Sunday 8 July 2018

जब नाच उठा सूखे का भय और बह निकली नदी


बारिश कराने के लिए कोई नृत्य करता है, तो कोई देवताओं को दावत देता है। हर हाल में बरसात पाकर रहने के लिए हमारे पूर्वजों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है...
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उत्तर अमेरिका के एक समुदाय में प्रचलित जनश्रुति के मुताबिक, एक बार ऐसा सूखा पड़ा कि कई महीनों तक बारिश ही नहीं हुई। मैदान सूख गए, नदी सूख गई, पशु मरने लगे। लोग आसमान ताकते रहते लेकिन कोई राहत नहीं मिलती। धीरे-धीरे पूरे इलाके में 'भय" का राज होने लगा। हर किसी पर यह हावी होने लगा। फैलते-फैलते चारों ओर भय फैल गया। बस, गांव के बाहरी छोर पर वह स्थान इससे बचा रह गया, जहां बच्चे खेलते थे और बुजुर्ग गपियाते थे। जब भय वहां जा पहुंचा, तो बच्चों ने उसे आश्चर्य से देखते हुए बुजुर्गों से पूछा कि यह कौन आया है? बुजुर्गों ने बताया कि यह भय है। जब बच्चों ने पूछा कि क्या यह हमारे साथ खेलने आया है, तो बुजुर्ग बोले, 'यह तो खेलना भूल चुका है।"
बच्चों ने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए कि भय को फिर से खेलना आ जाए। तय हुआ कि वे नृत्य करेंगे, तो शायद भय फिर से खेलने लगे। बच्चों ने नृत्य करना शुरू किया। बुजुर्ग भी गीत गाते हुए उनका साथ देने लगे। जब इनके नृत्य व गीत की आवाज आसपास के गांवों तक पहुंची, तो लोग देखने आए कि क्या माजरा है। देखते ही देखते वे भी नृत्य में शामिल हो गए। इस प्रकार नृत्य का सिलसिला चलता रहा। आखिरकार भय भी खुद को रोक न सका और सबके साथ थिरकने लगा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे और होंठों पर हंसी लौट आई। उसके साथ-साथ नृत्य करने वाले लोगों के भी आंसू बहने लगे। तभी हवा वहां आई और सारा नजारा देखकर न सिर्फ दूर-दूर से पशु-पक्षियों को बुला लाई, बल्कि खुद भी नृत्य में शामिल हो गई। सभी नाचे जा रहे थे और आंसू बहाए जा रहे थे। इन सबके आंसू धरती पर पड़ते गए और देखते ही देखते सूखी नदी फिर पानी से भर गई।
यह कहानी उत्तर अमेरिका के आदिवासी समुदायों में प्रचलित रही उस परंपरा से जोड़ी जाती है, जिसमें वर्षा का आह्वान करने के लिए विशेष नृत्य किया जाता है। दरअसल, जीवन के लिए वर्षा का महत्व तो मनुष्य काफी पहले ही जान चुका था लेकिन लंबे समय तक वह इससे अवगत नहीं था कि मौसम चक्र कैसे चलता है और बारिश कैसे होती है। सो जीवनदायी बरसात जब रूठी हुई लगे तो उसे मनाने के भांति-भांति के टोटके तलाशे गए। ऐसे ढेरों टोटके हमारे देश में अब भी अपनाए जाते देखे जा सकते हैं। अन्य देशों-संस्कृतियों में भी बारिश कराने के लिए विभिन्ना प्रकार के उपाय किए जाते रहे हैं। दक्षिण अमेरिका की माया सभ्यता में वर्षा के देवता चाक को प्रसन्ना करने के लिए आलीशान दावत का आयोजन किया जाता था। वहीं कई स्थानों पर इसके लिए बलि देने का चलन भी रहा है। कई देशों में ऐसे जादूगर/ ओझा होते थे, जो वर्षा करा सकने का दावा करते थे। समाज में इनका विशेष स्थान हुआ करता था। कुछ अफ्रीकी देशों में तो बारिश कराना खानदानी पेशा भी हुआ करता था!
थाइलैंड में एक अजीबोगरीब परंपरा रही है, जिस पर पशु क्रूरता के खिलाफ लड़ने वालों को आपत्ति भी हो सकती है। वहां जब लंबे समय तक बारिश नहीं होती है, तो एक बिल्ली को टोकरी में रखकर गांव भर में उसका जुलूस निकाला जाता है। जिन-जिन घरों के सामने से जुलूस निकलता है, वहां से बिल्ली पर पानी फेंका जाता है। लोग मानते हैं कि पानी पड़ने से चिढ़कर/ घबराकर बिल्ली जो 'म्याऊं-म्याऊं" करती है, उससे बारिश होने लगती है!

Sunday 1 July 2018

जिसके बिना अधूरा है देवताओं का अस्तित्व


सोने को सदा चुनौती देती आई चांदी की कीमत उसकी प्रतीकात्मकता व धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व में निहित है। इसके बिना तो देवी-देवताओं का अस्तित्व भी अधूरा माना गया है।
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अफगानिस्तान की एक बड़ी प्यारी-सी लोककथा है। एक गरीब किसान जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी तंगहाली से मुक्त नहीं हो पा रहा था। वह कल्पना किया करता था कि काश किसी दिन उसका घर धन-दौलत से भर जाए! एक दिन वह खेत में काम कर रहा था कि अचानक कंटीली झाड़ियों में उसके कपड़े फंसकर फट गए। उसने यह सोचकर झाड़ी उखाड़ना शुरू की कि कहीं दोबारा इसकी वजह से किसी के कपड़े न फट जाएं। जब झाड़ियों की जड़ों के साथ कुछ मिट्टी भी उखड़ आई, तो उसने देखा कि नीचे एक बड़ा-सा मर्तबान दफन है। मर्तबान निकालकर व खोलकर देखा, तो वह दंग रह गया। उसमें चांदी के सिक्के भरे पड़े थे। उसने सोचा, 'मैंने धन-दौलत चाही तो थी लेकिन अपने घर में। मैं कैसे मान लूं कि यह दौलत मेरे ही लिए है!" यह सोचकर वह मर्तबान वापस वहीं गाड़कर घर चला आया। बीवी को बताया, तो वह आग-बबूला हो गई कि कैसा अहमक है, हाथ लगी दौलत को घर लाने से इनकार कर रहा है! रात को वह पड़ोसी के पास गई और उसे खेत में दफन खजाने के बारे में बताते हुए कहा कि मेरा शौहर तो उसे ला नहीं रहा, तुम जाकर ले आओ और आधा खजाना मेरे साथ बांट लो।
पड़ोसी तुरंत खेत की ओर लपका। उसे वह मर्तबान मिल भी गया मगर जैसे ही उसने उसे खोलकर देखा, तो पाया कि वह जहरीले सांपों से भरा है। उसने तुरंत मर्तबान का ढक्कन लगा दिया और सोचने लगा कि पड़ोसन मेरी जान की दुश्मन है, तभी मुझे इस लालच में फंसाया। उसे सबक सिखाने के इरादे से वह मर्तबान उठा लाया और किसान के घर की छत पर चढ़कर उसकी चिमनी में मर्तबान खाली कर दिया। वह यह सोचकर संतुष्ट था कि जहरीले सांप किसान पति-पत्नी का काम तमाम कर देंगे। मगर अगली सुबह जब किसान की नींद खुली, तो उसने देखा कि उसका घर चांदी के सिक्कों से भर गया है- ठीक वैसे ही, जैसे कि उसने इच्छा की थी...
गौर करें, एक भोले, गरीब किसान को मालामाल होते दिखाने के लिए यहां सोना नहीं, चांदी को माध्यम बताया गया है। धातु जगत में धन-दौलत की चरम सीमा का प्रतीक होना सोने का एकाधिकार नहीं, इसमें चांदी की भी भागीदारी है। वैसे सोने के साम्राज्य के आगे चांदी की सल्तनत भी हमेशा पूरे ठस्से से खड़ी रहती ही आई है। प्राचीन मिस्र में तो कहा गया था कि देवी-देवताओं के शरीर का मांस सोने का और अस्थियां चांदी की होती हैं। यानी देवी-देवताओं के अस्तित्व के लिए भी सोने के साथ-साथ चांदी का होना अनिवार्य है।
अपने रंग-रूप के कारण अनेक स्थानों पर चांदी का संबंध चंद्रमा से जोड़ा गया। साथ ही, यह कई चीजों की प्रतीक भी रही है। इसका उपयोग आभूषण बनाने व सिक्के ढालने में तो होता ही रहा है मगर इसका वास्तविक मूल्य इससे कहीं बढ़कर होता आया है। वजह है, इससे जुड़ी प्रतीकात्मकता और धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व। अनेक स्थानों पर इसे प्रेम, सत्यनिष्ठा, विश्वास व बुद्धिमत्ता के प्रतीक के तौर पर किसी को भेंट करने की परंपरा रही है। लिथुएनिया में विवाह में आने वाले मेहमान चांदी के सिक्के लेकर आते हैं। जब नृत्य शुरू होता है, तो सभी मेहमान अपने-अपने सिक्के नृत्य स्थल पर बिखेर देते हैं। बाद में इन सिक्कों को एक पात्र में इकट्ठा कर दिया जाता है और इनमें एक खास सिक्का मिला दिया जाता है, जिस पर वर-वधु के नामों के पहले अक्षर दर्ज होते हैं। अब मेहमानों से कहा जाता है कि वे बारी-बारी से पात्र में से एक सिक्का निकालें। जिस मेहमान के हाथ वर-वधु के नाम वाला विशेष सिक्का आता है, उसे वर या वधु के साथ नृत्य करने का मौका मिलता है।