यदि कोई
रेस महज जीत की खुशी का अनुभव करने के लिए न लगाई जाए, बल्कि किसी और मंतव्य से लगाई जाए, तो फिर इसके आयाम ही बदल जाते हैं। मसलन, जब रेस में जीत किसी शर्त का हिस्सा होती है...।
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रेडी? वन, टू,
थ्री, गो...! इन शब्दों के साथ न जाने कितने ही लोगों के
बचपन की स्मृतियां जुड़ी होंगी। 'रेस लगाने" की शुरुआत लगभग तभी से हो जाती है जब आप
चलना/ दौड़ना सीख लेते हैं। नन्हे कदमों की
यह दौड़ आखिरकार करियर की चूहा दौड़ में जाकर कहीं खो जाती है। मगर प्रतिस्पर्धी से
तेज दौड़कर उससे आगे निकलकर फिनिशिंग लाइन पार कर जाने में जो रोमांच और उपलब्धि का
एहसास होता है, उसका कोई मुकाबला नहीं। वहीं, यदि कोई रेस महज जीत की खुशी का अनुभव करने
के लिए न लगाई जाए,
बल्कि किसी और मंतव्य
से लगाई जाए, तो फिर इसके आयाम ही बदल जाते हैं।
मसलन, जब रेस में जीत किसी शर्त का हिस्सा
होती है...। ऐसे किस्से-कहानियों की भरमार है, जिनमें 'तुम जीते तो ऐसा, मैं
जीतूं तो वैसा"
वाली शर्त के तहत कोई
रेस आयोजित की गई हो। फिर चाहे वह दौड़ने की बात हो या फिर घोड़े, रथ आदि दौड़ाने की। पौराणिक और लोक कथाओं से
लेकर फिल्मी कथाओं तक यह सिलसिला चला है।
कहा जाता
है कि प्राचीन ग्रीस में लीडिया के राजकुमार पेलॉप्स को पीसा के राजा इनॉमियस की
बेटी हिपोडेमिया से प्रेम हो गया। आग दोनों ओर लगी थी मगर इनॉमियस से
भविष्यवक्ताओं ने कहा था कि उसका दामाद ही उसकी हत्या कर देगा। इस कारण वह किसी
हाल में अपनी बेटी का ब्याह नहीं करना चाहता था। उसने शर्त रखी थी कि हिपोडेमिया
से वही शादी कर सकेगा,
जो उसे (इनॉमियस को) रथ की दौड़ में हरा दे। जो रेस हार जाएगा, वह न सिर्फ हिपोडेमिया के हाथ से वंचित
रहेगा, बल्कि अपने प्राण भी गंवा बैठेगा।
एक-दो नहीं, अट्ठारह नौजवान हिपोडेमिया की चाह में रेस हारकर अपने सिर कलम
करा चुके थे। इसके बावजूद पेलॉप्स ने हिम्मत की और रेस की चुनौती स्वीकार की। वह
जानता था कि इनॉमियस को हराना आसान नहीं होगा, सो उसने मदद के लिए समुद्र के देवता पोसायडन का आह्वान किया, जिनकी उस पर विशेष कृपा थी। पोसायडन ने उसके
लिए पंख लगे घोड़ों का रथ प्रस्तुत कर दिया। यही नहीं, पेलॉप्स और हिपोडेमिया ने मिलकर इनॉमियस के रथ के पहियों के
धुरे की कीलें हटाकर उनकी जगह मोम की कील लगा दी। रेस शुरू हुई और इनॉमियस जीतने
ही वाला था कि उसके रथ के पहिये निकलकर अलग हो गए और वह जमीन पर आ गिरा। सरपट
दौड़ते घोड़े उसे उसकी मृत्यु की ओर ले गए।
कुछ इससे
मिलती-जुलती कहानी मेलानियन नामक युवक की
है, जिसे अटलांटा नामक शिकारी युवती से
प्रेम हो गया। अटलांटा ने शर्त रख छोड़ी थी कि वह उसी से शादी करेगी, जो दौड़ में उसे हरा दे। मेलानियन ने प्रेम
की देवी से मदद की गुहार की,
जिन्होंने उसे तीन
स्वर्णिम सेब दिए। दौड़ते समय जब भी अटलांटा आगे निकल जाती, मेलानियन एक सेब उसके कदमों में फेंक देता। अटलांटा ललचाकर उसे
उठाने के लिए रुकती,
तब तक वह आगे निकल
जाता। जब अटलांटा तीसरा सेब उठाने के लिए रुकी, तो मेलानियन ने रेस पूरी कर ली और उसे ब्याहने का हकदार बन गया।
चीनी
राशिचक्र की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि इसके पीछे भी एक रेस ही थी।
देवताओं के राजा ने ऐलान किया कि बारह राशियों के प्रतीक के तौर पर उन बारह
प्राणियों को शामिल किया जाएगा,
जो रेस में प्रथम बारह
स्थान पाएंगे। इस रेस में काफी उठा-पटक
हुई, षड़यंत्र और चालबाजियां भी हुईं और
अंतत: वे बारह प्राणी जीते, जिन्हें आज तक चीनी कैलेंडर वर्ष बारी-बारी से समर्पित किया जाता है।
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