Tuesday, 27 November 2018

अविश्वास की विभाजन रेखा खींचती अग्नि


अग्नि जीवन का पोषण भी करती है और संहार भी। उसके इन दोनों रूपों से परिचित होते हुए ही मनुष्य ने उसे सदा से अपने जीवन का हिस्सा बनाया है। इससे कई रोचक मिथक व परंपराएं उपजी हैं।
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दक्षिणी अफ्रीका की सान जनजाति के लोग मानते हैं कि पहले-पहल जीवन जमीन के ऊपर नहीं, बल्कि इसके नीचे पनपता था। मनुष्य वहां सारे पशु-पक्षियों के साथ शांति से रहते थे। सब एक-दूसरे को समझते थे और मिल-जुलकर बसर करते थे। स्वयं ईश्वर भी वहीं निवास करते थे। वहां सूरज तो नहीं था लेकिन प्रकाश व ऊष्मा हर समय मौजूद रहती थी। फिर ईश्वर ने सोचा कि क्यों न जमीन के ऊपर भी एक दुनिया बसाई जाए। उन्होंने एक विशाल वृक्ष रचा, जिसकी शाखाएं पूरी धरती पर छा गईं और इसके बाद बाकी सारी चीजें रचीं, जो हम आज देखते हैं। अब उन्होंने भूमिगत संसार में रह रहे मनुष्यों व पशु-पक्षियों को ऊपर बुला लिया। नया संसार देखकर सभी खुशी से झूम उठे। ईश्वर ने सबको हिदायत दी कि वे पहले की ही तरह यहां भी मिल-जुलकर रहें, एक-दूसरे की बात सुनें व एक-दूसरे की कद्र करें। साथ ही उन्होंने मनुष्यों कोे विशेष हिदायत दी कि तुम किसी भी हाल में अग्नि प्रज्वलित नहीं करोगे। इतना कहकर ईश्वर चले गए।
अब हुआ यूं कि दिन में तो सूरज के प्रकाश व ऊष्मा से सब प्रसन्नाचित्त रहे मगर जब शाम को सूरज ढला, तो मनुष्यों को अंधेरे और उससे भी अधिक ठंड ने परेशान करना शुरू कर दिया। पशु-पक्षी अपने शरीर की बनावट की बदौलत ठंड से बच गए लेकिन मनुष्य परेशान होते रहे। यह सिलसिला रात-दर-रात चलता रहा। धीरे-धीरे मनुष्यों को पशु-पक्षियों से ईर्ष्या होने लगी। आखिर एक रात मनुष्यों ने तय कर लिया कि वे खुद को गर्म रखने के लिए आग जलाएंगे। ईश्वर के आदेश की अवहेलना करते हुए उन्होंने अग्नि प्रज्वलित कर दी। इससे वे तो ऊष्मा पाकर प्रसन्ना हो गए लेकिन सारे पशु-पक्षी आग से डरकर इधर-उधर भाग उठे। कोई पहाड़ों पर चला गया, कोई गुफाओं में जा छुपा, तो कोई पेड़ों की ऊंची शाखों पर बस गया। अग्नि ने मनुष्यों व शेष जीव जगत के बीच विभाजन रेखा खींच दी। तभी से मनुष्य अभिशप्त है कि पशु-पक्षी उस पर विश्वास नहीं करेंगे।
अग्नि प्रकृति के मूल तत्वों में से एक है और इसके बिना जीवन संभव नहीं। मगर अफ्रीका की यह कथा उसी अग्नि को नकारात्मक रूप में दर्शाती है, इसीलिए अपने आप में अनूठी है। एक और खास बात यह है कि इसमें मनुष्य पहले ही से अग्नि से परिचित था और इसे प्रज्वलित करने की विधि उसे ज्ञात थी। जबकि अधिकांश स्थानों के मिथकों में हमें यही सुनने को मिलता है कि कैसे मनुष्य का अग्नि से परिचय हुआ और उसने इसे अपनाया। ऐसे अधिकांश मिथकों में चोरी का जिक्र आता है। कभी मनुष्य कहीं से अग्नि चुरा लाता है, तो कभी कोई पशु-पक्षी उसके लिए इसे चुरा लाता है।
जापानी पौराणिक कथाओं के अनुसार, अग्नि के देवता कागुत्सुची को जन्म देते हुए उनकी माता इजानामी भस्म हो गईं। इस पर उनके पिता इजानागी ने क्रुद्ध होकर अपनी तलवार से कागुत्सुची के जिस्म के आठ टुकड़े कर दिए। ये आठ टुकड़े आठ ज्वालामुखी बन गए। इजानागी की तलवार से जो खून टपका, उसकी हर बूंद से एक-एक देवता प्रकट हुए। इस प्रकार अग्नि का प्राकट्य देवताओं के जन्म से जुड़ा हुआ है।
अग्नि को लेकर कई तरह के रिवाज और परंपराएं भी चली आई हैं। मसलन, प्रशांत महासागर के कुछ द्वीपों में घर के चूल्हे के पास एक वृद्ध महिला की नन्ही मूर्ति रखी जाती है। इसे अग्नि की पहरेदार माना जाता है और कहते हैं कि यह सुनिश्चित करती है कि चूल्हा सदा जलता रहे। योरप के कुछ हिस्सों में कभी ऐसा माना जाता था कि यदि घर में अग्नि ठीक से नहीं जल पा रही, तो जरूर शैतान आसपास मंडरा रहा है। इंग्लैंड में कुछ लोग अग्नि की लपटों का अध्ययन करके भविष्य बताने का दावा करते थे। और हां, जापान में बच्चों को चेताया जाता है कि अगर वे आग से खेलेंगे, तो जीवन भर बिस्तर गीला करते रहेंगे...!

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