Sunday 4 May 2014

सूरज से मिलने जाना है...!



चांद पर तो आदमी हो आया मगर सूरज पर जाने की बात अभी कल्पनाओं में ही कैद है। इन कल्पनाओं ने सदियों पहले से लेकर आधुनिक काल तक कई रूप लिये हैं

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कुछ दिन पहले एक अजीब-सी खबर चल पड़ी थी। बताया गया कि उत्तर कोरिया एक इंसान को सूर्य पर उतारने में सफल हो गया है! इसकी पहचान भी 17 वर्षीय हुंग इल गॉन्ग के रूप में की गई है। खबर बेसिर-पैर की थी, यह इसी बात से स्पष्ट था कि इसके अनुसार यह इतिहास पुरुष मात्र 4 घंटे में धरती से सूर्य तक जा पहुंचा था और शाम तक उसके लौट आने की भी संभावना जताई जा रही थी। खैर, यह कपोल-कल्पित कथा एक मजाक ही थी, जिसे कुछ देर के लिए कुछ लोगों द्वारा सच मान लिया गया। कह सकते हैं कि आधुनिक दौर में गढ़ा गया एक मिथक था यह। दुनिया से कटे हुए एक देश की तानाशाही व्यवस्था और बड़बोले नेतृत्व पर एक कटाक्ष था।

यूं अनेक समाजों में प्रचलित प्राचीन मिथकों में सूर्य का प्रमुख स्थान रहा है। धारती को जीवन और ऊर्जा देने वाला सूर्य इसके वासियों को अनेक जनश्रुतियों की खुराक भी देता आया है। कुछ अमेरिकी कबीलों में सुनाई जाने वाली एक कथा में : लोगों का जिक्र है, जो सूर्य से मिलने जा पहुंचे थे। उन सबने हिरण की खाल की पोशाक धारण की, जिस पर सूर्य का चित्र अंकित था। साथ ही, अपने चेहरे पर भी सूर्य की आकृति पोत ली। बालों में एक विशेष तरह का पंख लगाया। कबीले के सरदार से अनुमति लेकर पहले उन्होंने सभी गांव वालों को दावत दी, फिर अगले ही दिन सुबह-सुबह पूर्व दिशा की ओर चल पड़े, जहां से सूर्य उग रहा था। सूर्य आकाश में ऊपर, और ऊपर उठता गया मगर उन्होंने चलना जारी रखा। आखिर शाम को वे उस पहाड़ पर जा पहुंचे, जहां से सूर्य रोज सुबह उगता था। रात वे वहीं ठहर गए और दूसरे दिन जब सूर्य उगने लगा, तो उन्होंने उसे रोककर उससे बात करनी शुरू कर दी। सूर्य ने कह दिया कि वह रुक नहीं सकता, उन्हें साथ चलते-चलते बात करनी होगी। उन सभी वीरों ने बारी-बारी से सूर्य से कोई वरदान मांगा। एक ने भविष्य देख पाने का वरदान मांगा। सूर्य पश्चिम की ओर जा रहा था, उसका भविष्य पश्चिम ही था, सो उसने उस आदमी को पश्चिम में ले जाकर बसाने का वचन दे दिया। दूसरे आदमी ने अमर होने का वरदान मांगा। सूर्य ने कहा कि जब तुम लौटोगे, तो रास्ते में देवदार के वृक्ष बन जाओगे और अमर हो जाओगे। एक अन्य आदमी ने भी जब अमरत्व का वरदान मांगा, तो उसे एक विशेष पत्थर बनने का वरदान मिला, जो चिकित्सकीय रूप से हमेशा मनुष्य के काम आता रहेगा। एक ने हमेशा पानी के आसपास रहने का वरदान मांगा, तो सूर्य ने उसे मत्स्य-पुरुष बना दिया। इस प्रकार अमेरिकी दंतकथा के इन रोमांच-वीरों ने केवल सूर्य तक का सफर तय किया, बल्कि उससे वार्तालाप कर अपने-अपने मन की मुराद भी पाई। बताते हैं कि इनमें से एक आदमी ने सूर्य से कह दिया कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं तो बस आपसे मिलने ही आया था। उसी ने वापस आकर लोगों को इस सफर की विस्तार से जानकारी दी।

सूर्य से मुलाकात की एक रोचक कहानी न्यूजीलैंड में भी कही जाती है। इसके अनुसार, कई युग पहले सूर्य बहुत तेज गति से आसमान में अपना सफर तय कर लेता था। नतीजा यह कि दिन बेहद छोटे होते थे और काली-अंधियारी रातें बेहद लंबी। लोग इससे परेशान थे और चाहते थे कि सूरज थोड़ा धीरे चले, ताकि दिन लंबे हों। तब माओरी किंवदंतियों के जननायक माउई ने तय किया वह इस समस्या को सुलझाएगा। उसने पटसन से एक बड़ा-सा जाल बुना और अपने भाइयों को साथ लेकर पूर्व दिशा में स्थित उस गुफा पर जा पहुंचा, जहां सूर्य रात्रि विश्राम करता था। गुफा के प्रवेश द्वार पर उसने जाल लगा दिया, फिर सभी भाइयों ने अपने तन पर मिट्टी चुपड़ ली, ताकि सूर्य की गर्मी का उन पर कम से कम असर हो। जब सुबह सूर्य गुफा से बाहर आने लगा, तो जाल में उलझ गया। उसने जाल से छूटने की कोशिश की मगर माउई के भाइयों ने उसे कसकर पकड़ लिया। उधर माउई ने जाल तथा अपने भाइयों के हाथों में जकड़े सूर्य को अपने एक पूर्वज के जबड़े की हड्डी से बनी गदा से पीटना शुरू कर दिया। उसने सूर्य को पीट-पीटकर इतना कमजोर कर दिया, कि अब दौड़ लगाकर आसमान पार करना उसके बस की बात नहीं रह गई। अब वह धीरे-धीरे चलकर अपना सफर तय करने लगा। इस प्रकार दिन पर्याप्त लंबे हो गए।

सूर्य के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं था। सो उसके प्रति मनुष्य का आकर्षण, आसक्ति और आस्था समझी जा सकती है। यही भावनाएं कभी सूर्य को पूजने के रूप में व्यक्त हुईं, तो कभी उस तक जा पहुंचने की कल्पनाओं के रूप में। इन कल्पनाओं का सृजन शायद कभी खत्म हो। तभी तो ताजा कल्पना उत्तर कोरियाई सूर्य-विजेता के रूप में सामने आई...!