सिंह को न
सिर्फ जंगल के राजा का खिताब मिला है, बल्कि
कई राजवंशों ने इसे अपना प्रतीक भी बनाया है। मगर क्या यह संभव है कि उसकी दहाड़ के
पीछे नन्हे-से खरगोश की करामात है...?
***
खूंखार
शिकारी पशुओं के प्रति भय व 'परिस्थितिजन्य" सम्मान का भाव होना स्वाभाविक ही है। प्राणी
जगत के शेष सदस्यों के साथ ही मनुष्यों ने भी यह भय व सम्मान पाला है। इन्हीं
शिकारी पशुओं में शामिल है सिंह या बब्बर शेर, जिसे अनेक संस्कृतियों में जंगल के राजा का खिताब दिया गया है।
शारीरिक बल के अलावा जो चीज सिंह को अन्य पशुओं से अलग करती है, वह है इसके चेहरे के आसपास लहराते बाल। ये
इसकी शख्सियत को एक अनूठी 'गरिमा" देते हैं और आपको चेतावनी देते हैं कि आप इन
जनाब को हल्के में कतई न लें।
मानव ने
सिंह को हल्के में तो नहीं ही लिया। तमाम प्राचीन संस्कृतियों ने इसे भौतिक ताकत व
राजनीतिक सत्ता के प्रतीक के रूप में अपनाया। कहीं यह राजसत्ता का प्रतीकचिह्न बना, तो कहीं इसे शासक के रक्षक के तौर पर
प्रतिष्ठित किया गया। यहां तक कि कहीं-कहीं
तो राजा को ही सिंह के रूप में चित्रित भी किया गया। मंदिरों, मठों, राजमहलों आदि के प्रवेश द्वारों पर सिंहों की मूर्तियां लगी
होना आम बात थी। दिलचस्प बात यह है कि प्रतीक के रूप में सिंह चीन जैसे देश में भी
स्थापित हैं, जो मूल रूप से सिंहों का निवास स्थल
है ही नहीं। माना जाता है कि भारत से गए बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से चीनियों का
सिंह से परिचय हुआ और फिर उन्होंने इस अनदेखे पशु को अपनी लोक संस्कृति में शामिल
कर लिया।
सिंह की
वास्तविक ताकत के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए जब मनुष्य संतुष्ट नहीं हुआ, तो उसे कुछ काल्पनिक या कहें मिथकीय ताकत भी
बख्श डाली। इसी का उदाहरण है ग्रीक पौराणिक कथाओं में आने वाला नेमियन सिंह। कहा
जाता है कि ग्रीस के नेमिया क्षेत्र में इस सिंह का जबर्दस्त खौफ व्याप्त था। यह
टायफॉन नामक राक्षस व एचिडना नामक सर्प कन्या की संतान था। उसे यह वरदान प्राप्त
था कि उसकी चमड़ी को मनुष्यों का कोई भी अस्त्र-शस्त्र बेध नहीं सकता। इस प्रकार वह अपराजेय था और पूरे नेमिया
में अपना आतंक फैलाए रहता था। आखिरकार हर्कुलिस नामक योद्धा को उसे मारने के लिए
भेजा गया। हर्कुलिस ने सिंह के,
उसकी गुफा में जाने का
इंतजार किया। फिर गुफा के दो में से एक द्वार को बंद कर दिया और दूसरे द्वार से
खुद गुफा में जा पहुंचा। अंधेरे में उसने अपने विराट बाहुबल से सिंह का गला घोंटकर
उसे मौत के घाट उतार दिया।
अफ्रीकी
देश अंगोला में सिंह के बारे में बड़ी ही मजेदार कथा चली आई है। इसके अनुसार, पहले सिंह दहाड़ा नहीं करता था। वह बहुत ही
धीमी आवाज निकालता था,
जिससे उसके शिकारों को
उसके आने की भनक ही नहीं लगती थी। एक दिन जंगल के सारे पशुओं ने कुछ ऐसा करना तय
किया, जिससे सिंह जोरदार आवाज निकाला करे
और उसकी आमद का पता चलते ही सब अपनी रक्षा में मुस्तैद हो सकें। खरगोश ने यह
जिम्मा अपने सिर लिया। उसने सिंह से जाकर कहा कि महाराज, बुरी खबर है। आपके भाई गंभीर बीमार हैं और आपसे मिलने की
ख्वाहिश रखते हैं। यह सुनते ही सिंह व्यथित हो गया और उसने खरगोश से कहा कि मुझे
ले चलो मेरे भाई के पास। अब खरगोश भाई के पास ले जाने के बहाने सिंह को जंगल-जंगल घुमाता रहा। आखिर सिंह थककर चूर हो गया
और कुछ देर आराम करने के लिए घास पर लेट गया। उसे नींद लग गई, तो खरगोश ने पास ही मधुमक्खी का छत्ता तलाश
लिया। मधुमक्खियां बाहर गई थीं,
सो खरगोश ने छत्ते से
सारी शहद लूट ली और रास्ते में कुछ बूंदे छिड़कते हुए आकर सोते सिंह के पंजों पर
शहद लगा दी। फिर वह जाकर झाड़ियों में छुप गया। शाम को जब मधुमक्खियां लौटीं और शहद
को गायब पाया, तो वे आग-बबूला हो गईं। इधर-उधर
तलाशने पर उन्हें सोते सिंह के पंजों पर शहद नजर आ गई। सो उसे ही शहद चोर समझते
हुए मधुमक्खी सेना ने सिंह पर हमला कर दिया। हड़बड़ाकर जागा सिंह मधुमक्खियों के डंक
से तड़प उठा और देखते ही देखते उसकी हल्की कराहें गगनभेदी दहाड़ों में बदल गई। बस, तभी से सिंह दहाड़ रहा है और उसकी दहाड़ से
सारे प्राणी आगाह हो जाते हैं।
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