Sunday 23 July 2017

ज्वार-भाटा लाने वाला महाकेकड़ा

समुद्र में लहरें व ज्वार-भाटा लाने से लेकर शहीद योद्धाओं की आत्मा धारण करने तक, कई तरह के काम केकड़ों के नाम दर्ज हैं देश-विदेश के किस्सों-कहानियों में...
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हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार बीते वर्ष महाराष्ट्र में केकड़े की छह नई प्रजातियां सामने आईं। इसके साथ ही अपनी विचित्रताओं को लेकर कौतुहल उत्पन्ना करने वाले इस जीव की कुछ और विविधताएं दर्ज हुईं। दो जोड़ी छोटे और चार जोड़ी बड़े पैरों के दम पर आड़ा चलने वाला यह प्राणी वैसे ही कई रोचक किस्से-कहानियों का किरदार रहा है। मसलन, फिलिपीन्स का मंडाया समुदाय मानता है कि सूर्य और चंद्रमा पति-पत्नी हैं और उनकी संतानों में तंबानाकानो नामक विशाल केकड़ा भी शामिल है। यह समुद्र तल में स्थित एक विशाल गड्ढे में रहता है। जब वह गड्ढा छोड़कर कहीं जाता है, तो समुद्र का पानी उस विशाल गड्ढे मंे भर जाता है और किनारों पर भाटा आ जाता है। जब तंबानाकानो वापस अपने गड्ढे में आता है, तो सारा पानी पुन: गड्ढे से बेदखल हो जाता है और किनारों पर ज्वार आ जाता है। यानी समुद्री ज्वार-भाटा केकड़े की ही देन हैं! यही नहीं, इस महाकेकड़े के हिलने-डुलने से ही समुद्र में लहरें भी उठती रहती हैं।
जापान में पाई जाने वाली केकड़े की हाइकेगानी नामक प्रजाति काफी प्रसिद्ध है। इसकी खासियत है इसकी पीठ पर उभरी मानव चेहरे जैसी आकृति। इसे लेकर बड़ी रोचक कथा प्रचलित है। कहते हैं कि हाइके योद्धाओं का जापान पर शासन था और मीनामोटो योद्धा उन्हें सत्ता से बेदखल करने को प्रयासरत थे। सन् 1185 में दोनों सेनाओं के बीच समुद्र के किनारे निर्णायक युद्ध हुआ। उस समय 7 वर्षीय बालक अंतोकू हाइके सम्राट था। मीनोमोटा सेना हाइके सेना पर लगातार भारी पड़ रही थी। हाइके योद्धाओं का नियम था कि युद्ध में पराजय अवश्यंभावी लगने पर वे युद्धबंदी बनने के बजाए अपने प्राण हरकर शहादत प्राप्त कर लेते थे। जब इस युद्ध में ऐसी नौबत आई, तो सैनिकों ने अपने 7 वर्षीय सम्राट को समुद्र में फेंक दिया। उनके पीछे-पीछे सम्राट की मां व दादी भी समुद्र में समा गईं। शेष बचे सैनिकों ने भी सम्राट के साथ जल समाधि ले ली। समुद्र की गहराइयों में मौजूद केकड़ों ने इन सब हाइके लोगों का भक्षण कर लिया। इसके बाद शहीद हाइके योद्धाओं की आत्मा इन केकड़ों में बस गई और इनकी पीठ पर योद्धाओं के चेहरे अंकित हो गए। ये केकड़े हाइकेगानी कहलाए। यदि किसी जापानी मछुआरे के जाल में हाइकेगानी केकड़े फंस जाते हैं, तो वे सम्मानपूर्वक इन्हें वापस समुद्र में डाल देते हैं।

यूनानी पौराणिक कथाओं में भी केकड़े का विशेष उल्लेख आता है। इसके अनुसार, महान योद्धा हरक्युलिस, जोकि देवराज ज़्युस की अवैध संतान था, अनेक सिर वाले महासर्प हायड्रा से युद्ध कर रहा था। तब कारकिनोस नामक केकड़े ने हायड्रा की मदद की गरज से हरक्युलिस का एक पैर जकड़ लिया। मगर अद्धभुत बल के स्वामी हरक्युलिस के आगे वह टिक नहीं सका। हरक्युलिस ने कारकिनोस को झटक दिया और अपने पैर तले कुचल डाला। मगर उसका बलिदान बेकार नहीं गया। ज़्युस की पत्नी हेरा हरक्युलिस ने घृणा करती थीं। उन्होंने कारकिनोस को आसमान में स्थापित कर दिया, जहां वह आज भी कर्क तारामंडल के रूप में देखा जा सकता है।

Sunday 2 July 2017

महाकायों की महागाथाएं

असामान्य रूप से विशाल काया तथा असाधारण शक्तियों वाले लोगों की अवधारणा हमें रोमांचित करती है। शायद इसीलिए संसार भर में ऐसे महाकाय दैत्यों की कहानियां पाई जाती हैं।
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अलग-अलग नस्ल के इंसानों के डील-डौल में यूं तो अंतर होता ही है मगर एक बात बड़ी रोचक है। लगभग सभी संस्कृतियों की पौराणिक कथाओं, लोक कथाओं आदि में कुछ ऐसे लोगों का उल्लेख मिलता है, जो विराट आकार के थे। आकार के साथ-साथ ये असामान्य बाहुबल व कई प्रकार की अन्य शक्तियों से भी लैस हुआ करते थे। अमूमन इन्हें खलनायक के रूप में चित्रित किया जाता है, जो किसी 'सामान्य" कद-काठी वाले व्यक्ति के हाथों परास्त होते हैं। इन कहानियों के द्वारा यह प्रतिपादित किया जाता है कि विराट आकार व शारीरिक बल भी सत्य व सदाचार के आगे टिक नहीं सकते। अंत में जीत सत्य की ही होती है।
असामान्य कद-काठी व बल वाले इन लोगों को हमारे यहां राक्षस, दैत्य, दानव आदि नाम दिए गए हैं, तो अन्य देशों में जायंट, टाइटन आदि। तर्कवादी अक्सर यह सवाल पूछते हैं कि क्या इस प्रकार के लोग वास्तव में होते थे? यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि अलग-अलग कालखंडों में मनुष्य का औसत कद बदलता रहा है। मगर इस औसत कद के हिसाब से, अनेक आख्यानों में वर्णित कुछ पात्रों की कद-काठी अतिरंजित ही कही जाएगी। मगर यह अतिरंजना ही इन कथाओं को मनोहारी बनाती है और इनमें निहित संदेश को उभारती है।
प्राचीन यूनान में ऐसे दैत्यों को धरती और आकाश की संतान माना जाता था। संभवत: यह प्रतीकात्मक चित्रण था, उन लोगों के लिए, जिनके पैर धरती पर हों, तो सिर आकाश को छूता है। यूनानी आख्यानों में देवताओं के साथ इन दैत्यों के भीषण युद्ध का भी उल्लेख मिलता है, जिसमें देवता विजयी रहे। कई बड़े-बड़े दैत्य पहाड़ों के नीचे दफन हो गए। माना जाता है कि ये दैत्य आज भी कभी भूकंप, तो कभी ज्वालामुखी के विस्फोट के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। एक दैत्य एटलस को देवताओं के राजा ज़्यूस ने धरती के पश्चिमी छोर पर खड़े होकर आसमान को अपने कंधों पर उठाए रखने की सजा दी, जिसके चलते एटलस युग-युगांतर तक आसमान को थामे रखने को अभिशप्त है!
अमेरिकी आदिवासी समुदायों में ऐसे महाकायों का जिक्र आता है, जो 40 फीट से लेकर 200 फीट तक ऊंचे होते हैं! वहीं जापान में ओनी कहलाने वाले दैत्यों की अवधारणा रही है। इन्हें 'सबसे ऊंचे आदमी से भी कई गुना ऊंचा" बताया गया है। दिखने में ये बेहद डरावने होते हैं और इनका रंग लाल या नीला होता है। इनमें जबर्दस्त शारीरिक शक्ति होती है और ये कई तरह की आपदाएं ला सकते हैं। कहा जाता है कि यूं तो जब जीवन भर बुरे काम करने वाला व्यक्ति मरकर नरक में जाता है, तो वह ओनी बन जाता है मगर यदि कोई अत्यधिक दुष्ट हुआ, तो वह जीते-जी ओनी बन जाता है। ऐसे ही ओनी कई जापानी लोक कथाओं में पाए जाते हैं।

उत्तरी योरप के आख्यानों में कहा गया है कि विश्व का पहला प्राणी ईमिर नामक महाकाय ही था। उसका जन्म अग्नि और बर्फ के मिलन से हुआ था। कहा जाता है कि ईमिर के मांस से धरती बनी, रक्त से महासागर, अस्थियों से पर्वत बने, केश से वृक्ष और मस्तिष्क से बादल! उसके पसीने की बूंदों से अन्य दैत्यों का जन्म हुआ। यानी यह समूची सृष्टि का जनक है।