Sunday 28 April 2019

क्यों काला हो गया सफेद कौआ?


कौए भले ही शारीरिक सुंदरता या कर्णप्रिय वाणी के स्वामी न हों मगर मानव संस्कृति में उन्हें खास स्थान हासिल है। उन्हें देवताओं का साथी, मृत्यु का संदेशवाहक और यहां तक कि धरती को सूर्य का तोहफा देने वाला भी माना गया है।
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एक अमेरिकी कबीले के लोग मानते हैं कि जब संसार नया-नया रचा गया था, तब कौए काले नहीं, सफेद हुआ करते थे। वे जंगली भैंसों के वफादार मित्र थे। उस समय मनुष्य के पास शिकार करने के उन्नात साधन नहीं थे, वे जैसे-तैसे जंगली भैंसों का शिकार कर गुजारा करते थे। मगर शिकार में कौए बाधा बनते थे। वे आसमान में उड़ते हुए देख लेते कि मनुष्य भैंसों का शिकार करने आ रहे हैं और पहले ही जाकर अपने मित्र भैंसों को आगाह कर देते थे। इस कारण शिकारियों के पहुंचने से पहले ही भैंसों का झुंड नौ दो ग्यारह हो जाता और बेचारे मनुष्य हाथ मलते रह जाते। आखिर मनुष्यों ने सभा कर फैसला किया कि कौओं का कुछ करना होगा वर्ना हम तो भूखों मर जाएंगे। तय हुआ कि कौओं के सरदार को किसी तरह अपनी गिरफ्त में लिया जाए। एक युवक ने तरकीब से कौओं के सरदार को पकड़कर उसके पैरों को एक डोरी से बांध दिया और डोरी के दूसरे छोर पर पत्थर बांध दिया, जिससे वह उड़ने में असमर्थ हो गया। फिर उसे मनुष्यों की सभा में पेश किया गया। एक गुस्सैल व्यक्ति ने कहा कि इस कौए को तो आग में भस्म कर देना चाहिए। इससेे पहले कि कोई कुछ कह पाता, उसने कौए को उठाकर आग में फेंक दिया। आग में पड़ते ही डोरी जल गई और पत्थर गिर पड़ा, जिससे कौआ आजाद होकर उड़ गया। मगर क्षण भर के लिए आग में झोंके जाने से कौए का रंग काला हो गया। तभी से कौआ काला है।
मजेदार बात यह है कि एक ग्रीक पौराणिक कथा में भी कौए के सफेद से काला हो जाने का उल्लेख आता है। इसके अनुसार, सत्य के देवता अपोलो को कोरोनिस नामक राजकुमारी से प्रेम हो गया। उन्होंने अपने विश्वस्त सफेद कौए को कोरोनिस की निगरानी (या कह लीजिए जासूसी) करने का जिम्मा सौंपा। कोरोनिस को एक राजकुमार से प्रेम हो गया। कौए ने आकर अपोलो को इसकी सूचना दे डाली। कोरोनिस की बेवफाई की खबर सुनकर अपोलो आग-बबूला हो गए और पूछ बैठे कि तुमने उस राजकुमार की आंखें क्यों नहीं नोच लीं? उन्होंने अपने क्रोध से कौए को इस कदर झुलसा दिया कि उसका रंग काला पड़ गया।
विभिन्ना संस्कृतियों में कौओं को कहीं पवित्र माना गया है, तो कहीं दुष्ट। दोनों ही मान्यताओं में उन्हें कुछ असामान्य शक्तियों का स्वामी बताया गया है। स्कॉटलैंड में कहा जाता है कि अगर कोई कौआ किसी घर के ऊपर लगातार चक्कर लगा रहा हो, तो यह उस घर में किसी की मृत्यु का पूर्व संकेत है। सर्बियाई दंतकथाओं में अक्सर युद्ध में किसी शूरवीर के खेत रहने की सूचना उसके घरवालों को कौओं द्वारा दिए जाने का जिक्र आता है। कुछ योरपीय और अमेरिकी समुदायों में माना जाता है कि दिवंगत आत्माओं को कौए ही इस लोक से परलोक लेकर जाते हैं। स्कैंडिनेविया में ज्ञान और विद्वत्ता के देवता ओडिन के साथी, विचार व स्मृति नाम के दो कौए थे। वे संसार भर में घूमकर ओडिन को खबर देते रहते थे कि मनुष्य लोक में क्या-क्या चल रहा है।
एक चीनी दंतकथा के अनुसार, जब संसार अंधकार में डूबा हुआ था, तो लाल रंग के व तीन पैरों वाले दस कौए जाकर प्रकाश के रूप में दस सूर्य ले आए। इससे अंधकार तो दूर हो गया लेकिन दस सूर्यों की गर्मी से धरती व इस पर रहने वाले सारे प्राणी झुलसने लगे। तब एक वीर तीरंदाज ने अपने शक्तिशाली बाणों से नौ कौओं को मार गिराया और पृथ्वी को भस्म होने से बचा लिया। शेष बचा कौआ ही आज सूर्य का प्रतीक है।

वह पहली हंसी, जो आपको इंसान बनाए


हंसते तो हम सब हैं लेकिन एक समुदाय शिशु की पहली-पहली हंसी का उत्सव भी मनाता है। हंसी के देवता का मंदिर भी बना है और हंसने की पार्टियां भी हुई हैं। यहां तक कि हंसी मृत्यु का कारण भी बनी है।
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दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका के नैवहो आदिवासी समुदाय में शिशु के जन्म के बाद उसकी पहली हंसी का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। शिशु के करीब तीन महीने का होते ही मित्र-रिश्तेदार माता-पिता से पूछने लगते हैं, 'बच्चा हंसा कि नहीं?" दरअसल, इस समुदाय में ऐसी मान्यता है कि जन्म लेने पर मानव शिशु आत्मिक लोक व भौतिक लोक दोनों में मौजूद होता है। उसकी पहली हंसी इस बात का संकेत मानी जाती है कि अब वह आत्मिक लोक को छोड़कर पूरी तरह भौतिक लोक का होकर रहना चाहता है। जाहिर है, यह परिवार के लिए एक बड़ा अवसर होता है, जिसका जश्न मनाना अपरिहार्य हो जाता है। परंपरा यह है कि जो भी व्यक्ति शिशु को पहली बार हंसाए, उसे तमाम रिश्तेदारों व मित्रों को दावत देनी होती है। वैसे इस दावत का आधिकारिक मेजबान शिशु को ही माना जाता है। दावत में आने वाले प्रत्येक मेहमान को नमक, मिठाई और कोई उपहार दिया जाता है। माता-पिता शिशु का हाथ पकड़कर औपचारिक रूप से उसी के हाथों सबको ये वस्तुएं भेंट करते हैं।
नैवहो समुदाय की इस दिलचस्प परंपरा के पीछे कारण शायद यह रहा है कि पुरातन काल में शिशु मृत्यु दर बहुत ऊंची होने के चलते जन्म लेने वाला शिशु कितने दिन का मेहमान है, इसे लेकर सदा संशय रहता था। इसलिए कहा जाता था कि बच्चा अभी आत्मिक व भौतिक दोनों लोकों में है। शिशु यदि तीन-एक महीने निकाल ले और हंसना शुरू कर दे, तो यह इस बात का संकेत है कि असमय मृत्यु का खतरा टल गया है और बच्चा स्वस्थ है। ऐसे में जश्न मनाना तो बनता है। बच्चा जिएगा या नहीं, यह संशय दूर होते ही मान लिया जाता है कि अब वह पूरी तरह भौतिक लोक में है। एक अन्य स्तर पर हम इस परंपरा की व्याख्या इस प्रकार भी कर सकते हैं कि पहली बार हंसने पर ही कोई पूरी तरह मनुष्य बनता है।
ऐसा भी नहीं है कि हंसी पर मानव का ही एकाधिकार माना गया हो। ग्रीक देवताओं की लंबी सूची में एक गैलॉस भी थे, जिन्हें हंसी का देवता माना गया। प्राचीन ग्रीक शहर स्पार्टा में गैलॉस को समर्पित मंदिर भी था। ग्रीस में हंसने-हंसाने को विशेष महत्व दिया जाता था। बताया जाता है कि सिकंदर के पिता सम्राट फिलिप ने बाकायदा चुटकुले लिखने के लिए लोग नियुक्त कर रखे थे!
अठारहवीं सदी के अंत में नाइट्रस ऑक्साइड के चिकित्सकीय गुणों की खोज के दौरान पता चला कि इसे खास मात्रा में ग्रहण करने पर व्यक्ति को हंसी के फव्वारे छूटने लगते हैं। इसलिए इसे लाफिंग गैस का नाम भी दिया गया। इस गुण की खोज करने वाले हंफ्री डेवी ने पहले तो खुद पर ही प्रयोग किए, फिर अपने मित्रों को आमंत्रित कर उन पर प्रयोग करने लगे। वे मित्रों को मुंह के जरिए नाइट्रस ऑक्साइड देते और उनसे कहते कि बताओ, तुम्हें कैसा अनुभव होता है। इन प्रयोगों को लाफिंग गैस पार्टियों के नाम से भी जाना गया। लोग गैस के प्रभाव से बेकाबू हंसी की गिरफ्त में आ जाते और बाद में अपने-अपने तरीके से बताते कि उन्हें उस दौरान कैसा अनुभव हुआ।
यह समझने की गलती न करें कि हंसी कोई हंसने का विषय मात्र है। हंसी मारक भी हो सकती है। एक किंवदंति है कि कैलकस नामक भविष्यदृष्टा के बारे में एक अन्य भविष्यदृष्टा ने कहा था कि वे अपने द्वारा रोपे गए पौधों के अंगूरों से बनी मदिरा का सेवन करने से पहले ही स्वर्ग सिधार जाएंगे। कैलकस के रोपे हुए पौधे बड़े हुए, उन पर अंगूर आए, अंगूरों से मदिरा बनाई गई। कैलकस इसका सेवन करने ही वाले थे कि उन्हें यह सोचकर हंसी आ गई कि उनके प्रतिद्वंद्वी की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हो गई। कहते हैं कि वे इस कदर जोर-जोर से हंसे कि मदिरा का पहला घूंट लेने से पहले ही हंसते-हंसते मृत्यु के आगोश में चले गए...!