Saturday 25 November 2017

पेड़ के तनों में किसकी अनंत तलाश?

आखिर पेड़ों पर अपनी चोंच पटक-पटककर कठफोड़वा क्या तलाशता रहता है? अपने लिए भोजन या भोजन की तलाश में निकले अपने बच्चे...?
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यूं विभिन्ना पक्षियों को हम उनकी आवाज से पहचानते हैं। कहीं चीं-चीं, तो कहीं कांव-कांव, कहीं कूऽऽ, तो कहीं सीटी जैसी कोई आवाज।...। मगर शायद एक ही पक्षी है, जिसकी अपनी आवाज के बजाए उसकी कारगुजारी की आवाज ही उसकी पहचान बन गई है। आसपास लगातार ठक-ठक-ठक की आवाज आ रही हो, तो हम समझ जाते हैं कि कठफोड़वा किसी पेड़ पर सक्रिय है। लकड़ी पर अपनी चोंच से वार करने की उसकी यह क्रिया उसे पक्षी जगत में विलक्षण बनाती है। यह पेड़ों के तने व शाखाओं पर मौजूद कीड़ों को खाता है और तने को कुरेद-कुरेदकर, उसमें कोटर बनाकर अपना आशियाना बसाता है।
वैज्ञानिकों ने गणना कर बताया है कि कठफोड़वा 24 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से अपना सिर पेड़ के तने में दे मारता है, वह भी एक-एक मिनट में सौ-सौ बार तक! अगर उसकी जगह कोई मनुष्य हो, तो पहली बार सिर दे मारने के बाद ही अस्पताल पहुंच जाए मगर कठफोड़वे के शरीर की बनावट उसका बाल भी बांका नहीं होने देती। ऐसे में इस अनोखे पंछी को लेकर विस्मय होना स्वाभाविक है।
अमेरिका के मूल निवासियों में कठफोड़वे की उत्पत्ति को लेकर रोचक दंतकथाएं सुनाई जाती हैं। इनमें से एक के अनुसार, एक बार परमात्मा धरती पर विचरण करने आए और आम इंसान की तरह लोगों से मिलने लगे। एक दिन उन्होंने एक कंजूस महिला का द्वार खटखटाया और कहा, 'मैं कई दिनों से भूखा हूं। क्या आप मुझे खाने को कुछ देंगीं?" महिला ने अनमने ढंग से उसे भीतर बुलाया और थोड़ा-सा आटा अपनी भट्टी में डालते हुए बोली, 'जब यह रोटी पक जाए, तो तुम इसे खा सकते हो।" मगर जब रोटी पकी, तो महिला को लगा कि यह तो बहुत बड़ी बन गई, यह इसे क्यों खिलाऊं? इसके लिए मैं और छोटी रोटी बनाती हूं। मगर इस बार रोटी और भी बड़ी बनी। यह सिलसिला चलता रहा। दरअसल परमात्मा अपनी शक्तियों से हर बार भट्टी में रोटी को पहले से बड़ा बनाते जा रहे थे। उधर महिला ने आखिरकार अपने अजनबी मेहमान से आकर कह दिया कि मेरे पास तुम्हें खिलाने के लिए कुछ नहीं है, जंगल में जाकर तलाश लो, शायद पेड़ों के तनों में तुम्हें कुछ खाने को मिल जाए। यह सुनकर परमात्मा कुपित हो गए। उन्होंने अपना वास्तविक रूप महिला को दिखाया और उसे श्राप दिया कि अब तुम जीवन भर जंगलों में भटकोगी और पेड़ों के तनों में ही खाना तलाशोगी। अगले ही क्षण वह कठफोड़वा बन गई।
एक अन्य अमेरिकी दंतकथा कहती है कि बहुत पहले रेगिस्तान में एक नशीला पौधा उगता था। उस पर उगने वाली गांठनुमा आकृति को खाने से तिलस्मी सपने आते थे, जिसमें देवता आकर मनुष्यों से बातें करते थे और बताते थे कि भविष्य में क्या होने वाला है। मगर इन्हें खाने की अनुमति केवल ओझाओं को थी। एक बार एक लड़के ने चुपके से यह वर्जित गांठ खा ली। उसे खाते ही उसने खुद को एक अनूठे स्वप्नलोक में पाया, जहां हवा में रंगों कर समंदर तैर रहा था और देवताओं जैसी दिखने वाली आकृतियां चल-फिर रही थीं। फिर वह 'सो" गया। अगले दिन जब वह जागा, तो अपने अनुभव से रोमांचित था। उसने गांव में अपने दोस्तों को यह बात बताई, तो दोस्त भी जादुई गांठ को आजमाने जा पहुंचे। देखते ही देखते गांव के सभी लोग इस नशे में डूबने लगे। नतीजा यह हुआ कि वे अपना काम-धंधा ही नहीं, अपने नन्हे बच्चों तक को उपेक्षित करने लगे। वे दिन भर नशे में पड़े रहते और बच्चे खाने की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते।

आखिर मानीटोउ देवता को बच्चों पर दया आ गई। उन्होंने बच्चों को भोजन दिया और उन्हें पेड़ों के खोखले तनों में छिपा दिया, जहां वे झुलसाती धूप और खतरनाक जानवरों से सुरक्षित रह सकते थे। जब गांववालों ने अपने बच्चों को गायब पाया, तो उन्हें ढूंढने निकल पड़े। तब मानीटोउ देवता उनके सामने प्रकट हुए और कहा कि मैंने तुम्हारे बच्चों को पेड़ों के तनों में छिपा दिया है। लोगों ने पूछा, हमें बच्चे वापस कैसे मिलेंगे? तो देवता बोले, मैं तुम लोगों को पक्षी बना देता हूं, तुम एक-एक पेड़ पर जाकर उसके तने को ठोक-ठोककर अपने बच्चे तलाश लो। बस, वे सारे लोग कठफोड़वे बन गए और आज भी अपने खोए हुए बच्चों की तलाश में पेड़ों पर ठक-ठक करते रहते हैं।

Sunday 5 November 2017

पुण्य के बाजार में पाप की आउटसोर्सिंग!

क्या पाप करने के बाद अपनी आत्मा की मुक्ति का सौदा किया जा सकता है? अपने पापों की सजा से बचने के लिए क्या इन्हें किसी और के सिर हस्तांतरित करना संभव है? इंसान ने इसके भी रास्ते तलाश किए हैं और उन पर चला है।
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पुरानी फिल्मों में एक दृश्य बहुत आम हुआ करता था। कोई अमीरजादा कहीं खून कर आता और फिर वह या उसका पिता किसी गरीब, मजबूर के आगे रुपयों का लालच देकर उसे यह खून अपने सिर लेने के लिए तैयार कर लेता। गरीब पुलिस/ अदालत के सामने खुद को दोषी बता देता और जेल चला जाता। कहानी बड़ी फिल्मी होती। मगर ऐसे किस्से यदा-कदा हकीकत में भी सामने आते रहे हैं। यह तो हुई अपराध की सजा से बच निकलने के लिए कानून की आंखों में धूल झोंकने की बात। लेकिन क्या किसी पाप की सजा से बचने के लिए ऐसा ही बलि का बकरा आगे कर साक्षात ईश्वर को धोखा दिया जा सकता है? बात सुनने में अटपटी लग सकती है लेकिन इंसानी दिमाग की खुराफातों की कोई सीमा नहीं।
पाप और पुण्य की अवधारणा हर समाज-संस्कृति में रहती आई है। मृत्यु होने पर गुनाहों की सजा का सिद्धांत इंसान सदा मानता आया है। वह यह भी जानता आया है कि दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसने कभी कोई पाप न किया हो, तो भला वह कैसे अपवाद हो सकता है! इसलिए मृत्यु उपरांत अपने पापों का अंजाम भुगतने का भय उस पर व्याप्त रहा है। इसी अंजाम से बचने की जुगत में उसने पाप मुक्ति की अनूठी तरकीब निकाल ली। वह यह कि कुछ सिक्कों के बदले में अपने पाप का ठीकरा किसी गरीब के सिर फोड़ दिया जाए और 'पापमुक्त" का लेबल लगवाकर परलोक रवाना हुआ जाए! आज की कॉर्पोरेट भाषा में कहें, तो खुद पाप कर उसके अंजाम की 'आउटसोर्सिंग" कर दी जाए। गोया पाप भी फोन नंबर की तर्ज पर पोर्ट होकर एक आत्मा छोड़ दूसरी आत्मा से नत्थी हो जाए!
ब्रिटेन के ग्रामीण इलाकों में लंबे समय तक एक प्रथा प्रचलित थी, जिसे 'सिन ईटिंग" यानी पाप भक्षण कहा जाता था। इसमें होता यह था कि घर में किसी की मृत्यु होने पर परिजन उसके शव पर कुछ देर के लिए ब्रेड का टुकड़ा रख देते या उसे शव के ऊपर से गुजारते। उनका विश्वास था कि ऐसा करने से दिवंगत के सारे पाप ब्रेड सोख लेती है। फिर किसी पेशेवर पाप भक्षक को बुलाया जाता, जो यह ब्रेड खा लेता। इसके साथ उसे कुछ मदिरा भी पिला दी जाती। दिवंगत के पाप सोख चुकी ब्रेड खाने से उसके पाप उस पेशेवर पाप भक्षक में स्थानांतरित हो जाते। कभी-कभी पाप भक्षक अंत्येष्टि के समय बाकायदा घोषणा करता कि उसने दिवंगत के पाप अपने ऊपर ले लिए हैं और दिवंगत आत्मा पाप के बोझ से मुक्त होकर परलोक के लिए रवाना हो सकती है। इस सबके बदले उस गरीब को चंद सिक्के दे दिए जाते। जाहिर है, इस पेशे में वे ही आते, जो नितांत निर्धन व निरुपाय होते। समाज उन्हें हिकारत से देखता, क्योंकि वे इतने-इतने पापों का बोझ जो लेकर जी रहे होते थे। उनकी बस्ती गांव के बाहर होती। उन्हें केवल पाप परोसने के लिए गांव में बुलाया जाता।
इंग्लैंड की यह प्रथा किस प्रकार शुरू हुई, इस बारे में ठीक-ठीक कुछ कह पाना मुश्किल है। वैसे यह माना जाता है कि पहले धनी वर्ग में किसी की मृत्यु होने पर गरीबों को बुलाकर भोजन कराया जाता और उनसे आग्रह किया जाता कि वे दिवंगत आत्मा की मुक्ति/ शांति के लिए प्रार्थना करें। यही रिवाज आगे चलकर पाप भक्षण प्रथा में बदल गया।

ऐसा भी नहीं है कि पाप के हस्तांतरण की ऐसी प्रथा केवल इंग्लैंड में ही रही हो। प्राचीन मेक्सिको में त्लेजलत्येतल नामक देवी को पाप मुक्ति की देवी कहा जाता था। ऐसा विश्वास था कि यदि अंतिम घड़ी में कोई इस देवी के समक्ष अपने सारे पापों का स्वीकार कर ले, तो देवी उसके पापों का भक्षण कर लेती हैं और उस व्यक्ति की आत्मा पाप के बोझ से मुक्त होकर परलोक सिधार सकती है। मिस्र व यूनान में भी इससे मिलती-जुलती प्रथा हुआ करती थी। इसराइल में एक खास पर्व पर एक बकरे के समक्ष पापों का स्वीकार किया जाता और फिर उसे पहाड़ से नीचे फेंककर बकरे व पाप दोनों से मुक्ति पा ली जाती थी...!