Sunday 25 March 2018

प्रेम का दिलदार फल


कहते हैं कि स्त्री-पुरुष की पहली अनबन को दूर करने के लिए ईश्वर ने अपने उद्यान का फल धरती पर भेजा। तभी से दिल के आकार वाली स्ट्रॉबेरी यहां फल-फूल रही है।
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रक्त के रंग और दिल के आकार का फल होने के नाते स्ट्रॉबेरी के प्रति एक खास आकर्षण मनुष्य में रहता आया है। यहां तक कि इसके इस रंग-रूप के चलते इसे किसी अलौकिक शक्ति से भी जोड़ा गया है और इसमें चमत्कारी शक्तियां भी तलाशी गई हैं। मसलन, योरप में इसका संबंध उर्वरता से जोड़ा गया। लोग प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए इसका सेवन करते थे। इसे प्रेम की देवी के प्रिय फल का दर्जा भी दिया गया। यह भी कहा जाता था कि यदि गर्भवती महिला अपने पास स्ट्रॉबेरी के पत्ते रखे, तो उसे प्रसव पीड़ा से राहत मिल सकती है।
उर्वरता के अलावा स्ट्रॉबेरी के एक और गुण के चर्चे इतिहास में खूब हुए हैं। यह है शरीर से विषैले तत्वों को निकाल बाहर करने का गुण। बताया जाता है कि चीन के सम्राट हुआंगडी स्ट्रॉबेरी के पत्तों की चाय बनवाकर पीते थे। उन्हें विश्वास था कि इससे न केवल उनके शरीर में मौजूद विषैले तत्व दूर होते हैं, बल्कि उन पर बुढ़ापे का प्रभाव भी कम पड़ता है। उधर फ्रांस में बताया जाता है कि सम्राट नेपोलियन के दरबार की प्रमुख सदस्य मदाम तेलियन स्ट्रॉबेरी के ताजा रस में स्नान किया करती थीं! संभवत: वे इसे सौंदर्य का नुस्खा मानती थीं। यूं प्राचीन रोम में स्ट्रॉबेरी को ढेर सारी बीमारियों के रामबाण इलाज के तौर पर देखा जाता था, मसलन बुखार, पथरी, डिप्रेशन, गले में खराश, लिवर रोग आदि!
स्ट्रॉबेरी को लेकर कुछ रोचक रिवाज अलग-अलग स्थानों पर देखे जाते हैं। मसलन, जर्मनी के बवेरिया प्रांत में किसान स्ट्रॉबेरी इकट्ठा कर नन्ही टोकरियों में रखकर अपने मवेशियों के सींगों पर टांग देते हैं। उनका मानना है कि इससे दिव्य आत्माएं प्रसन्न् हो जाती हैं और उनके मवेशी स्वस्थ रहते हुए अपनी नस्ल बढ़ाते हैं।
योरप में यह मान्यता रही है कि अगर आप स्ट्रॉबेरी के एक फल को दो भागों में तोड़ें व एक भाग स्वयं खाकर दूसरा भाग विपरीत लिंग के व्यक्ति को खिला दें, तो आप दोनों को एक-दूसरे से प्रेम होते देर नहीं लगेगी! मजे की बात यह है कि योरप से हजारों मील दूर अमेरिका की चेरोकी जनजाति में स्ट्रॉबरी की उत्पत्ति की जो कहानी सुनाई जाती है, उसमें भी इस फल के कुछ ऐसे ही गुण का उल्लेख है। इसके अनुसार, एक बार आदि पुरुष व आदि स्त्री का आपस में झगड़ा हो गया। आदि स्त्री रूठकर चल दी। वह कुछ दूर गई, तो आदि पुरुष को ग्लानि हुई और वह उससे क्षमा मांगकर उसे मनाने के लिए दौड़ा। मगर आदि स्त्री अत्यंत तेज रफ्तार से चली जा रही थी और आदि पुरुष उससे लगातार पिछड़ रहा था। तब आदि पुरुष ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वे किसी तरह आदि स्त्री को रोकें ताकि वह जाकर उससे क्षमा मांगकर उसे वापस ला सके। ईश्वर को उस पर दया आ गई और उन्होंने आदि स्त्री को रोकने के लिए उसकी राह में एक के बाद एक कई फलों के पेड़ खड़े कर दिए। लेकिन वह एक भी फल के लालच में न आई और उसी रफ्तार से, गुस्से में भरी हुई चलती चली गई।
तब ईश्वर ने स्वयं अपने उद्यान के फल स्ट्रॉबेरी का पेड़ उसकी राह में खड़ा कर दिया। यह लालम-लाल फल देख आदि स्त्री ठिठककर रुक गई। वह इस फल को चखने से स्वयं को रोक न सकी। उसे यह इतना रास आया कि वह एक के बाद एक स्ट्रॉबेरी खाती गई और जल्द ही प्रेम के फल ने अपना असर भी दिखा दिया। आदि स्त्री का गुस्सा फुर्र हो गया और उसे अपने साथी की याद सताने लगी। तब तक आदि पुरुष भी भागता हुआ वहां पहुंच गया। गिले-शिकवे माफ हुए और दोनों स्ट्रॉबेरी खाते हुए अपने घर लौटे। तभी से स्वर्ग का यह फल धरती पर उगता रहा है और प्रेम फैलाता रहा है...

Sunday 11 March 2018

'जन्म वृक्ष", जो बनता है विवाह का साक्षी


बच्चे के जन्म पर उसके नाम का पौधा रोपने से लेकर वैवाहिक जीवन का आरंभ पौधा रोपकर करने तक अनेक परंपराएं चली आई हैं। मृत्यु के बाद यही पेड़ हमारी स्मृति को जीवित बनाए रखते हैं।
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क्या आप वृक्षों के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना कर सकते हैं? नहीं ना? ये हमारे अस्तित्व मात्र में इस कदर रच-बस गए हैं कि हमारी कई परंपराओं में भी ये शामिल हैं। इसराइल में प्राचीन काल से एक परंपरा चली आ रही है। जब भी घर में बच्चे का जन्म होता है, तो उसके नाम का एक पौधा रोपा जाता है। इसे बर्थ ट्री या जन्म वृक्ष भी कहा जाता है। आम तौर पर लड़का होने पर देवदार और लड़की होने पर सरू वृक्ष लगाया जाता है। ये पौधे भी बच्चे के साथ-साथ बड़े होते हैं। बड़े होने पर बच्चे खुद 'अपने" पेड़ की देखभाल करते हैं। जब शादी होती है, तब दूल्हे व दुल्हन दोनों ही के जन्म वृक्ष की टहनियों से विवाह मंडप सजाया जाता है। इस प्रकार जन्म से लेकर विवाह तक यह पेड़ मनुष्य का साथी बनता है। कहने की जरूरत नहीं कि जब इंसान इस दुनिया से विदा हो जाता है, तब भी उसका यह वृक्ष उसकी याद को जीवित रखता है।
जन्म वृक्ष की परंपरा जमैका में भी प्रचलित रही है। इसमें बच्चे का जन्म होने पर उसकी गर्भनाल जमीन में गाड़ दी जाती है और उस स्थान पर एक पौधा रोप दिया जाता है। यह पौधा बच्चे का उसकी मिट्टी से अटूट संबंध स्थापित करता है। कुछ हद तक इससे मिलता-जुलता रिवाज चीन के पश्चिमी भाग में भी रहा है, हालांकि इसके अंत में एक 'टि्वस्ट" है। इसके अनुसार, बेटी का जन्म होने पर एक खास प्रजाति का पौधा लगाया जाता है, जिसे बोलचाल की भाषा में महारानी वृक्ष या राजकुमारी वृक्ष कहा जाता है। यह पेड़ करीब-करीब उसी गति से बढ़ता है, जिस गति से मानव शिशु बढ़ता है। जब बच्ची युवा हो जाती है, तो यह पेड़ भी अपना पूरा आकार पाकर परिपक्व हो जाता है। फिर, जब लड़की की शादी तय होती है, तो इस पेड़ को काट दिया जाता है! इसी की लकड़ी से लड़की के दहेज के लिए सामान तैयार किया जाता है!
अनेक संस्कृतियों में विवाह के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन द्वारा पौधा रोपने का भी रिवाज है। यह वर-वधु द्वारा एक नया जीवन शुरू करने का प्रतीक भी है। अब उन्हें ही इस वैवाहिक जीवन रूपी पौधे को सींचकर बढ़ाना है। जैसे-जैसे नव-विवाहितों का प्रेम गाढ़ा होता जाता है, वैसे-वैसे इस पौधे की जड़ें गहरी होती जाती हैं। चेक गणराज्य के मोराविया प्रांत में विवाह के अवसर पर दुल्हन की सखियां उसके आंगन में एक पौधा लगाती हैं व उसे रंग-बिरंगी रिबिन और रंग से सजे अंडे के छिलकों से सजाती हैं। ऐसा माना जाता है कि दुल्हन को इस पौधे की (लंबी) उम्र लग जाती है और जब तक पौधा फलता-फूलता रहेगा, दुल्हन अपने नए घर में खुशहाल रहेगी।
पारसी विवाह में भी शादी से चार दिन पहले होने वाली एक रस्म में वर-वधु दोनों के घर की दहलीज पर एक गमले में उर्वरता के प्रतीक के तौर पर आम का पौधा विधि-विधानपूर्वक रोपा जाता है। शादी के बाद आठवें दिन तक यह पौधा यहीं रहता है व इसे रोज पानी दिया जाता है। इसके बाद इसे अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया जाता है। यह कामना की जाती है कि जिस प्रकार यह पौधा बड़ा व मजबूत होगा तथा मीठे फल देगा, उसी प्रकार नव-दंपति का प्रेम भी बढ़े, मजबूत हो व फले-फूले।
जन्म और विवाह ही नहीं, व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी उसकी स्मृति में पौधा रोपने की परंपरा कई स्थानों पर रहती आई है। किसी प्रियजन की याद में जीता-जागता पौधा रोपकर उसकी स्मृति को जीवित रखा जाता है। जीवन के हर पड़ाव पर साथ देने के बाद पेड़ मृत्यु में भी हमें नया जीवन दे जाते हैं।