Sunday 30 December 2018

फल के बाहर आकर पछताया काजू बीज


यदि आप सर्दियों का लुत्फ लेते हुए काजू-बादाम खा रहे हैं, तो जरा इनसे जुड़े किस्सों का भी रसास्वादन कीजिए। ये किस्से दिलचस्प भी हैं और दार्शनिक भी।
***

काजू का बीज फल के भीतर होने के बजाए बाहर क्यों होता है? फिलिपीन्स की एक लोककथा ने इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है। इसके अनुसार, पहले काजू के बीज भी फल के भीतर ही हुआ करते थे। मगर भीतर वे खुद को बंधा हुआ महसूस करते थे। वे फल की कैद में बैठे-बैठे ही चिड़ियों का चहचहाना, नदियों की कलकल, बच्चों की किलकारियां, हवाओं की सरसराहट आदि सुना करते थे और सोचते थे कि कितना अच्छा होता यदि वे यह सब देख पाते! उन्हें अफसोस था कि वे बाहर की दुनिया तभी देख सकते हैं, जब कोई खाने के इरादे से उन्हें फल के बाहर निकाले। फिर कुछ ही पल में वे किसी के मुंह का निवाला बनते और सब कुछ खत्म...। काजू के बीजों ने इच्छा जताई कि काश हम फल के बाहर होेते! वन परी ने उनकी इच्छा सुनी और अपनी तिलस्मी शक्तियों से इसे साकार कर दिया।
अब काजू के बीज फल के बाहर लगने लगे। वे संसार के सौंदर्य को देखकर खुश थे। मगर जल्द ही वे तस्वीर के दूसरे रुख से भी दो-चार हुए। दोपहर में जब धूप तेज हुई, तो वे उसकी तपिश से परेशान हो गए। रात को जब कंपकंपा देने वाली सर्द हवाएं चलीं तो वे कांप उठे। उन्हें खुले में टंगा देखकर पक्षी उनका भक्षण करने के लिए लपकने लगे। उन्हें एहसास हुआ कि वे फल के भीतर ही अधिक सुरक्षित थे। तब उन्होंने वन परी से गुहार लगाई कि उन्हें वापस फल के भीतर कर दिया जाए मगर परी ने कह दिया कि तुम्हारी इच्छा पूरी की जा चुकी है, अब तुम जहां हो वहीं रहोगे। कहानी का संदेश संभवत: यही है कि प्रकृति ने जो जैसा बनाया है, उसके पीछे ठोस वजह है। उसके विपरीत जाने की कोशिश नहीं करना चाहिए।
मनुष्य की कल्पनाशक्ति के विस्तृत दायरे से काजू-बादाम जैसे सूखे मेवे भी बाहर नहीं हैं। इनके इर्द-गिर्द रचे गए किस्से-कहानियां मानो इनके स्वाद को और रुचिकर बना देते हैं। बादाम की उत्पत्ति को लेकर ग्रीस की एक दंतकथा कहती है कि फिलिस नामक राजकुमारी का प्रेमी अकामस युद्ध पर गया और नहीं लौटा। उसे यकीन हो गया कि अकामस युद्ध में मारा गया है। दुख के मारे उसने प्राण त्याग दिए। तब देवी एथेना ने फिलिस के प्रेम से द्रवित होकर उसे एक वृक्ष में तब्दील कर दिया। यही बादाम का वृक्ष है। फिलिस का प्रेमी अकामस मरा नहीं था। दस साल बाद जब वह लौटा और उस वृक्ष का आलिंगन किया, तो उस पर बहार आ गई। तभी से बादाम के वृक्ष को ग्रीस में प्रेम और आशा का प्रतीक माना जाता आया है।
आज भी ग्रीक शादियों में शकर चढ़े बादामों को विषम संख्या में छोटी-छोटी पोटलियों में बांधकर, चांदी की तश्तरी में रखकर परोसा जाता है। विषम संख्या का बंटवारा नहीं किया जा सकता और आशा की जाती है कि नवविवाहित जोड़े को भी कभी 'बांटा" नहीं जा सकेगा और वे सदा एक रहेंगे। बादाम में मीठे व कड़वे स्वाद का मिश्रण होता है। यह जीवन का प्रतीक है क्योंकि जीवन में भी आपको मीठे के साथ-साथ कड़वा भी मिलता है। उस पर शकर चढ़ाकर कामना की जाती है कि नवविवाहितों के जीवन में मीठे का अनुपात ज्यादा हो।
स्वीडन में क्रिसमस के अवसर पर चावल की एक प्रकार की खीर बनाने की परंपरा है। इसमें कुल जमा एक बादाम डाला जाता है। जिस किसी के हिस्से में यह बादाम आए, माना जाता है कि उसके लिए आने वाला साल शुभ रहेगा...

जिनके पांव जमीं पर नहीं पड़ते...!


धरती पर पांव रखे रहना यदि मनुष्य होने की निशानी है, तो देवता माना जाने वाला राजा जमीन पर कैसे पैर रखे...? और यदि धरती से ही शक्ति प्राप्त हो, तो भला कोई इसके स्पर्श से दूर क्यों रहना चाहे...? धरती और इंसान के बीच बड़ा अनोखा संबंध है।
***

प्रशांत महासागर के छोटे-से देश टोंगा में राजा को अर्द्ध दैवीय दर्जा प्राप्त रहा है। यूं तो अनेक देशों में राजा को दैवीय शक्तियों से लैस, ईश्वर तुल्य या फिर साक्षात ईश्वर मानने का रिवाज रहा है। इसके साथ ही उन्हें भांति-भांति के विशेषाधिकारों से लैस किया जाता रहा है। टोंगा के राजा को चूंकि मनुष्य से ऊंचा दर्जा दिया गया है, सो माना जाता है कि उनके पैर साधारण मनुष्यों की भांति धरती को स्पर्श नहीं करने चाहिए। टोंगा स्थित प्राचीन तलाईतुमु किले के बीचो-बीच एक ऊंचा मंच बना हुआ है, जिस पर राजा विशेष अवसरों पर कुछ खास अनुष्ठान किया करते थे। इसके आसपास जमीन से ऊपर उठे हुए पैदल रास्ते बनाए गए हैं, जिन पर चलने का अधिकार केवल राजा को था।
यह मजेदार है कि जिस धरती से जीवन निकला, राजा को उससे भी ऊपर मान लिया जाए। गोया राजा के पांव जमीन पर टिकना उसकी शान के खिलाफ हो! या फिर शायद इसके जरिए यह दिखाया जाता हो कि देव-तुल्य राजा सारे जमीनी पचड़ों से ऊपर है। जमीन या कहें धरती से मानव का खास रिश्ता है। वह धरती पर ही जन्मा, उसी पर अपना जीवन गुजारता है। धरती को मां का दर्जा अनेक संस्कृतियों में दिया गया है। इसके साथ ही इंसान जमीन को लेकर कई तरह के अनुष्ठान विभिन्ना अवसरों पर करता आया है और यह सिलसिला आज भी कायम है। यह तो हुआ मनुष्य व धरती के रिश्ते का आध्यात्मिक पहलू। भौतिक पहलू की बात करें, तो जमीन के मालिकाना हक को लेकर इंसान सदियों से मरने-मारने पर उतारू होता आया है। न जाने कितने युद्ध इसी आधिपत्य के लिए लड़े गए। राजाओं के लिए यह आम था कि वे जमीन के साथ-साथ उस पर मौजूद हर चीज पर अपना स्वामित्व मानकर चलते थे। मगर जब राजा पर 'ईश्वरत्व" या 'देवत्व" सवार हो, तो वह खुद को इसी धरती से ऊपर भी मान सकता है। आखिर ईश्वर और देवी-देवताओं को भी पृथ्वीवासी नहीं माना गया है। राजा आकाश में स्थित किसी लोक में भले न रह पाए, धरती पर पैर न रखकर खुद को धरतीवासियों से अलग तो जता ही सकता है!
उधर इंडोनेशिया के बाली द्वीप में लोग मानते हैं कि मनुष्य दैवी लोक से जन्म लेकर धरती पर आता है। जन्म के बाद पहले 105 दिन तक उसमें देवत्व के अंश मौजूद रहते हैं। इसीलिए शिशु के 105 दिन का होने तक उसके पैर जमीन को छूने नहीं दिए जाते। इस दौरान उसे देवता-तुल्य माना जाता है।
ग्रीक मान्यताओं में एंटियस को समुद्र व धरती की संतान माना गया है। ऐसा कहा जाता था कि धरतीपुत्र होने के नाते वह धरती, यानी अपनी माता से ही शक्ति पाता था। वह अपने सामने से गुजरने वाले लोगों को दंगल की चुनौती देता था। चूंकि उसे धरती मां से लगातार शक्ति प्राप्त होती रहती थी, सो उसे हराना असंभव था। वह अपने प्रतिद्वंद्वी को न केवल परास्त कर देता था, बल्कि उसके प्राण भी हर लेता था। अपने द्वारा मारे गए लोगों की खोपड़ियों से उसने अपने पिता का मंदिर भी बना डाला था। एक दिन उसने अपने इलाके से गुजर रहे योद्धा हेराक्लिज को दंगल के लिए ललकारा। दंगल शुरू हुआ और हेराक्लिज ने थोड़ी ही देर में जान लिया कि एंटियस को जमीन पर पटककर चित्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी शक्ति का तो स्रोत ही धरती है। सो हेराक्लिज ने एंटियस को अपने बलशाली बाजुओं में भींच लिया और उसे जमीन से ऊपर उठाकर, तब तक भींचे रखा, जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ दिया। धरती पर पांव न पड़ना एंटियस को भारी पड़ गया।