से संभवत:
सबसे मशहूर पहेली कुछ
इस प्रकार है- 'एक घर है, जिसमें लोग दृष्टिहीन प्रवेश करते हैं और दृष्टिवान होकर निकलते
हैं। क्या है वह?"
इसका उत्तर है 'विद्यालय"।
संसार भर
के प्राचीन साहित्य में पहेलियां किसी-न-किसी रूप में प्रकट होती हैं। मसलन, महाभारत में यक्ष प्रश्न। ऋग्वेद में भी
पहेलियों का समावेश है। मध्यकालीन अरबी-फारसी
संस्कृति में भी पहेलियोें की प्रचुरता पाई जाती है। योरप के पुरातन साहित्य में
भी ये शामिल हैं। हां,
प्राचीन चीनी साहित्य
में यह कम ही पाई जाती हैं क्योंकि इन्हें स्तरीय साहित्य का हिस्सा नहीं माना
जाता था। हालांकि पहेलियों का अस्तित्व वहां भी रहा है। मसलन यह कि 'क्या है वह चीज, जो धोने पर गंदी हो जाती है और न धोने पर स्वच्छ रहती है?" (पानी)। या फिर,
'जब इस्तेमाल करो तो
फेंक देते हो और जब इस्तेमाल न करना हो तो वापस ले आते हो!" (जहाज का लंगर)।
पहेलियां
लोक संस्कृति का भी अभिन्न् हिस्सा रही हैं। कितनी ही लोक कथाओं में हमें इनकी झलक
मिलती है। इसके अलावा,
ये पर्वों आदि में भी
शामिल की जाती हैं। मसलन,
चीन में वसंत ऋतु में
मनाए जाने वाले लैंटर्न फेस्टिवल या दीप उत्सव में पहेलियों की परंपरा का भी
समावेश है। लोेग अपने घरों के बाहर जो चिराग टांगते हैं, उन पर एक कागज नत्थी कर उस पर कोई पहेली लिख देते हैं। घर के
सामने से गुजरने वाले लोग,
खासकर बच्चे इन
पहेलियों को हल करने की कोशिश करते हैं। अगर किसी को हल सूझ जाए तो वह पर्ची हटाकर, द्वार खटखटाकर गृहस्वामी को पर्ची पकड़ाते
हुए हल बता सकता है। अगर उसने सही हल बताया, तो उसे गृहस्वामी की ओर से कोई उपहार दिया जाता है।
जहां चीन
में खुशी के उत्सव में पहेलियों को शामिल किया गया है, वहीं फिलिपीन्स में गमी के मौके पर पहेलियां बुझाई जाती हैं! वहां के कुछ ग्रामीण इलाकों में यह रिवाज है
कि किसी की मृत्यु होने पर मित्र,
रिश्तेदार आदि जब उसे
अंतिम बिदाई देने आते हैं,
तो आपस में पहेलियां
भी बुझाते हैं। तो वाकई अजीब है पहेलियों की पहेली, जो खुशी और गम दोनों ही में दिमागी कसरत करवाने आ धमकती हैं।
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