Sunday 19 April 2015

गोली खाओ, करुणा निधान बन जाओ!

क्या इंसान को इंसान बनाने वाली करुणा के प्राचीन किस्से अब लैब में तैयार की गई एक 'गोली" में समा जाएंगे...?
***

अमेरिका के कैलिफॅर्निया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बीते दिनों बड़ी चौंकाने वाली घोषणा की। उन्होंने एक ऐसी गोली के आविष्कार का दावा किया है, जिसे खाने से आदमी (या औरत) में करुणा जाग जाए...! सुनने में बड़ा अटपटा लगता है मगर वैज्ञानिकों ने इसकी बड़ी वैज्ञानिक-सी व्याख्या भी की है। वह यह कि यह गोली 'फील गुड रसायन" डोपामीन के मस्तिष्क पर प्रभाव को लंबा खींच देती है, जिससे व्यक्ति दूसरों की भलाई के बारे में अधिक सोचने लगता है! अब यह बड़ी बहस का विषय हो सकता है कि क्या इंसान मंे करुणा, प्रेम, नेकी, परोपकार आदि जैसे गुण गोली या इंजेक्शन के माध्यम से पैदा किए जाएंगे! एक भला समाज, भला संसार रचने का दारोमदार क्या अब गोली-दवाइयों पर रहेगा..! फिर, अगर इंसान को एक गोली खिलाकर करुणामयी बनाया जा सकता है, तो कोई दूसरी गोली खिलाकर क्रूर, निष्ठुर, अत्याचारी भी तो बनाया जा सकता है! यह संभावना पूरी तरह खारिज तो नहीं की जा सकती। तो क्या आने वाले समय में अच्छाई और बुराई की लड़ाइयां मेडिकल रिसर्च की लैबोरेट्रीज में लड़ी जाएंगीं और अस्त्र-शस्त्र होंगे विभिन्ना गोली, कैप्सूल और इंजेक्शन...?
खैर, इन सवालों के जवाब तो जब मिलेंगे तब मिलेंगे। मगर जहां तक करुणा का सवाल है, मनुष्य जब से सभ्य हुआ है, उसने इसे एक उच्च कोटि के गुण के तौर पर देखा है। सभी धर्मों ने इसकी महानता प्रतिपादित की है। सभी सभ्यताओं ने इसके गुण गाए हैं। बच्चों-बड़ों को करुणा का पाठ पढ़ाने के लिए अनेक मिथकीय किस्से, अनेक लोक कथाएं सुनाई जाती रही हैं। बौद्ध धर्म में अवलोकितेश्वर नामक बोधिसत्व का वर्णन है, जिनमें अनंत करुणा है। एक तरह से वे करुणा का साक्षात प्रतीक हैं। वे किसी भी दु:खी प्राणी की मदद के लिए विभिन्ना रूप धारण कर आते हैं। कहा जाता है कि एक बार संसार के दु:खों को देख अवलोकितेश्वर की आंख से एक आंसू टपक पड़ा। इस आंसू ने झील का रूप ले लिया। इस झील में एक कमल का फूल उत्पन्ना हुआ और जब वह फूल खुला, तो उसमें से देवी तारा प्रकट हुईं। करुणा के आंसू से उत्पन्ना तारा करुणा की देवी ही नहीं कहलाईं, उन्हें बोधिसत्व का दर्जा भी प्राप्त हुआ।
बौद्ध कथाओं में तो करुणा के गुण पर विशेष जोर दिया गया है क्योंकि एक तरह से बौद्ध धर्म का सार ही करुणा है। मसलन, एक कथा आचार्य असंग के बारे में है, जिन्होंने मैत्रेय बुद्ध को पाने के लिए 12 वर्ष तक घोर तपस्या की मगर जब अपनी तपस्या का कोई फल मिलता न देखा, तो निराश होकर लौटने लगे। रास्ते में उन्हें दर्द से बिलखता एक कुत्ता दिखा, जिसके शरीर पर गहरा घाव था, जिसमें कीड़े लग चुके थे। असंग के मन में करुणा उमड़ पड़ी और उन्होंने कीड़ों को निकालकर, घाव साफ कर कुत्ते की पीड़ा दूर करने का फैसला किया। तभी उनके मन में विचार आया कि ऐसा करने पर कुत्ते को तो पीड़ा से मुक्ति मिल जाएगी मगर कीड़े भोजन के अभाव में मर जाएंगे! तब उन्होंने तय किया कि कीड़ों को कुत्ते के शरीर से हटाकर वे अपने शरीर पर धारण कर लेंगे। यह सोचकर कीड़े निकालने हेतु वे आगे बढ़े ही थे कि कुत्ता अदृश्य हो गया और उसकी जगह मैत्रेय बुद्ध खड़े थे! असंग ने हैरत में पड़कर पूछा कि जब मैं आपको पाना चाहता था, तो आप नहीं आए और अब जब मुझमें आपको पाने की कामना नहीं बची, तब आप क्यों मेरे सामने प्रकट हुए! इस पर मैत्रेय बुद्ध ने कहा, 'मैं तो हमेशा तुम्हारे आसपास ही था, तुम ही मुझे देख नहीं पा रहे थे। अब तुम्हारे भीतर उपजी इस असीम करुणा से तुम्हारा अंतस पवित्र हो गया और तुम मुझे देख पा रहे हो।"
यूनानी मिथकों में देवी आर्टिमिस के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी मां लीटो को बिना कोई प्रसव पीड़ा दिए पैदा हो गई थीं। जन्म लेते ही उन्होंने अपनी मां को प्रसव पीड़ा से ग्रस्त पाया, तो दाई की भूमिका निभाते हुए अपने जुड़वां भाई अपोलो को जन्म देने में मां की मदद की। इस प्रकार जन्म के साथ ही उन्होंने अपना करुणामयी रूप दिखाया और करुणा की देवी कहलाईं। दु:खियों-पीड़ितों की सहायता के लिए वे सदैव तत्पर रहतीं।
यूक्रेन में करुणा के सुखद परिणाम को रेखांकित करने के लिए एक बड़ी ही प्यारी लोक कथा सुनाई जाती है। ओकसाना नामक बच्ची को उसकी सौतेली मां के कहने पर, गरीब पिता जंगल में बनी लावारिस कुटिया में छोड़ आते हैं। ओकसाना ने सुन रखा है कि जंगल में कई प्रकार की प्रेतात्माएं रहती हैं। डरते-सहमते वह कुटिया में आग जलाती है, अपने साथ लाया कंबल फर्श पर बिछाती है और साथ लाई रोटी-पनीर का आधा हिस्सा खाकर बाकी अगले दिन के लिए बचा लेती है। देर रात को, जबर्दस्त बर्फबारी के बीच दरवाजे पर दस्तक होती है। ओकसाना डरते-डरते दरवाजा खोलती है, तो गाय जैसी, मगर बिना शरीर की आकृति को देखकर चीख पड़ती है, 'तुम कौन हो?" जवाब मिलता है, 'मैं गाय की रूह हूं। मुझे बहुत ठंड लग रही है और भूख भी लगी है, मुझे अंदर आने दो।" ओकसाना उसे कुटिया में शरण देती है, अपने लिए बचाया हुआ खाना देती है। साथ ही अपना कंबल व आग के पास सोने की जगह भी दे देती है। वह खुद आग से दूर, बिना कंबल के रात गुजारती है। सुबह जब उसकी नींद खुलती है, तो रूह की जगह पर एक बड़ा-सा संदूक पड़ा पाती है। उसे खोलने पर वह उसमें बेहद सुंदर कपड़े और कपड़ों के नीचे सोना व कीमती रत्न भरे हुए पाती है। यह उसकी करुणा का पुरस्कार है। मगर अभी पुरस्कार का शेष भाग बाकी है। कुछ ही पल में उसे उसके पिता की पुकार सुनाई देती है। वे अपना इरादा बदलकर उसे वापस अपने साथ घर ले जाने के लिए आए हैं...

अब आप ही बताइए, यदि करुणा का होना-न होना कोई गोली गटकने या न गटकने पर ही निर्भर रहे, तो क्या ऐसे दिल को छूने वाले किस्से, ऐसी प्रेरणादायी मिसालें होंगीं...?