Sunday 30 December 2012

प्रेमी युगल के खून से बही वनीला की मिठास


यदि आपसे पूछा जाए कि केक, आइसक्रीम आदि में सबसे सादा स्वाद कौन-सा है, तो आप बेशक कहेंगे 'वनीला'। इसके साथ ही यदि पता लगाया जाए कि दुनिया में सबसे लोकप्रिय फ्लेवर कौन-सा है, तो इसका जवाब भी वनीला ही मिलेगा।कुछ ऐसी बात है इस वनीला में कि इसने देश-विदेश में लोगों को अपना मुरीद बनाए रखा है। करोड़ों लोगों की स्वाद ग्रंथियों को ललचाने वाले वनीला का सफर मेक्सिको से शुरू होकर आज भी जारी है।
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यह बात ज्यादा लोग नहीं जानते होंगे कि वनीला का स्वाद ऑर्किड परिवार के पौधों पर लगने वाली फली से उपजा है। मेक्सिको की पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं के राजा की पुत्री राजकुमारी जनत को एक साधारण मनुष्य से प्रेम हो गया। उसके पिता ने उसे सख्त हिदायत दी कि तुम देवपुत्री हो, राजकुमारी हो, इन साधारण इंसानों से दूर रहो। लेकिन प्रेम कहाँ ऐसी हिदायतों को मानता है या आदेश की अवहेलना के परिणामों से डरता है? जनत एक दिन अपने प्रेमी के साथ भाग निकली और दोनों जंगल में जा छिपे। अफसोस! जनत के पिता के सिपाहियों ने उन्हें ढूँढ निकाला और शाही हुक्म की तामील करते हुए प्रेमी युगल के सर कलम कर दिए गए। जहाँ उन दोनों का खून गिरा, उस भूमि पर एक पौधा उग आया। कालांतर में इसी पर वनीला की फलियाँ लगने लगीं। कहते हैं कि राजकुमारी जनत ने ऐसा इसलिए किया ताकि मरने के बाद भी वह इंसानों के करीब रह सके और उनका प्यार पा सके।
खैर, मेक्सिको में वनीला का जादू सदियों तक चलता रहा। यहाँ तक कि बाहरी आक्रांताओं को भी स्थानीय लोग नजराने के तौर पर मक्के की फसल के बजाए वनीला की फसल देते! यदि सोलहवीं सदी में स्पेनी खोजकर्त्ता हर्नेंदो कोर्तेज मेक्सिको धमकता, तो दुनिया वनीला के जादू से परिचित हो पाती, इसमें शक है। कोर्तेज ने देखा कि मेक्सिको का राजा अपने मेहमानों को काले रंग का एक खास पेय बर्फ से ठंडा करके पिलाता था। कोर्तेज यह तो समझ गया कि इस पेय का मुख्य घटक कोको होना चाहिए, जिसकी ख्याति योरप तक फैल चुकी थी लेकिन इसमें कोई और खास स्वाद भी उसने महसूस किया। उसने दरबारियों से इस स्वाद का राज जानना चाहा तो पता चला कि यह गुप्त घटक एक जंगली ऑर्किड से निकाला जाता है।
शुरुआती आदर-सत्कार के बाद जल्द ही दोनों पक्षों की तलवारें म्यान से निकल आईं और कोर्तेज ने अपने असल मकसद को पूरा करते हुए अपने मेजबान के राज्य पर स्पेनी सम्राट की ओर से कब्जा कर लिया। यहाँ से वह सोने के अलावा कोको और वनीला की फलियाँ भी स्पेन लेकर आया। स्पेनी राजपरिवार में यह नया पेय सुपरहिट हो गया और इसे लेकर तरह-तरह के प्रयोग भी होने लगे। कोको शुद्ध रूप में कुछ कड़वा होता है, जबकि वनीला मीठा। इसीलिए कोको पेय में मिठास के लिए वनीला मिलाया जाता था। बाद में कोको और चॉकलेट में मिठास के लिए शकर मिलाई जाने लगी और वनीला का प्रयोग विभिन्न पकवानों में फ्लेवर के लिए अलग से किया जाने लगा। धीरे-धीरे कोको की ही तरह वनीला की भी ख्याति पूरे योरप में फैलने लगी। मिठाई की शौकीन ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने भी इसे हाथों-हाथ लिया।
अब यह तो स्वाभाविक ही था कि जिस चीज का योरप में इस कदर हल्ला मचा हुआ था, उसे वहाँ उगाने के प्रयास भी होते। ऐसे बहुत प्रयास किए गए लेकिन गजब बात यह थी कि वनीला का पौधा मेक्सिको के बाहर जाकर फलता ही नहीं था! योरप के कई वनस्पतिशास्त्री इससे फल प्राप्त करने के प्रयास में लगे रहे लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर 1836 में बेल्जियम के वनस्पतिशास्त्री चार्ल्स मॉरेन ने अपनी मेक्सिको यात्रा के दौरान यह गुत्थी हल कर डाली। उन्होंने देखा कि मेलिपोन नामक मधुमक्खी वनीला के फूल के अंदर प्रवेश कर इधर से उधर जाती, इसके कुछ ही घंटों बाद फूल बंद हो जाता और कुछ दिन बाद फलियाँ बननी शुरू हो जातीं। दरअसल वनीला के फूल में नर मादा अंग दोनों होते हैं और उनके बीच एक झिल्ली होती है। मेलिपोन मधुमक्खी इस झिल्ली के दोनों ओर -जाकर परागण करती थी। यह काम इसी प्रजाति की मधुमक्खी करती थी और यह सिर्फ मेक्सिको में ही पाई जाती थी। यही कारण था कि मेक्सिको से बाहर ले जाए गए वनीला के पौधे फल देने में असमर्थ थे।
अब मॉरेन ने कोई ऐसी तकनीक खोजने का प्रयास किया जिससे मेलिपोन मधुमक्खी के अभाव में भी किसान अपने हाथ से ही परागण का काम कर ले और पौधा फल देने लगे। वे सफल भी हुए लेकिन उनकी तकनीक बहुत अधिक श्रमसाध्य और अव्यावहारिक थी। आखिर आज के हर वनीला प्रेमी को अपना शुक्रगुजार करने का काम कर दिखाया एक 12 वर्षीय गुलाम ने...! 1841 में फ्रांस के कब्जे वाले रीयूनियन द्वीप पर वनीला के बागान में काम कर रहे एडमंड एल्बियस को एक दिन जाने क्या सूझी। उसने नीबू के पेड़ से एक काँटा तोड़ा और उसे औजार की तरह इस्तेमाल कर वनीला के फूल में इधर-उधर घुमाने लगा। चमत्कार हो गया। बचपने की इस स्व-स्फूर्त हरकत से वनीला के परागण का आसान तरीका उभर आया! आज भी बागानों में इसका परागण लगभग उसी तकनीक से किया जाता है जो उस बाल गुलाम ने खोज निकाली थी। सवाल यह उठता है कि इतना बड़ा काम कर दिखाने वाले एडमंड को अपनी इस खोज के बदले क्या मिला...! 1848 में फ्रांस ने अपने सभी उपनिवेशों में गुलामी पर प्रतिबंध लगा दिया। एडमंड भी आजाद हो गया और दूसरे शहर जाकर घरेलू नौकर का काम करने लगा। यहाँ उस पर अपनी मालकिन के गहने चुराने का आरोप लगा और अदालत ने उसे दस साल कैद की सजा सुनाई लेकिन फिर सरकार ने वनीला के मामले में उसके अमूल्य योगदान को देखते हुए उसकी सजा आधी कर दी। पाँच साल बाद वह रिहा तो हो गया लेकिन उसकी पूरी जिंदगी गरीबी में ही बीती और 1880 में उसने गरीबी में ही दम तोड़ दिया। हाँ, उसकी खोज की बदौलत वनीला की खेती और व्यापार योरप सहित विश्व भर में फैला और इससे कई व्यापारी तथा राज्य मालामाल हो गए।
अब यदि आप वनीला आइसक्रीम या केक या इस फ्लेवर वाली कोई और दिलचस्प मिठाई खाने जा रहे हैं, तो एक पल के लिए राजकुमारी जनत उसके प्रेमी के याद कर लीजिए, जिन्होंने अपना खून बहाकर आपको यह नेमत बख्शी। ... और एक पल के लिए उस नादान गुलाम बच्चे को भी याद कर लीजिए जिसने खेल-खेल में कुदरत के इस तोहफे को जन-जन तक पहुँचाने का रास्ता बना डाला।