गोरिल्ला
जैसा कोई प्राणी होता भी है या नहीं, इसे
लेकर सदियों तक ना-नुकुर चलती रही। लोग इसे देखने का
दावा करते रहे लेकिन आखिरकार,
कोई डेढ़ सौ साल पहले
ही वैज्ञानिकों ने माना कि गोरिल्ला होते हैं...।
***
बीते
दिनों अमेरिका के सिनसिनाटी शहर के चिड़ियाघर में एक 4 वर्षीय बच्चा गोरिल्ला के बाड़े में गिर पड़ा। गोरिल्ला ने बच्चे
को झपट लिया और इससे पहले कि वह बच्चे को क्षति पहुंचाए, उसे गोली मार दी गई। बच्चा बच गया, गोरिल्ला मारा गया। अमेरिका में और बाहर भी काफी बवाल मचा कि
क्या बच्चे को बचाने के लिए गोरिल्ला को मारना जरूरी था! एक तर्क यह दिया जा रहा है कि गोरिल्ला डरावने दिखने के बावजूद
नर्म-दिल होते हैं और चिड़ियाघर वाला
गोरिल्ला भी बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाता। दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि नर्म-दिल होने के बावजूद अपने विशाल आकार व
जबरदस्त शारीरिक ताकत के चलते गोरिल्ला न चाहते हुए भी बच्चे को और यहां तक कि
वयस्क मनुष्य को भी खासा नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए उस चिड़ियाघर वाले गोरिल्ले को मारना जायज था।
मनुष्य के
बेहद करीबी 'रिश्तेदार" होने के नाते गोरिल्लों के प्रति हममें एक
खास तरह का आकर्षण रहता आया है। बताते हैं कि मनुष्य और गोरिल्ला का डीएनए लगभग 98 प्रतिशत मेल खाता है। केवल चिम्पांजी और
बोनोबो ही 99 प्रतिशत मेल खाते डीएनए के साथ
मनुष्य के ज्यादा करीबी हैं। जहां मनुष्यों से मिलते-जुलते डील-डौल व हावभाव के कारण गोरिल्ला
लुभाता है, वहीं विशाल आकार और ताकत के चलते यह
डराता भी है। एक खास तरह का रहस्य इसके साथ जुड़ा हुआ महसूस होता है। मजे की बात यह
है कि इस अनोखे प्राणी के बारे में प्रामाणिक जानकारी बहुत हालिया अतीत में ही
मिली है। इससे पहले सदियों तक गोरिल्लों को कपोल कल्पना माना जाता था। यूं ईसा
पूर्व पांचवीं सदी में हैनो नामक ग्रीक नाविक ने अफ्रीका से लौटकर दावा किया था कि
वहां एक द्वीप पर उसने बर्बर लोगों की बसाहट देखी, जिनके पूरे शरीर पर लंबे-लंबे बाल थे!
संभवत: वह गोरिल्लों का ही जिक्र कर रहा था। इसके
बाद भी लंबे समय तक,
अफ्रीका होकर आने वाले
खोजी यह दावा करते रहे कि वहां उन्होंने विराट डील-डौल वाले,
बेहद शक्तिशाली और
गुस्सैल 'आदि-मानव"
देखे हैं। मगर
वैज्ञानिक इन दावों को खारिज करते रहे क्योंकि उनके पास कोई ठोस प्रमाण नहीं था।
सन् 1625 में ब्रिटिश खोजी एंड्रयू बैटेल ने
चेहरे और हथेलियों के अलावा पूरे शरीर पर बाल धारण करने वाले 'राक्षस" देखने का दावा किया, जो पेड़ों पर सोते हैं और फल खाते हैं। मगर तब भी इस बात पर
विश्वास नहीं किया गया कि वाकई ऐसा कोई प्राणी अस्तित्व में है। आखिरकार 1847 में थॉमस सैवेज नामक अमेरिका प्रकृतिविद ने
लाइबीरिया के जंगलों से गोरिल्ला की खोपड़ी व हड्डियां बरामद कीं, तब जाकर यह प्रामाणिक रूप से स्थापित हुआ कि
ऐसी कोई प्रजाति होती है। पहाड़ी गोरिल्लों का अस्तित्व तो और भी बाद में, सन् 1902 में साबित हो सका।
मानव, 'दानव" और वानर के मिले-जुले रूप वाला प्राणी दिखने के दावों के बीच लंबे समय तक इसे
लेकर तरह-तरह के किस्से-कहानियां गढ़ने का क्रम भी चलता रहा। ग्रीक
शासक व योद्धा सिकंदर के जीवन पर आधारित एक दंतकथा-नुमा पुस्तक में बताया गया है कि कैसे एक बार सिकंदर 'वानरों की भूमि" पर जा पहुंचा था। वहां दो प्रकार के वन-मानुष रहते थे: एक तो विशाल,
खौफनाक और नरभक्षी तथा
दूसरे छोटे व मित्रवत। इधर येती,
बिग फुट आदि जैसे
विशाल, रहस्यमय वानर-नुमा प्राणियों के किस्से भी लंबे समय से
पढ़े-सुना जाते रहे हैं, हालांकि इन प्राणियों का अस्तित्व अभी सिद्ध
नहीं हो पाया है। क्या पता,
जैसे सदियों तक
गोरिल्ला को कपोल-कल्पना माना गया और फिर एक दिन वह
सचमुच पाया गया, उसी तरह येती, बिग फुट आदि भी एक दिन साक्षात हमारे सामने
आ खड़े हों!
गोरिल्ला
की बात करें, तो जिन इलाकों में ये पाए जाते हैं, वहां के जनजीवन में तथा विश्वासों-अंधविश्वासों में भी इन्होंने अपना स्थान
बना लिया है। कॉन्गो,
कैमरून आदि अफ्रीकी
देशों में कई लोगों के बीच ऐसी मान्यता रही है कि यदि किसी गर्भवती महिला या उसके
पति की नजर किसी गोरिल्ला पर पड़ जाए, तो
वह मानव के बजाए गोरिल्ला शिशु को जन्म देगी! यूं तो उन इलाकों में गोरिल्ला का मांस भी खाया जाता है लेकिन
कॉन्गो गणराज्य के एक प्रांत में महिलाएं इसे नहीं खातीं। उन्हें भय रहता है कि
यदि उन्होंने गोरिल्ला का मांस खाया, तो
उनके पति गोरिल्ला की ही तरह खूंख्वार हो जाएंगे...!