Sunday 10 June 2018

आसमान में तनी सतरंगी कल्पनाएं


देवताओं का अग्नि-सेतु या प्यास बुझाने धरती पर उतरता सर्प? सतरंगी लबादे में दौड़ लगाती देवी या रोगों का वाहक? इंद्रधनुष को इंसान ने कई रंगों में देखा है।
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बहुत पहले, जब संसार नया-नया ही बना था, एक दिन खुराफाती देवता नैनाबोजो ने देखा कि उनके निवास के आसपास सारे के सारे फूल सफेद थे। यह बात उन्हें रास नहीं आई। उन्होंने तय किया कि वे सारे फूलों में रंग भर देंगे। बस फिर क्या था, नैनाबोजो ने अपने रंग व कूची ली और चल पड़े फूलों को रंगने। उनका यह उपक्रम चल ही रहा था कि दो नन्हे पंछी खेलते-फुदकते वहां आ पहुंचे। पहले एक पंछी दूसरे का पीछा करते हुए जमीन की ओर गोता लगाता और फिर आकाश की ओर उड़ लेता, फिर दूसरा उस पहले पंछी का पीछा करने लगता। इधर नैनाबोजो फूलों को रंग रहे थे, उधर पंछियों का खेल जारी था। जब-जब पंछी गोता लगाकर नीचे आते, कभी उनका पंख तो कभी पैर नैनाबोजो के रंगों में डुबकी लगा जाता। कुछ ही देर में दोनों पंछी लाल, नारंगी, पीले, हरे, नीले रंगों में रंग गए। आखिर उनके व्यवधान से तंग आकर नैनाबोजो ने उन्हें भगा दिया। तब दोनों पंछी पास ही स्थित झरने की ओर उड़ गए। उन्होंने झरने के पानी से बनी धुंध के आर-पार अपना खेल जारी रखा। उनके तन पर लगे रंग अब धुंध की इस चादर कर चित्रकारी उकेरने लगे। कुछ देर बाद जब नैनाबोजो की निगाह झरने की ओर गई, तो उन्होंने वहां सात रंगों की अनूठी कलाकृति तनी हुई देखी। यह था दुनिया का पहला इंद्रधनुष।
एक उत्तर अमेरिकी आदिवासी समुदाय की यह लोकगाथा इंद्रधनुष की उत्पत्ति का बड़ा ही सुंदर चित्र खींचती है। बारिश के बाद प्रकृति का सतरंगी उत्सव मनाता इंद्रधनुष आदिकाल से लोगों में आश्चर्य, कौतुहल व आनंद का भाव उत्पन्ना करता आया है। दिलचस्प बात यह है कि विभिन्ना संस्कृतियों में इंद्रधनुष को लेकर धारणाएं भी विविधरंगी रहती आई हैं। प्रशांत महासागर स्थित पॉलीनेशिया में माना जाता है कि इंद्रधनुष एक दिव्य सीढ़ी है, जिसे चढ़कर शूरवीर स्वर्ग को जाते हैं। वहीं जापान में माना जाता है कि हमारे पूर्वज जब स्वर्ग से उतरकर धरती पर आते है, तो इंद्रधनुष पर से चलकर ही आते हैं। उत्तरी योरप में इसे धरती व देवलोक को जोड़ने वाले अग्नि-सेतु के रूप में देखा जाता है, जिस पर से गुजरने की अनुमति केवल देवताओं व शहीदों को है।
ग्रीक आख्यानों में तो इंद्रधनुष को बड़े ही अनोखे अंदाज में देखा गया है। इसके अनुसार पछुआ हवा के देवता जेफिरस की पत्नी आइरिस देवताओं व मनुष्यों के बीच संदेशवाहक की भूमिका निभाती हैं। जब वे अपने सतरंगी लबादे में आसमान से धरती और यहां से वापस आसमान की ओर दौड़ लगाती हैं, तो हमें इंद्रधनुष के रूप में नजर आती हैं।
अफ्रीका की जुलु जनजाति में इंद्रधनुष को जरा अलग तरह से देखा जाता है। ये लोग मानते हैं कि इंद्रधनुष आसमान में रहने वाला एक विशाल सर्प है, जो धरती के जलाशयों से पानी पीने आता है। मगर यह निरापद नहीं है। यदि कोई उस जलाशय में स्नान कर रहा हो, तो यह उसे तत्काल निगल लेता है! ऑस्ट्रेलिया की कई जनजातियां भी इंद्रधनुष को एक विशाल सर्प के रूप में देखती हैं, जिसने संसार को रचा है। म्यांमार के एक समुदाय में यह विश्वास रहा है कि इंद्रधनुष दानवी शक्ति होती है, जो मनुष्य की अकस्मात, हिंसक मृत्यु के लिए जिम्मेदार है। यह मानव आत्माओं का भक्षण करता है और फिर अपनी प्यास बुझाने धरती पर उतरता है। पेरू में तो इंद्रधनुष को कई तरह के रोगों, खास तौर पर त्वचा रोगों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। वहां बच्चों को सिखाया जाता है कि इंद्रधनुष दिखते ही वे अपना मुंह बंद कर दें ताकि कहीं बीमारी के जीवाणु उनके शरीर में प्रवेश न कर जाएं!
बुल्गारिया में कहा जाता है कि यदि कोई पुरुष इंद्रधुनष के नीचे से गुजरे, तो वह स्त्री की तरह सोचने लगता है और यदि कोई स्त्री इसके नीचे से गुजरे, तो वह पुरुष की तरह सोचने लगती है! उधर जर्मनी में मध्ययुग के दौरान यह मान्यता व्याप्त थी कि प्रलय आने से पहले चालीस साल तक किसी इंद्रधनुष के दर्शन नहीं होंगे। इसलिए, जब भी आसमान में इंद्रधनुष नजर आता, लोग यह सोचकर राहत की सांस लेते कि अभी कम से कम चालीस वर्ष तक तो प्रलय नहीं आने वाला...

Sunday 3 June 2018

बदसूरत पंखों पर सवार आत्माएं!


चमगादड़ों को प्रकृति ने जैसा बनाया, उसके कारण उन्हें काफी बदनामी झेलनी पड़ी है। कभी इनका संबंध मृत्यु से जोड़ा गया, तो कभी शैतानी ताकतों से...
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चमगादड़ इन दिनों चर्चा में हैं। घातक निपाह वायरस फैलाने के आरोप में ये कटघरे में हैं। वैसे इन बेचारों का जब से मनुष्य से पाला पड़ा है, ये ज्यादातर कटघरे में ही रहे हैं। अपने डील-डौल या कहें चेहरे-मोहरे के कारण ये अपने इर्द-गिर्द एक रहस्यात्मकता का आवरण लिए होते हैं, जो मनुष्य को असहज व भयभीत करता है। यह भय अतार्किकता की हद तक जाकर नकारात्मक कल्पनाएं गढ़ लेता है और चल पड़ते हैं भांति-भांति के मिथक। यह कहना गलत नहीं होगा कि शायद ही कोई प्राणी इस कदर मुफ्त बदनाम हुआ हो, जिस कदर चमगादड़ हुआ है। निपाह फैलाने में इसकी भूमिका वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध हुई है मगर अनेक कपोल-कल्पित आरोपों का बोझ भी यह ढोता रहा है।
चमगादड़ रात के अंधेरे में बाहर निकलता है। दिखने में आधा पशु, आधा पक्षी लगता है। यह मानव मस्तिष्क में संदेहों के बीज बोने व कल्पनाओं को खाद-पानी देने के लिए पर्याप्त है। दक्षिण अमेरिकी माया सभ्यता में चमगादड़ का संबंध मृत्यु व नरक से जोड़ा गया। मायन लोग कमाजोट्ज नामक देवता की पूजा करते थे, जिसका शरीर इंसान का और सिर व पंख चमगादड़ के थे। इंग्लैंड व स्कॉटलैंड में एक जमाने में लोग मानते थे कि चमगादड़ चुड़ैलों व शैतान के बीच संदेशवाहक का काम करते हैं। प्राचीन बेबीलोनिया में माना जाता था कि चमगादड़ दिवंगत आत्माओं के भौतिक रूप हैं। यानी व्यक्ति के मरने पर उसकी आत्मा चमगादड़ बनकर रहने लगती है! अफ्रीकी देश आइवरी कोस्ट में भी कुछ ऐसी ही मान्यता रही है। वहीं मैडागास्कर में चमगादड़ों को अपराधियों, काला जादू करने वालों व ऐसे लोगों की आत्मा माना जाता है, जिनका अंतिम संस्कार नहीं हो पाया। ग्रीस में इन्हें पाताल लोक से संबंध रखने वाले शैतानी जीव माना जाता था।
चमगादड़ों की तथाकथित तिलस्मी ताकतों का जादू इंसानी दिमाग पर इस कदर छाया कि उसने कुछ अजीबो-गरीब और वीभत्स टोटके भी ईजाद कर डाले। ऑस्ट्रिया में एक समय माना जाता था कि यदि कोई चमगादड़ की बायीं आंख धारण कर ले, तो वह अदृश्य हो सकता है! वहीं पड़ोसी जर्मनी में लोग मानते थे कि यदि चमगादड़ का दिल लाल डोरे से बांह पर बांध दिया जाए, तो आप ताश के खेल में कभी हार नहीं सकते। पश्चिमी देशों में ही यह भी कहा जाता था कि चुड़ैलें चमगादड़ के खून से बने पदार्थ की मदद से हवा में उड़ने में सक्षम होती हैं।
मेक्सिको में चली आई किंवदंति के मुताबिक, एक समय चमगादड़ को पक्षियों के सुंदर पंखों से ईर्ष्या हो आई थी। इसके दंडस्वरूप उसे बदसूरत होने व रात में विचरण करने का श्राप मिला। एक अन्य किंवदंति के अनुसार, चमगादड़ स्वयं सुंदर पंखों वाला पंछी हुआ करता था। मगर जब उसे अपनी सुंदरता पर अत्यधिक घमंड हो गया, तो उसके रंग-बिरंगे, सुंदर पंख झड़ गए और शर्मिंदगी के मारे वह दिन में छुपने लगा और रात को ही बाहर निकलने लगा। नाइजीरिया में चमगादड़ की निशाचरी के पीछे एक अलग कारण बताया जाता है। यहां की लोककथा के अनुसार, चमगादड़ की चूहे से दोस्ती हुआ करती थी मगर वह चूहे से ईर्ष्या भी करता था। एक बार उसने बातों-बातों में भोले चूहे के गले यह बात उतार दी कि यदि उबलते पानी में स्नान किया जाए, तो उससे बना सूप बड़ा ही स्वादिष्ट होता है। चूहे ने घर जाकर यह नुस्खा आजमाया और उबलते पानी में कूदकर मर गया। चमगादड़ की कारस्तानी से नाराज राजा ने उसे गिरफ्तार करने के लिए सैनिक भेजे, तो चमगादड़ उड़नछू हो या। तभी से वह दिन में गुफाओं में छुपता है और केवल रात में बाहर निकलता है।
हर ओर से बदनामी झेल रहे चमगादड़ को यदि कहीं से राहत मिल सकती है, तो वह है चीन। यहां इसे सौभाग्य के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है और इसका संबंध खुशहाली व दीर्घायु से जोड़ा जाता है...!