Sunday 13 December 2015

शुभ-अशुभ के बीच सम-विषम

हम अंकों को गिनती का साधन मात्र मानने से संतुष्ट नहीं होते, इन्हें अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ, दैवी-दानवी के संदर्भ में भी देखना चाहते हैं। यही कारण है कि विभिन्ना अंकों को लेकर तरह-तरह की मान्यताएं बनती और चलती आई हैं। इस मामले में, खास तौर पर अंकों की 'समता" और 'विषमता" को हमने बहुत गंभीरता से लिया है।
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सम-विषम संख्याओं की इन दिनों बड़ी चर्चा है। दिल्ली की हवा को इन संख्याओं पर आधारित फॉर्मूला किस हद तक साफ कर पाता है, यह तो बाद में पता चलेगा, मगर इतना तो हम कह ही सकते हैं कि संख्याओं का यह विभाजन लगभग तभी से हमें मुग्ध करता आया है, जब से यह अस्तित्व में आया। कहने को इन दोनों प्रकार की संख्याओं में अंतर मात्र इतना है कि सम संख्याएं दो समान हिस्सों में बांटी जा सकती हैं, जबकि विषम संख्याएं इस प्रकार नहीं बांटी जा सकतीं। मगर मानव के मानस में संख्याओं का यह विभाजन कहीं अधिक गहरे पैठा हुआ है। हमने सम और विषम अंकों में कई अर्थ तलाशे हैं। उनके साथ गुण-अवगुण नत्थी कर दिए हैं। उन्हें ताकत और कमजोरी से जोड़ा है। हम अंकों को गिनती का साधन मात्र मानने से संतुष्ट नहीं होते, इन्हें अच्छे-बुरे, शुभ-अशुभ, दैवी-दानवी के संदर्भ में भी देखना चाहते हैं। यही कारण है कि विभिन्ना अंकों को लेकर तमाम देशों-संस्कृतियों में तरह-तरह की मान्यताएं बनती और चलती आई हैं। इस मामले में, खास तौर पर अंकों की 'समता" और 'विषमता" को हमने बहुत गंभीरता से लिया है।
मोटे तौर पर, अधिकांश समाजों में विषम संख्याओं को शुभ और सम संख्याओं को अशुभ माना गया है। इसका कोई सर्वमान्य, तार्किक कारण रेखांकित करना मुश्किल है। संभवत: दो समान हिस्सों में बंट जाना ही सम संख्याओं की कमजोरी के रूप में देखा गया और इन्हें गैर-भरोसेमंद तथा प्रकारांतर से अशुभ माना गया। दूसरी ओर, इस तरह विभाजित न होना विषम संख्याओं की ताकत माना गया और उन्हें बलशाली तथा शुभ कहा गया। संभवत: ग्रीक मूल का एक विचार यह भी रहा है कि चूंकि '1" प्रारंभिक अंक है, इसलिए यह सभी अंकों का जनक हुआ। इस नाते इसे दिव्य भी माना जा सकता है। यानी जिस प्रकार ईश्वर सारे संसार का जनक है, उसी प्रकार '1" सारे अंकों का जनक होने के नाते अंकों का 'ईश्वर" हुआ। '1" की यह दिव्यता शेष विषम अंकों पर भी कृपा बरसा गई। वहीं चूंकि '1" के ठीक बाद '2" आता है, सो इसे ठीक विपरीत गुणों वाला और शैतान के तुल्य माना गया। साथ ही, अन्य सम अंकों को भी इस शैतानियत का भागी बना डाला गया।

चीन में विषम संख्याओं को आसमानी और सम संख्याओं को जमीनी माना गया है। लिंगभेद करते हुए विषम संख्याओं को नर और सम संख्याओं को मादा भी कहा गया है। जापान में विषम संख्याओं को अहम माना गया है। वहां किसी बच्चे की उम्र का तीसरा, पांचवां और सातवां पड़ाव महत्वपूर्ण माना जाता है। वहां 3 साल के लड़के-लड़कियों, 5 साल के लड़कों और 7 साल की लड़कियों को उनके विकास का उत्सव मनाने के लिए मंदिर ले जाया जाता है। वहीं जापानी मान्यताओं में सम संख्याओं को कतई अच्छा नहीं माना जाता। '2" का संबंध बंटवारे से और '4" का संबंध मृत्यु से है। यही कारण है कि वहां अस्पतालों में किसी वॉर्ड को 4 नंबर देने से बचा जाता है, ठीक उस तरह जैसे पश्चिम में 13 नंबर से बचा जाता है! रूस में भी सम संख्या को मृत्यु से जोड़कर देखा जाता है। लोग शवयात्रा में सम संख्या में फूल लेकर पहुंचते हैं, जबकि खुशी के अवसरों पर हमेशा किसी को विषम संख्या में फूल भेंट किए जाते हैं। इंग्लैंड में तो एक समय ऐसा भी आया, जब विषम संख्याओं के प्रति भक्ति चिकित्सा के क्षेत्र में भी जा पहुंची। तब चिकित्सक अपने मरीजों को 3, 5, 7, 9 आदि दिनों के लिए दवाएं देते थे! नुस्खे भी 'विषम" ही होते थे, जैसे फलां चीज के 3 दाने या अलां चीज की 5 बूंदें। गोया 'विषम" ही हर मर्ज की दवा हो...!