Sunday 1 January 2012

साँसों की साझेदारी के अपने-अपने अंदाज


चींटियों की कतार पर आपने गौर किया होगा। एक के पीछे एक अनुशासित सिपाहियों की तरह चलतीं चींटियाँ जब विपरीत दिशा से रही किसी चींटी से रूबरू होती हैं, तो...? अमूमन वह चींटी कतार की लगभग हर चींटी से 'मिलती" हुई जाती है। कभी लगता है वे एक-दूसरे को बस, हाय-हैलो कर रही हैं, कभी लगता है कोई जरूरी सूचना दी जा रही है। कुछ लोगों को यकीन है कि यहाँ 'किस" का आदान-प्रदान होता है! वैज्ञानिक कहते हैं कि चींटियाँ आपस में संदेशों का लेनदेन करती तो हैं मगर खास किस्म के रसायनों के माध्यम से, कि हमारी तरह बोलकर। खैर, इतना तो है कि किसी चींटी को सामने से आती दूसरी चींटी मिल जाए, तो वह उसे अनदेखा नहीं करती, बल्कि अपने अंदाज में, अपने तरीके से, यहाँ तक कि शायद अपने किसी खास उद्देश्य से उसका अभिवादन करती है। फिर हम इंसान तो बौद्धिक और सामाजिक रूप से सबसे ज्यादा विकसित प्राणी होने पर अपना सीना फुलाते हैं। परिचितों से मिलने पर हम भी उनका अभिवादन करते हैं, अलबत्ता अलग तरीके से, बल्कि कुछ ज्यादा ही अलग-अलग तरीकों से।
विश्व में अभिवादन का सबसे व्यापक रूप से प्रचलित तरीका हाथ मिलाना ही है। हम कह सकते हैं 'अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त" तरीका! अलग-अलग देशों के लोग भी मिलने पर आम तौर पर इसे ही आजमाते हैं, फिर भले ही हाथ मिलाना मूल रूप से उन दोनों ही देशों का 'देसी" तरीका हो। हमने भी इसे किस कदर अपना लिया है, यह इसी बात से पता चलता है कि नन्हे बच्चे को भी हम बड़े जतन से सिखाते हैं,'बेटा शेक-हैंड करो, शेक-हैंड..!" बच्चा तो बच्चा, लोग अपने पालतू डॉगी तक को शेक हैंड करना सिखा डालते हैं! यूँ आम तौर पर भले ही हाथ मिलाना पश्चिमी सभ्यता से उपजा तरीका माना जाता हो, जानकार मानते हैं कि इसकी शुरुआत आदिम काल में हुई थी, जब लोग शिकार तथा अपनी रक्षा के लिए हमेशा हाथ में कोई शस्त्र लेकर चलते थे। किसी परिचित से मुलाकात होने पर वे शस्त्र नीचे रखकर अपना हाथ आगे बढ़ा देते, अपनी सद्भावना दर्शाने हेतु। उस आदिम युग में यह तरीका था बताने का कि मैं तुम्हें शत्रु नहीं मानता, तुम्हारे सामने मुझे शस्त्र उठाने की जरूरत नहीं, देखो, मेरे हाथ में कोई छुपा शस्त्र भी नहीं.. तब यह नेक नीयत और साफ दिल का सूचक हुआ करता था। आज कॉर्पोरेट जगत की मीटिंगों में हाथ मिलाकर एक-दूसरे का अभिवादन करने वालों के दिल में क्या मैल कुलबुला रहा है, कहना मुश्किल होता है।
परिचितों, खास तौर पर उम्र या ओहदे में अपने से बड़ों का झुककर अभिवादन करने का चलन कई देशों में है। राजा-महाराजों को झुककर सलाम करने का रिवाज तो हर युग में, हर संस्कृति में रहा है लेकिन जापान, चीन आदि में अब भी झुककर हर खास--आम का अभिवादन किया जाता है। इसमें सामने वाले के प्रति सद्भावना सम्मान का प्रकटीकरण भी है और अपनी विनम्रता का भी। हम कह सकते हैं कि बड़ों के पैर छूने की भारतीय परंपरा इसी के आगे की कड़ी है। छोटे विनम्रतापूर्वक पैर छूकर बड़ों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं और बड़े उनके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं। खैर, तो बात हो रही थी झुककर अभिवादन करने की। कुछ समय पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सऊदी अरब के शासक तथा जापान के सम्राट का झुककर अभिवादन किया, तो उनके देश में इसे लेकर काफी चीख-पुकार मची। अतिरेकी राष्ट्रवादियों ने कहा कि अमेरिका के राष्ट्रपति को यह शोभा नहीं देता कि वह किसी के आगे झुके... नाक कटा दी देश की वगैरह...! मजेदार बात यह है कि अमेरिका के ही प्रथम राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन ने महसूस किया था कि हाथ मिलाना तो आम लोगों का तरीका है, सो वे सार्वजनिक समारोहों में झुककर लोगों का अभिवादन करते थे!
कई जगहों पर हाय-हैलो कहने के प्रचलित तरीके हमें अजीब भी लग सकते हैं लेकिन जहाँ की परंपरा में ये रचे-बसे हैं, वहाँ इनके पीछे तर्क भी मौजूद हैं। मसलन, न्यूजीलैंड के माओरी आदिवासी आपस में नाक रगड़कर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। इसे 'साँसों की साझेदारी" कहते हैं। चार दिन के इस जीवन में किसी प्रियजन से मिलकर, उसके साथ कुछ पल बिताना एक तरह से साँसों की साझेदारी ही हुई ना? इधर तिब्बत में अपनी जबान बाहर निकालकर अभिवादन किया जाता है। वहाँ पुरानी मान्यता हुआ करती थी कि शैतानों/राक्षसों की जबान हरी होती है और यदि कोई किसी को जहर देने का इरादा रखता है तो उसकी जबान काली हो जाती है। अत: अपनी सामान्य जबान का प्रदर्शन कर आप अपने मनुष्य होने तथा अपनी नेक नीयत को दर्शा रहे होते हैं। सिएरा लियोन में एक-दूसरे की ठुड्डी पर हाथ फेरने का रिवाज है, तो पॉलिनेशियन द्वीपों में अपने निकटजन का हाथ लेकर उससे अपना चेहरा सहलाया जाता है।
हाथ जोड़कर नमस्कार करने की भारतीय प्रथा से मिलती-जुलती प्रथा दक्षिण दक्षिण-पूर्व एशिया के अन्य देशों में भी है। बराबरी वालों, खास तौर पर करीबी लोगों से मिलने पर उन्हें गले लगा लेने का चलन तो लगभग हर कहीं देखा जा सकता है। ब्रिटेन में अपना हैट हल्का-सा उठाकर अभिवादन किया जाता है। याने कहीं अत्यधिक गर्मजोशी, तो कहीं ठंडा-सा लगने वाला अभिवादन किया जाता है।
तरीके अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मूल बात है इंसान के भीतर की भावना। आप किसी के प्रति स्नेह या सम्मान रखते हैं, जीवन की राह में उसका रास्ता आपके रास्ते से मिलने पर प्रसन्नाता अनुभव करते हैं, तो यह प्रसन्नाता किसी भी रूप में प्रकट हो सकती है। देश, समाज, संस्कृति उस रूप, उस तरीके को निर्धारित कर सकते हैं मगर भावना तो व्यक्ति के भीतर से ही उपजती है। यह देश या समाज नहीं देखती, बस प्रकट हो जाती है। कभी सलाम-नमस्ते के रूप में, कभी हाथ मिलाने के रूप में, तो कभी जबान दिखाने के रूप में।

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