Monday 20 May 2019

दुबलाते चाँद की झुर्रियाँ


आखिर चाँद अंगूर से किशमिश क्यों बनने चला है!
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चाँद दुबला हो चला है! और क्रैश डायटिंग या किसी अन्य वजह से अचानक वज़न घटाने पर जिस तरह आपकी-हमारी त्वचा पर झुर्रियाँ पड़ जाती हैं, वैसे ही चाँद भी झुर्रियों का शिकार हो रहा है। यह किसी कवि की कल्पना नहीं, हक़ीक़त है। नासा के वैज्ञानिकों ने इसे अपने अंदाज में कुछ यूँ बताया है कि चाँद लगातार सिकुड़ रहा है और उसकी आंतरिक उथल-पुथल के चलते "चंद्रकम्प" आ रहे हैं। नतीजा यह कि उसकी सतह पर सिलवटें पड़ती जा रही हैं। यह कुछ वैसा ही है जैसे तनी-तनी-सी त्वचा वाला अंगूर सिकुड़कर झुर्रीदार किशमिश बन जाता है।
अब सवाल यह है कि आखिर चाँद अंगूर से किशमिश क्यों बनने चला है! हम कह सकते हैं कि कारण वही प्रकृति का नियम है- उम्र का बढ़ना। इस नियम ने चाँद को भी नहीं बख्शा है। दरअसल हम भले ही चाँद को सदा शीतलता से जोड़ते आए हों, सच तो यह है कि इसमें भी कभी आग रही है। जैसे-जैसे यह अपनी युवावस्था की गर्मी गँवाता जा रहा है, इसका आकार सिकुड़ रहा है। यौवन की ऊष्मा साथ छोड़ रही है और शीतल प्रौढ़ावस्था अपनी झुर्रियों सहित स्थान ग्रहण कर रही है। चाँद भी आपकी-हमारी तरह उम्र का सफर तय कर रहा है।

Sunday 28 April 2019

क्यों काला हो गया सफेद कौआ?


कौए भले ही शारीरिक सुंदरता या कर्णप्रिय वाणी के स्वामी न हों मगर मानव संस्कृति में उन्हें खास स्थान हासिल है। उन्हें देवताओं का साथी, मृत्यु का संदेशवाहक और यहां तक कि धरती को सूर्य का तोहफा देने वाला भी माना गया है।
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एक अमेरिकी कबीले के लोग मानते हैं कि जब संसार नया-नया रचा गया था, तब कौए काले नहीं, सफेद हुआ करते थे। वे जंगली भैंसों के वफादार मित्र थे। उस समय मनुष्य के पास शिकार करने के उन्नात साधन नहीं थे, वे जैसे-तैसे जंगली भैंसों का शिकार कर गुजारा करते थे। मगर शिकार में कौए बाधा बनते थे। वे आसमान में उड़ते हुए देख लेते कि मनुष्य भैंसों का शिकार करने आ रहे हैं और पहले ही जाकर अपने मित्र भैंसों को आगाह कर देते थे। इस कारण शिकारियों के पहुंचने से पहले ही भैंसों का झुंड नौ दो ग्यारह हो जाता और बेचारे मनुष्य हाथ मलते रह जाते। आखिर मनुष्यों ने सभा कर फैसला किया कि कौओं का कुछ करना होगा वर्ना हम तो भूखों मर जाएंगे। तय हुआ कि कौओं के सरदार को किसी तरह अपनी गिरफ्त में लिया जाए। एक युवक ने तरकीब से कौओं के सरदार को पकड़कर उसके पैरों को एक डोरी से बांध दिया और डोरी के दूसरे छोर पर पत्थर बांध दिया, जिससे वह उड़ने में असमर्थ हो गया। फिर उसे मनुष्यों की सभा में पेश किया गया। एक गुस्सैल व्यक्ति ने कहा कि इस कौए को तो आग में भस्म कर देना चाहिए। इससेे पहले कि कोई कुछ कह पाता, उसने कौए को उठाकर आग में फेंक दिया। आग में पड़ते ही डोरी जल गई और पत्थर गिर पड़ा, जिससे कौआ आजाद होकर उड़ गया। मगर क्षण भर के लिए आग में झोंके जाने से कौए का रंग काला हो गया। तभी से कौआ काला है।
मजेदार बात यह है कि एक ग्रीक पौराणिक कथा में भी कौए के सफेद से काला हो जाने का उल्लेख आता है। इसके अनुसार, सत्य के देवता अपोलो को कोरोनिस नामक राजकुमारी से प्रेम हो गया। उन्होंने अपने विश्वस्त सफेद कौए को कोरोनिस की निगरानी (या कह लीजिए जासूसी) करने का जिम्मा सौंपा। कोरोनिस को एक राजकुमार से प्रेम हो गया। कौए ने आकर अपोलो को इसकी सूचना दे डाली। कोरोनिस की बेवफाई की खबर सुनकर अपोलो आग-बबूला हो गए और पूछ बैठे कि तुमने उस राजकुमार की आंखें क्यों नहीं नोच लीं? उन्होंने अपने क्रोध से कौए को इस कदर झुलसा दिया कि उसका रंग काला पड़ गया।
विभिन्ना संस्कृतियों में कौओं को कहीं पवित्र माना गया है, तो कहीं दुष्ट। दोनों ही मान्यताओं में उन्हें कुछ असामान्य शक्तियों का स्वामी बताया गया है। स्कॉटलैंड में कहा जाता है कि अगर कोई कौआ किसी घर के ऊपर लगातार चक्कर लगा रहा हो, तो यह उस घर में किसी की मृत्यु का पूर्व संकेत है। सर्बियाई दंतकथाओं में अक्सर युद्ध में किसी शूरवीर के खेत रहने की सूचना उसके घरवालों को कौओं द्वारा दिए जाने का जिक्र आता है। कुछ योरपीय और अमेरिकी समुदायों में माना जाता है कि दिवंगत आत्माओं को कौए ही इस लोक से परलोक लेकर जाते हैं। स्कैंडिनेविया में ज्ञान और विद्वत्ता के देवता ओडिन के साथी, विचार व स्मृति नाम के दो कौए थे। वे संसार भर में घूमकर ओडिन को खबर देते रहते थे कि मनुष्य लोक में क्या-क्या चल रहा है।
एक चीनी दंतकथा के अनुसार, जब संसार अंधकार में डूबा हुआ था, तो लाल रंग के व तीन पैरों वाले दस कौए जाकर प्रकाश के रूप में दस सूर्य ले आए। इससे अंधकार तो दूर हो गया लेकिन दस सूर्यों की गर्मी से धरती व इस पर रहने वाले सारे प्राणी झुलसने लगे। तब एक वीर तीरंदाज ने अपने शक्तिशाली बाणों से नौ कौओं को मार गिराया और पृथ्वी को भस्म होने से बचा लिया। शेष बचा कौआ ही आज सूर्य का प्रतीक है।

वह पहली हंसी, जो आपको इंसान बनाए


हंसते तो हम सब हैं लेकिन एक समुदाय शिशु की पहली-पहली हंसी का उत्सव भी मनाता है। हंसी के देवता का मंदिर भी बना है और हंसने की पार्टियां भी हुई हैं। यहां तक कि हंसी मृत्यु का कारण भी बनी है।
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दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका के नैवहो आदिवासी समुदाय में शिशु के जन्म के बाद उसकी पहली हंसी का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। शिशु के करीब तीन महीने का होते ही मित्र-रिश्तेदार माता-पिता से पूछने लगते हैं, 'बच्चा हंसा कि नहीं?" दरअसल, इस समुदाय में ऐसी मान्यता है कि जन्म लेने पर मानव शिशु आत्मिक लोक व भौतिक लोक दोनों में मौजूद होता है। उसकी पहली हंसी इस बात का संकेत मानी जाती है कि अब वह आत्मिक लोक को छोड़कर पूरी तरह भौतिक लोक का होकर रहना चाहता है। जाहिर है, यह परिवार के लिए एक बड़ा अवसर होता है, जिसका जश्न मनाना अपरिहार्य हो जाता है। परंपरा यह है कि जो भी व्यक्ति शिशु को पहली बार हंसाए, उसे तमाम रिश्तेदारों व मित्रों को दावत देनी होती है। वैसे इस दावत का आधिकारिक मेजबान शिशु को ही माना जाता है। दावत में आने वाले प्रत्येक मेहमान को नमक, मिठाई और कोई उपहार दिया जाता है। माता-पिता शिशु का हाथ पकड़कर औपचारिक रूप से उसी के हाथों सबको ये वस्तुएं भेंट करते हैं।
नैवहो समुदाय की इस दिलचस्प परंपरा के पीछे कारण शायद यह रहा है कि पुरातन काल में शिशु मृत्यु दर बहुत ऊंची होने के चलते जन्म लेने वाला शिशु कितने दिन का मेहमान है, इसे लेकर सदा संशय रहता था। इसलिए कहा जाता था कि बच्चा अभी आत्मिक व भौतिक दोनों लोकों में है। शिशु यदि तीन-एक महीने निकाल ले और हंसना शुरू कर दे, तो यह इस बात का संकेत है कि असमय मृत्यु का खतरा टल गया है और बच्चा स्वस्थ है। ऐसे में जश्न मनाना तो बनता है। बच्चा जिएगा या नहीं, यह संशय दूर होते ही मान लिया जाता है कि अब वह पूरी तरह भौतिक लोक में है। एक अन्य स्तर पर हम इस परंपरा की व्याख्या इस प्रकार भी कर सकते हैं कि पहली बार हंसने पर ही कोई पूरी तरह मनुष्य बनता है।
ऐसा भी नहीं है कि हंसी पर मानव का ही एकाधिकार माना गया हो। ग्रीक देवताओं की लंबी सूची में एक गैलॉस भी थे, जिन्हें हंसी का देवता माना गया। प्राचीन ग्रीक शहर स्पार्टा में गैलॉस को समर्पित मंदिर भी था। ग्रीस में हंसने-हंसाने को विशेष महत्व दिया जाता था। बताया जाता है कि सिकंदर के पिता सम्राट फिलिप ने बाकायदा चुटकुले लिखने के लिए लोग नियुक्त कर रखे थे!
अठारहवीं सदी के अंत में नाइट्रस ऑक्साइड के चिकित्सकीय गुणों की खोज के दौरान पता चला कि इसे खास मात्रा में ग्रहण करने पर व्यक्ति को हंसी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसलिए इसे लाफिंग गैस का नाम भी दिया गया। इस गुण की खोज करने वाले हंफ्री डेवी ने पहले तो खुद पर ही प्रयोग किए, फिर अपने मित्रों को आमंत्रित कर उन पर प्रयोग करने लगे। वे मित्रों को मुंह के जरिए नाइट्रस ऑक्साइड देते और उनसे कहते कि बताओ, तुम्हें कैसा अनुभव होता है। इन प्रयोगों को लाफिंग गैस पार्टियों के नाम से भी जाना गया। लोग गैस के प्रभाव से बेकाबू हंसी की गिरफ्त में आ जाते और बाद में अपने-अपने तरीके से बताते कि उन्हें उस दौरान कैसा अनुभव हुआ।
यह समझने की गलती न करें कि हंसी कोई हंसने का विषय मात्र है। हंसी मारक भी हो सकती है। एक किंवदंति है कि कैलकस नामक भविष्यदृष्टा के बारे में एक अन्य भविष्यदृष्टा ने कहा था कि वे अपने द्वारा रोपे गए पौधों के अंगूरों से बनी मदिरा का सेवन करने से पहले ही स्वर्ग सिधार जाएंगे। कैलकस के रोपे हुए पौधे बड़े हुए, उन पर अंगूर आए, अंगूरों से मदिरा बनाई गई। कैलकस इसका सेवन करने ही वाले थे कि उन्हें यह सोचकर हंसी आ गई कि उनके प्रतिद्वंद्वी की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हो गई। कहते हैं कि वे इस कदर जोर-जोर से हंसे कि मदिरा का पहला घूंट लेने से पहले ही हंसते-हंसते मृत्यु के आगोश में चले गए...!

Sunday 24 March 2019

पत्थर घुमाओ, श्राप दे डालो!

श्राप की अवधारणा शायद मानव इतिहास जितनी ही पुरानी है। इससे जुड़े किस्से-कहानियां एक तरह से मनुष्य के परपीड़क रूप की बानगी भी दिखाते हैं।
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आयरलैंड में कुछ खास तरह के पत्थर पाए जाते हैं, जिनकी बनावट जरा लीक से हटकर है। इनमें कुछ तो प्राकृतिक रूप से यह बनावट लिए हुए होते हैं, वहीं अन्य को पुरातन काल में इस तरह तराशा गया था। इनका बीच का हिस्सा कुछ दबा हुआ होता है, जिससे कटोरेनुमा आकृति बन जाती है। इस पत्थर के 'कटोरे" में बारिश का पानी भर जाता है, जिसे पवित्र मानने की परंपरा रहती आई है। कहा जाता है कि एक संत के जन्म के तुरंत बाद उनका सिर एक पत्थर से टकरा गया था, जिससे पत्थर में गड्ढेनुमा आकृति बन गई और इसमें भरने वाले बारिश के पानी में तमाम रोगों का इलाज करने का चमत्कारिक गुण आ गया। खैर, इस कटोरे में सिर्फ पानी ही नहीं होता, कई बार कुछ कंकर या छोटे पत्थर भी इसमें आ ठहरते हैं। पत्थर के कटोरे में मौजूद इन छोटे पत्थरों का प्रयोग लोग पारंपरिक रूप से आशीर्वाद और श्राप दोनों देने के लिए करते आए हैं। किसी के भले की कामना करनी हो, तो हाथ से उस छोटे पत्थर को घड़ी की सुई की दिशा में घुमाते हुए प्रार्थना की जाती है या सीधे-सीधे बोल दिया जाता है कि फलां की बीमारी ठीक हो जाए या फलां को जीवन की सारी खुशियां मिलें आदि। वहीं यदि किसी को श्राप देना हो, तो उसी पत्थर को घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में घुमाते हुए शत्रु का बुरा चाहा जाता है। अब इसे मानव की नकारात्मक प्रवृत्ति कहें या कुछ और, आम बोलचाल में इन पत्थरों को 'दुआ के पत्थर" के बजाए 'बद्दुआ/ श्राप के पत्थर" ही कहा जाता है!
भलाई और बुराई के दो छोरों के बीच अपनी जीवन नैया खेता आ रहा मनुष्य कभी अन्याय का शिकार होने पर, तो कभी निरे कपट के चलते, शिद्दत से दूसरे के बुरे की कामना करता है। साथ ही, उसके किस्सों-कहानियों, पुरातन आख्यानों आदि में श्रापों का खूब वर्णन मिलता है। उसने माना कि कुछ खास शक्तियां या सिद्धि प्राप्त लोग जब किसी का बुरा चाहते हैं, तो वास्तव में उनका बुरा होता है। ऐसा विश्वास देशों और संस्कृतियों की सीमाएं लांघकर समूचे मानव जगत में पाया जाता है। साथ ही, इसके चलते श्राप संबंधी कुछ दिलचस्प जनश्रुतियां, पौराणिक किस्से आदि भी सदियों से चले आए हैं।
प्राचीन ग्रीक आख्यानों में ट्रॉय की राजकुमारी कैसेंड्रा का जिक्र आता है। सत्य और भविष्यकथन के देवता अपोलो का दिल कैसेंड्रा पर आ गया। उन्होंने राजकुमारी के समक्ष प्रणय प्रस्ताव पेश किया और बदले में उसे भविष्य देखने का वरदान देने का वादा किया। कैसेेंड्रा ने अपोलो का प्रस्ताव स्वीकार किया लेकिन भविष्य देखने की शक्ति प्राप्त होते ही अपनी बात से पलट गई और अपोलो को ठुकरा दिया! जाहिर है, इस धोखे से अपोलो को कुपित होना ही था। उन्होंने तत्काल कैसेंड्रा को श्राप दे डाला कि वह जब भी कोई भविष्यवाणी करेगी, तो उस पर कोई यकीन नहीं करेगा। कैसेंड्रा आजीवन इस श्राप को ढोती रही। वह जब-जब भविष्य में किसी अनिष्ट को भांपकर लोगों को आगाह करती, उस पर अविश्वास ही किया जाता। यहां तक कि उसने अपने प्रिय नगर ट्रॉय की बर्बादी का मंजर भी पहले ही देख लिया था लेकिन उसे टाल न सकी क्योंकि किसी ने उस पर यकीन नहीं किया।
क्या कभी किसी श्राप को भी वरदान में बदला जा सकता है? ईरान व आसपास के इलाकों में प्रचलित कथाओं में नार्ट कबीले के लोगों के बारे में बताया जाता है। कहते हैं कि एक बार ईश्वर इन लोगों से नाराज हो गए और इन्हें श्राप दिया कि वे दिन भर में चाहे जितना भी गेहूं काटें, शाम को उन्हें एक बाल्टी भर गेहूं ही मिलेंगे। नार्ट लोग बड़े शातिर निकले। वे अब दिन में बस एक मुट्ठी गेहूं काटकर आराम फरमाने बैठ जाते और शाम को बाल्टी भर गेहूं पाते!

Sunday 3 March 2019

जब चाहकर भी जहर से न मर सका सम्राट


जहर को लेकर अनेक वास्तविक व काल्पनिक किस्से चले आए हैं। इनमें से कुछ बड़े ही दिलचस्प होते हैं...
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एक किंवदंती है कि पांचवीं सदी ईसा पूर्व के फारसी सम्राट आर्टजर्कसिस द्वितीय की मां परिसटिस और पत्नी स्टेटीरा की आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी। दोनों के बीच इस कदर परस्पर अविश्वास था कि वे एक-दूसरे पर जहर द्वारा हत्या का षड़यंत्र रचने का शक करती थीं। इस शक के चलते दोनों का कुछ खाना-पीना दुश्वार हो गया। तब हल यह निकाला गया कि वे दोनों एक ही साथ, एक ही रसोइये द्वारा बनाए गए एक-जैसे व्यंजनों का सेवन करेंगी। अब बात यह थी कि परिसटिस वास्तव में अपनी बहू का काम तमाम करना चाहती थी और चूंकि दोनों का भोजन एक ही होता था, सो यह संभव नहीं हो पा रहा था। तब उसने एक नायाब चाल चली। उसने छुरी की एक ओर की एक धार पर जहर लगाया। फिर भोजन के दौरान भुने हुए मांस का एक टुकड़ा जहर लगी धार से काटकर अपनी बहू को परोसा और दूसरी ओर वाली धार से कटा दूसरा टुकड़ा खुद खाया। स्टेटीरा बीमार पड़ी और तड़प-तड़पकर मर गई। मगर मरने से पहले उसने अपने पति से स्पष्ट कह दिया कि मुझे शक है तुम्हारी मां ने मुझे जहर दिया है। पत्नी की मृत्यु से दुखी सम्राट ने अपनी मां के सेवकों पर खूब कहर बरपाया, जब तक कि उन्होंने सच नहीं उगल दिया। फिर उसने राजमाता परिसटिस को देश निकाला दे दिया।
प्रमाणित इतिहास हो या मथिकीय कथाएं, जहर के प्रयोग के ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जाते हैं। इनमें कुछ अतिरंजित होते हैं, तो कुछ की प्रामाणिकता संदिग्ध होती है। कुछ किस्से सच्चे होते हैं, तो कुछ कोरी गल्प। जो भी हो, इनमें से कई किस्से रोचकता से भरपूर होते हैं। सुकरात को जहर देकर मारा गया था, तो क्लियोपेट्रा ने अपने प्राण सांप के जहर से ले लिए। सिकंदर की मौत की वजह भी कुछ लोग जहर बताते हैं। भारत में विष कन्याओं के कई किस्से बताए जाते हैं।
तुर्की का एक इलाका प्राचीन काल में पॉन्टस कहलाता था। यहां के सम्राट मित्रदातिस षष्ठम को भी जहर से मारे जाने का डर था और वह भी खुद अपनी मां के हाथों! कहा जाता था कि सम्राट की मां ने अपने पति को जहर देकर मरवा दिया था। दोनों बेटों के नाबालिग होने के कारण वह स्वयं राजपाट चला रही थी। मित्रदातिस को शक था कि उसके छोटे भाई को राजगद्दी पर आसीन करने की खातिर मां उसे भी जहर देकर रास्ते से हटा सकती है। जब वह बीमार रहने लगा, तो उसका शक पुख्ता हो गया कि उसे धीमा जहर दिया जा रहा है। वह राजमहल से भाग खड़ा हुआ और जंगलों में रहने लगा। यहां वह किसी ऐसी खुराक की खोज में जुट गया, जिसमें संसार में मौजूद हर तरह के जहर की काट हो। बरसों की मेहनत के बाद वह सफल हुआ और इस खुराक की बदौलत उसका शरीर किसी भी जहर को बेअसर करने में सक्षम हो गया। वह राजधानी लौटा और राजगद्दी पर अपना हक जताकर उस पर आसीन भी हो गया। समय का पहिया घूमा। रोमन शासक पॉम्पी से युद्ध में पराजित होकर मित्रदातिस को काले सागर के उत्तर की ओर भागना पड़ा। वहां रहकर वह स्थानीय लोगों को लेकर नए सिरे से सेना गठित करने लगा ताकि अपना राजपाट वापस हासिल कर सके। मगर सेना खड़ी करने के फेर में उसने लोगों पर इस कदर सख्ती की कि वे उसके खिलाफ विद्रोह कर उठे। हारकर मित्रदातिस ने आत्महत्या का फैसला किया मगर जब उसने जहर खाया, तो वह बेअसर रहा। कभी जहर से खौफ खाने वाला सम्राट अब चाहकर भी जहर से नहीं मर सकता था! तब उसने अपने मित्र बिट्यूटस से विनती की कि वह अपनी तलवार द्वारा उसे जलालत भरे जीवन से मुक्त कर दे। बिट्यूटस ने भारी मन से सम्राट की इच्छा पूरी कर दी...

Sunday 17 February 2019

पर्वतों के महायुद्ध से बदलता भूगोल!


क्या पर्वत भी कभी देवता थे या फिर देवताओं की सवारी थे? ज्वालामुखी के रूप में आग उगलते पर्वतों को मनुष्य ने युद्धरत देवताओं के रूप में भी देखा है...
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न्यूजीलैंड के माओरी आदिवासी मानते हैं कि पहाड़ भी कभी देवी-देवता हुआ करते थे और अकल्पनीय शक्ति से संपन्ना थे। देश के उत्तरी द्वीप पर स्थित सात पहाड़ों का माओरी समाज में विशेष महत्व है। उनके अनुसार, इन सात में से छह पहाड़ देवता थे, जबकि पिहंगा पहाड़ देवी। सभी छह देवता पिहंगा पर मोहित थे और एक दिन तय हुआ कि वे आपस में युद्ध कर तय करेंगे कि पिहंगा किसकी होगी। पहाड़ों के बीच यह युद्ध कई दिनों तक चला, जिसमें वे एक-दूसरे पर आग उगलते रहे। जलती चट्टानें आसमान में इधर से उधर उड़ती रहीं। इस महायुद्ध से धरती कांप उठी। अंतत: टोंगारिरो पर्वत विजेता रहा और अनंतकाल तक पिहंगा के बगल में उपस्थित होने का अधिकारी बना। शेष पराजित पर्वतों से कहा गया कि वे रात भर में जितना दूर जा सकें, चले जाएं। दो पर्वत दक्षिण की ओर चले गए और दो पूर्व की ओर। वहीं तारानाकी पर्वत अपनी पराजय से सबसे ज्यादा दुखी था क्योंकि वही सबसे ज्यादा शिद्दत से पिहंगा को चाहता था। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि तारानाकी और पिहंगा पति-पत्नी थे और टोंगारिरो ने पिहंगा को छीन लिया था। दुख, क्रोध व ग्लानि से कसमसाता तारानाकी जमीन में गहरी खाई बनाता हुआ दूर चला गया और समुद्र के किनारे जा खड़ा हुआ। पिहंगा के लिए बहाए गए उसके आंसू इस खाई में भर गए और नदी के रूप में बह निकले।
ज्वालामुखियों के विस्फोट, भूकंप और नित बदलते भूगोल को देखने व उसका वर्णन करने का यह बड़ा ही दिलचस्प तरीका है। हालांकि पहाड़ों को देवी-देवता का दर्जा देने का यह इकलौता उदाहरण नहीं है। अनेक देशों-समाजों में पहाड़ पूजनीय रहे हैं। या तो इन्हें सीधे-सीधे ईश्वरीय अवतार माना गया या फिर इनके विराट आकार के आदर स्वरूप मनुष्य इनके आगे नतमस्तक हुआ। पर्वतों के शिखरों का विशेष महत्व था। शायद इसलिए कि आकाश छूते ये शिखर स्वर्ग के निकट माने जाते थे। ऊंचाइयों और दिव्यता का वैसे भी एक परस्पर संबंध मानव अवचेतन में रचा-बसा रहा है। इसलिए भी अपनी ऊंचाई के चलते पर्वत दिव्य आभामंडल से मंडित रहे हैं। अनेक पर्वत ईश्वर या देवताओं के वास के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। फिर वह यूनानी सभ्यता का ओलिंपस पर्वत हो या फिर भारतीय-तिब्बती सभ्यता में पवित्रतम माना गया कैलाश पर्वत। मेरू, सिनाई, फुजी, किलिमंजारो आदि अनेक वास्तविक व मिथकीय पर्वतों के उल्लेख से विश्व भर के प्राचीन आख्यान भरे पड़े हैं।
अमेरिका के कैलिफोर्निया प्रांत स्थित शास्ता पर्वत का स्थानीय आदिवासियों के बीच विशेष धार्मिक महत्व है। इससे जुड़ी कथा भी माओरियों की कथा की भांति प्रेम, इनकार और युद्ध के इर्द-गिर्द घूमती है। बताते हैं कि पाताल लोक के देवता लाओ को क्लामथ कबीले की राजकुमारी से प्रेम हो गया और उन्होंने कबीले के मुखिया से उसका हाथ मांग लिया। मगर लाओ के वीभत्स रंग-रूप के देखकर राजकुमारी ने उनसे विवाह करने से इनकार कर दिया। तब लाओ ने पूरे कबीले को सबक सिखाने का प्रण लिया। भयभीत क्लामथ कबीले ने स्वर्गलोक के देवता स्कैल का आह्वान किया कि वे आकर उनकी रक्षा करें। अब स्कैल शास्ता पर्वत पर सवार हुए और लाओ पास ही स्थित मजामा पर्वत पर। दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। दोनों पर्वतों के बीच गगनभेदी गर्जना के साथ आग के भयावह गोले दागे गए। ऐसा युद्ध हुआ कि धरती कांप गई। आखिरकार स्कैल ने लाओ को परास्त किया और कबीले की रक्षा की। तभी से वह शास्ता पर्वत भी पवित्र हो गया, जिस पर सवार होकर उन्होंने यह विजय प्राप्त की थी।

Sunday 3 February 2019

फूलों में महकते किस्से


फूलों ने संसार को खूबसूरत बनाया, तो इनकी उत्पत्ति भला नीरस कैसे रह सकती थी? मनुष्य ने विभिन्ना फूलों की उत्पत्ति के पीछे रोचक किस्से गढ़े हैं। इनमें प्रेम भी है, विरह भी और थोड़ा तिलस्म भी।
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तुर्की की एक प्रसिद्ध लोककथा के अनुसार, फरहाद नामक शिल्पकार को राजकुमारी शीरीं से प्रेम हो गया। शीरीं भी उसके प्रेम में गिरफ्तार हो गई। जाहिर है, शीरीं के पिता को यह स्वीकार नहीं हो सकता था कि उनकी बेटी एक आम शिल्पकार के प्रेम में पड़े। उन्होंने फरहाद के सामने एक असंभव-सी शर्त रख दी और इसके पूरा होने पर शीरीं का हाथ उसे देने का वादा किया। शर्त यह थी कि फरहाद पहाड़ों के बीच नहर खोद दे। प्रेम में पागल फरहाद इस काम में जुट गया और धीरे-धीरे नहर का काम पूरा होने को आया। जब राजा ने देखा कि फरहाद शर्त पूरी करने को है, तो उसने शीरीं की मौत की झूठी खबर फरहाद तक पहुंचा दी। फरहाद इस कदर व्यथित हुआ कि उसने अपने औजारों से ही खुद के प्राण ले लिए। उधर शीरीं को जब फरहाद की मौत की खबर लगी, तो वह दौड़ती हुई उसके पास गई और उसने भी खुदकुशी कर ली। दोनों प्रेमियों का खून बहकर एकाकार हो गया और उसने एक खूबसूरत फूल का रूप ले लिया। यही फूल ट्यूलिप कहलाया।
रंग-बिरंगे, खुशबू बिखेरते फूलों के आकर्षण में सदा से कैद रहे इंसान ने कई पुष्पों की उत्पत्ति की ऐसी ही दिलचस्प कहानियां गढ़ी हैं। मानो किसी फूल की सुंदरता व महक ही उसके लिए काफी नहीं थी। उस फूल की उत्पत्ति को किसी विशेष कहानी से संबद्ध करना भी जरूरी था। सो ऐसे अनेक किस्से-कहानियां चल पड़े। खास बात यह कि ऐसी अधिकांश कहानियों में अधूरे प्रेम का वर्णन था।
ग्रीक मिथकों में नारसिसस नामक शिकारी का जिक्र है, जिस पर एक दिन पहाड़ी युवती एको की नजर पड़ी और वह उसे दिल दे बैठी। वह छुप-छुपकर नारसिसस का पीछा करती रही। जब नारसिसस को महसूस हुआ कि कोई उसका पीछा कर रहा है, तो उसने पलटकर पूछा कि कौन है वहां? एको ने उसी का वाक्य दोहरा दिया, 'कौन है वहां?" कुछ देर तक यही चलता रहा कि एको नारसिसस का वाक्य ही दोहरा देती। आखिरकार वह सामने आई और नारसिसस के प्रति प्रेम का इजहार किया। मगर मगरूर नारसिसस ने उसे दुत्कार दिया। एको अपना टूटा दिल लिए एक कंदरा में चली गई और विरह में तिल-तिल कर खत्म हो गई। उसकी जगह रह गई केवल उसकी आवाज, जो दूसरों की आवाज की प्रतिध्वनि के रूप में सुनाई देती। जब प्रेम व सौंदर्य की देवी एफ्रोडाइटी ने एको का यह हश्र देखा, तो नारसिसस को उसके घमंड की सजा देने की ठानी। एक दिन नारसिसस जंगल में अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश कर रहा था। एफ्रोडाइटी ने अपनी शक्तियों से उसे एक ताल की ओर खींचा। जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुका, ताल में अपना प्रतिबिंब देखकर उस पर मोहित हो गया। अपने ही प्रतिबिंब के प्रेम में वह इस कदर पड़ा कि उस स्थान से हट नहीं सका। पानी में खुद को निहारते हुए ही अंतत: उसकी देह निष्प्राण हो गई। उसके स्थान पर एक फूल प्रकट हुआ, जिसे नारसिसस (नरगिस) के नाम से जाना गया।
लाल गुलाब की उत्पत्ति को लेकर रोमन कथा यह है कि पहले दुनिया के सारे गुलाब सफेद हुआ करते थे। ये सौंदर्य की देवी वीनस को बहुत प्रिय थे। एक दिन उनका पैर कंटीली झाड़ियों में पड़ गया और उससे खून बह निकला इस खून से रंगकर सफेद गुलाब लाल हो गए। आगे किस्सा यह है कि एक दिन वीनस के पुत्र और प्रेम के देवता क्यूपिड गुलाब को सूंघ रहे थे, तो उसमें छिपी मधुमक्खी ने उनके होंठ पर डंक मार दिया। वीनस ने क्यूपिड के होंठ से मधुमक्खी का डंक निकाला और उसे गुलाब की डाल पर रख दिया। इस डंक ने ही कांटे का रूप लिया और इस प्रकार गुलाब के पौधों पर कांटे उपस्थित हुए।