बाघ कोई
साधारण प्राणी नहीं। मनुष्य ने उससे भय भी खाया है और उससे रिश्ता भी जोड़ा है। वह
पशुओं का राजा सही,
इंसान का तो 'भाई" है...!
***
बाघ और
इंसान के बीच परस्पर भय व सम्मान का रिश्ता भी रहा है और सह-अस्तित्व का भी। वियतनाम की एक लोककथा में
मानव व बाघ का जटिल रिश्ता सामने आता है। एक मछुआरा अपनी वृद्ध मां के साथ रहता था
और नदी से मछलियां पकड़कर आजीविका कमाता था। वह रात में नदी में अपने जाल डाल आता
और सुबह जाकर उनमें फंसी मछलियों को समेटकर बाजार में बेच आता। एक दिन जब वह नदी
पर गया, तो देखा कि उसके जाल फाड़ दिए गए थे
और उनमें कोई मछली नहीं थी। उसने अपने जाल फिर से बुने व शाम को नदी में डाल आया
मगर अगली सुबह फिर उसे जाल फटे हुए मिले। यही सिलसिला जब दो-चार दिन लगातार चला, तो मछुआरे ने तय किया कि वह रात को नदी किनारे रुककर पता करेगा
कि कौन यह हरकत कर रहा है। मगर अगली सुबह वह घर नहीं लौटा। लोगों को नदी किनारे
उसकी लाश मिली। उसे देखकर स्पष्ट था कि उसे बाघ ने मौत के घाट उतारा है। उसकी मां
का इकलौता सहारा चला गया। वह रोज उसकी कब्र पर जाती और आंसू बहाकर घर लौटती।
एक दिन घर
लौटते हुए वृद्ध मां को रास्ते में एक बाघ मिल गया। उसने सीधे-सीधे बाघ से पूछ लिया, 'क्या तुम्हीं ने मेरे बेटे के प्राण लिए थे?" बाघ सिर झुकाकर चुपचाप खड़ा रहा। मछुआरे की
मां ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए आगे प्रश्न किया, 'अब मेरा कौन सहारा होगा? कौन मेरी देखभाल करेगा? क्या तुम मेरे बेटे की तरह मेरा भरन-पोषण करोगे?"
इस पर बाघ ने हल्के से
अपने सिर हिलाया और चला गया। अगले दिन वृद्धा को अपने द्वार पर एक हिरण पड़ा मिला।
वह समझ गई कि बाघ इसका शिकार कर यहां छोड़ गया है। उसने हिरण का कुछ मांस पकाकर
खाया और बाकी बाजार में बेच आई। अब कुछ-कुछ
दिनों के अंतराल पर बाघ उसके द्वार पर कोई शिकार छोड़ जाता। एक रात वह जागती रही और
बाघ के आने पर उसे घर के भीतर बुलाया। अब वृद्धा और बाघ के बीच मां-बेटे का रिश्ता बन गया। दोनों एक-दूसरे की देखभाल करते। मृत्यु से पहले
वृद्धा ने बाघ से वचन ले लिया कि अब वह कभी किसी मानव का शिकार नहीं करेगा।
परंपरानुसार, साल के आखिरी महीने के आखिरी दिन
लोग अपने दिवंगत पूर्वजों को भोग लगाते थे और उन्हें मृत्युलोक में लौटकर कुछ पल
साथ गुजारने की गुजारिश करते थे। गांव वालों ने देखा कि हर साल इस दिन उस वृद्धा
की कब्र पर बाघ अपना कोई शिकार छोड़ जाता था...।
बाघ को कई
संस्कृतियों में जंगल का या पशुओं का राजा माना जाता है। चीन में तो उसे पशुओं का
राजा मानने का खास कारण है। उसके माथे पर मौजूद धारियां चीनी लिपि में 'राजा" शब्द से मिलती-जुलती है। यानी उसके माथे पर ही लिखा है कि वह राजा है! चीन में यह मान्यता भी रही है कि बाघ अत्यंत
दीर्घजीवी होता है। पांच सौ वर्ष की आयु प्राप्त करने पर वह श्वेत रंग को प्राप्त
होता है और हजार वर्ष आयु का होने पर न केवल अमरत्व को प्राप्त होता है, बल्कि खुद को किसी भी जीव में परिवर्तित
करने की शक्ति पा लेता है।
नगालैंड
में सृष्टि के सृजन की कथा के अनुसार, जिलिमोसिरो
(निर्मल जल) एक आदिम नारी थी। वह जब बरगद के पेड़ तले सो रही थी, तो बादल ने आकर उसे गर्भवती कर दिया। उसने
तीन पुत्रों को जन्म दिया-
देवता, मनुष्य व बाघ। इस प्रकार इंसान व बाघ आपस
में भाई हुए।
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