Sunday 28 October 2018

जब तोप से दागे गए पनीर के गोले!


पनीर को कभी दैवीय देन माना गया था। इसका उपयोग भोजन के अलावा युद्ध में भी हुआ है और शादी को न्योतों में भी। यहां तक कि बैंकिंग में भी इसका उपयोग है!
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क्रोएशिया के तटीय इलाके में हाल ही में 7,200 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तनों में पनीर के अंश पाए गए हैं। इसे अब तक विश्व में कहीं भी पाया गया पनीर का सबसे पुराना नमूना माना जा रहा है। साथ ही, इससे पता चला है कि पनीर का इतिहास जितना पुराना माना जाता आया है, उससे कहीं अधिक पुराना है। इस प्रकार यह दुग्ध उत्पाद मनुष्यों के सबसे पुराने आहारों में से एक कहा जा सकता है। खास तौर पर ठंडे देशों में इसकी लोकप्रियता का लंबा इतिहास मिलता है। ग्रीक पौराणिक कथाओं में तो कहा गया है कि सूर्य, प्रकाश, संगीत व काव्य के देवता अपोलो तथा राजकुमारी सायरीनी के पुत्र एरिस्टियस ने मनुष्यों को पनीर बनाने की कला दी थी। जाहिर है, 'दैवीय देन" होने के नाते इसका ग्रीक समाज में खास स्थान रहा। ... या फिर यह भी कह सकते हैं कि इसके खास स्थान को देखते हुए इसे दैवीय देन का दर्जा दिया गया। बताया तो यह भी जाता है कि प्राचीन ग्रीस में देवताओं को भोग के रूप में, अन्य पदार्थों के अलावा पनीर अर्पित किया जाता था।
मजेदार बात यह है कि पनीर का उपयोग हमेशा केवल खाद्य पदार्थ के रूप में ही होता आया हो, ऐसा भी नहीं है। इसके कुछ अन्य उपयोग बड़े ही दिलचस्प रहे हैं। मसलन, 1865 में ब्राजील और उरुग्वे के बीच युद्ध चल रहा था। दोनों देशों की नौसेनाएं एक-दूसरे पर बारूद के गोले बरसा रही थीं। अचानक उरुग्वे के जंगी जहाज के कमांडर को बताया गया कि जहाज पर गोले खत्म हो गए हैं। अब दुश्मन सेना का मुकाबला कैसे किया जाए? कमांडर ने दिमाग लगाया और तय किया कि बारूद के गोले खत्म हो गए हैं, तो किसी अन्य वस्तु को गोलों के रूप में दागा जाए। तलाश की गई कि जहाज पर ऐसी कौन-कौन-सी वस्तुएं हैं, जिनका ऐसा उपयोग किया जा सकता है। जब उन्हें बताया गया कि जहाज की रसोई में बासी व सख्त हो चुका पनीर मौजूद है, तो कमांडर ने आदेश दिया कि इस पनीर के ही गोले बनाए जाएं और इन्हें तोपों में भरकर दागा जाए। इसे खेल मत समझिए, यह तरकीब कारगर भी रही। पहले दो गोले तो निशाना चूक गए लेकिन तीसरा गोला दुश्मन जहाज के मस्तूल से टकराकर बिखर गया और इसके दो नुकीले, सख्त टुकड़ों ने दो दुश्मन सैनिकों के प्राण हर लिए!
पनीर को घातक हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने की एक मिसाल एक आइरिश पौराणिक कथा में भी मिलती है। इसमें मेव नामक रानी का जिक्र है, जिसके पिता ने उसकी शादी कोंकोबार नामक राजा से कर दी थी। मगर मेव की अपने पति से नहीं निभी और वह उसे छोड़ गई। तब मेव के पिता ने अपनी ही एक अन्य पुत्री एथिन को कोंकोबार से ब्याह दिया। मगर क्रूर मेव ने अपनी ही बहन को मार डाला, जिससे एथिन का पुत्र फरबेड मां की ममता से वंचित हो गया। बरसों बाद, जब फरबेड युवा हो चुका था, तो उसने अपनी मौसी से मां की हत्या का प्रतिशोध लिया। मेव प्रतिदिन एक झील पर नहाने जाया करती थी। फरबेड ने एक खास गुलेल तैयार की और झाड़ियों के पीछे से उस दूरी पर पत्थर मारने का अभ्यास करने लगा, जहां मेव नहाया करती थी। उसका निशाना अचूक हो चला था और आखिर उसने अपने प्रतिशोध को पूर्णता देने कर ठान ली। मगर उस दिन मेव नियत समय से कुछ पहले ही झील पर नहाने पहुंच गई। फरबेड के पास पत्थर नहीं था मगर हाथ में पनीर था, जिसे वह खा रहा था। सो उसने कठोर पनीर के उस टुकड़े को ही गुलेल पर लगाकर निशाना साधा। पनीर सीधे मेव के सिर पर लगा और वह वहीं ढेर हो गई।
ऐसा नहीं है कि पनीर का उपयोग हिंसक कार्यों में ही होता हो। प्राचीन ग्रीस में शादी के निमंत्रण के साथ पनीर से बनी मिठाइयां भेजने के रिवाज के प्रमाण मिले हैं। यही नहीं, इटली में क्रेडिटो एमिलियानो नामक बैंक है, जो इस मायने में अनूठा है कि वह उस इलाके में बनने वाले बेशकीमती पनीर को गिरवी रखने के बदले ऋण देता है! इस पनीर को खास वातावरण में सुरक्षित रखने की जरूरत होती है, जिसके लिए बैंक ने विशेष वेयरहाउस बना रखा है।

क्यों लंबी हुई शुतुरमुर्ग की गर्दन?


शुतुरमुर्ग ने भले ही कभी उड़ान न भरी हो, मगर उसके आकार व अन्य विचित्रताओं ने मनुष्य की कल्पनाओं से खूब उड़ानें भरवाई हैं। इसे लेकर व्याप्त धारणाएं व किस्से बड़े रोचक हैं।
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कुछ मिथक इस कदर जनमानस में पैठ कर जाते हैं कि हम इन्हें निर्विवाद तथ्य मान लेते हैं। ऐसा ही एक मिथक शुतुरमुर्ग से जुड़ा है। वह यह कि किसी खतरे या अप्रिय स्थिति को देखकर शुतुरमुर्ग अपना सिर जमीन में गाड़ देता है। वह सोचता है कि इससे आसन्ना खतरा या अप्रिय स्थिति टल जाएगी। इसी के चलते, कड़वी हकीकत से मुंह फेरने वाले व्यक्ति को शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति का कहा जाता है। जबकि तथ्य यह है कि शुतुरमुर्ग ऐसा कुछ करता ही नहीं। दरअसल, मादा शुतुरमुर्ग अपने अंडे घोंसले में देने के बजाए जमीन में बनाए गए गड्ढों में देती है। वह दिन में कई बार इन अंडों को उलटती-पलटती है। इस दौरान, देखने वाले को भ्रम हो सकता है कि वह अपना सिर जमीन में गाड़ रही है। वैसे भी, शुतुरमुर्ग का सिर काफी छोटा होता है, सो यदि वह सिर झुकाए खड़ा हो, तो यह भ्रम होना मुश्किल नहीं है कि उसका सिर जमीन के अंदर है।
शुतुरमुर्ग की खासियत यह है कि यह सबसे बड़ा जीवित पक्षी है और उड़ने से लाचार है। इस कारण अफ्रीकी मूल का होते हुए भी यह दुनिया भर में प्रसिद्ध है। साथ ही कई तरह के मिथकों और असत्य धारणाओं का विषय भी। कहते हैं कि प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने शुतुरमुर्ग के विशाल आकार को देखते हुए इसे पक्षी मानने से ही इनकार कर दिया था। उनका मानना था कि यह आधा पक्षी व आधा पशु है! मध्य-पूर्व की प्राचीन संस्कृति में लोग इसे दुष्ट प्राणी मानते थे। वे इसका संबंध सृष्टि से पहले व्याप्त रहे अंधकार व अस्त-व्यस्तता की देवी तियामत से जोड़ते थे। वहीं प्राचीन मिस्र में इसका खासा धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व था। इसका संबंध सत्य व न्याय की देवी मात से जोड़ा जाता था। इसीलिए इसके पंख को भी सत्य का प्रतीक माना गया। बाद के दौर में शुतुरमुर्ग के पंख कई संस्कृतियों में श्रेष्ठि वर्ग के श्र्ाृंगार का हिस्सा बने।
शुतुरमुर्ग की लंबी गर्दन को लेकर अफ्रीका में एक मजेदार लोककथा चली आई है। इसके अनुसार, बहुत पहले शुतुरमुर्ग की गर्दन छोटी हुआ करती थी। एक बार नर शुतुरमुर्ग ने अंडे सेने में मादा का हाथ बंटाने का प्रस्ताव रखा। तय हुआ कि दिन में मादा यह जिम्मेदारी निभाएगी और रात में नर। मगर एक रात अचानक अपनी पत्नी की खिलखिलाहट भरी हंसी सुनकर शुतुरमुर्ग के कान खड़े हो गए। उसने सिर उठाकर देखा तो पाया कि उसकी पत्नी एक अन्य सजीले नर शुतुरमुर्ग के साथ चांदनी रात में, दीमक के टीलों के बीच लुका-छिपी खेल रही है! जाहिर है, इस बेवफाई पर उसका पारा चढ़ गया मगर वह अंडों को छोड़कर नहीं जा सकता था। सो वहीं बैठा-बैठा, अपनी गर्दन लंबी कर-करके देखने की कोशिश करता रहा कि दीमक के टीलों के बीच क्या चल रहा है। सारी रात यूं ही बीत गई। सुबह जब बेवफा मादा अंडों के पास लौटी, तो गुस्से में आग-बबूला हो रहा शुतुरमुर्ग उठ खड़ा हुआ। अचानक उसे अपनी गर्दन में कुछ अजीब-सा लगा। जब उसने अपने पैरों की ओर देखा, तो पाया कि वे उसके सिर से बहुत दूर हो गए हैं। तब उसे समझ में आया कि रात भर गर्दन तानकर पत्नी की हरकतों पर नजर रखने के चलते उसकी गर्दन इतनी लंबी हो गई है। बस, तभी से शुतुरमुर्गों की गर्दन लंबी रहने लगी।