Sunday 13 March 2016

एक घाट पर शेर और बकरी...?

विभिन्न प्रजातियों के पशुओं के बीच मित्रता के किस्से हम पंचतंत्र आदि की नीति-कथाओं में पढ़ते-सुनते आए हैं। इन कथाओं से हम चाहे कितने ही आनंदित हों मगर हम यही मानकर चलते हैं कि पशुओं के बीच ऐसे संबंध वास्तविक जीवन में नहीं होते। ... पर कभी-कभी नीति-कथाओं के आदर्श साक्षात रूप में सामने आ जाते हैं...!
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संकट में पड़े पशुओं के लिए अमेरिका में बनाई गई एक पनाहगाह में बाघ, सिंह और भालू की दोस्ती की खूब चर्चा है। इन तीनों की अस्वाभाविक मित्रता दर्शकों को लुभा रही है। प्राकृतिक रूप से इन तीनों पशुओं में सौहार्द्रपूर्ण संबंध नहीं होते। बाघ और सिंह अमूमन एक ही जंगल मंे रहते भी नहीं। मगर ये तीनों मित्र तब से साथ हैं, जब मात्र कुछ माह की उम्र में इन्हें एक ड्रग डीलर के यहां से बरामद कर इधर लाया गया था। तीनों कमजोर, बीमार और घायल थे। ऐसे में उनके बीच ऐसा सखा भाव जागा, जो आज पंद्रह साल बाद भी कायम है। तीनों हमेशा साथ ही रहते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं के बीच छुटपन में मित्रता होना अजूबा नहीं है मगर परिपक्वता आने के बाद यह मित्रता अक्सर टूट जाती है। इसलिए बाघ, सिंह और भालू की यह दोस्ती अपवाद ही कही जाएगी।
विभिन्ना प्रजातियों के पशुओं के बीच मित्रता के किस्से हम पंचतंत्र आदि की नीति-कथाओं में पढ़ते-सुनते आए हैं। इन कथाओं से हम चाहे कितने ही आनंदित हों मगर हम यही मानकर चलते हैं कि पशुओं के बीच ऐसे संबंध वास्तविक जीवन में नहीं होते। फिर भी, ऐसे किस्से जीवन का कोई सबक देने के अपने उद्देश्य में सफल हो ही जाते हैं। फिलिपीन्स की ऐसी ही एक कथा शेर और खरगोश की दोस्ती के बारे में है। इसके अनुसार, इन दोनों की दोस्ती अटूट थी। खरगोश अपने दोस्त को शिकार करने में मदद किया करता था। वह शिकार को लुभाकर शेर की दिशा में ले जाता और शेर बड़े इत्मीनान से शिकार कर लेता। बदले में खरगोश को यह फायदा था कि अपने ताकतवर दोस्त के चलते उसे अन्य खतरनाक जानवरों से कोई डर न था। फिर एक बार जंगल में ऐसी बीमारी फैली कि सारे पशु एक-एक कर मरने लगे। आखिर में नदी के मगरमच्छों के अलावा बस, यह शेर और खरगोश ही जिंदा बचे। खरगोश तो घास-फूस खाकर गुजारा कर लेता मगर शेर का मारे भूख के बुरा हाल होने लगा। आखिर भूख के चलते वह अपने दोस्त को ललचाई नजरों से देखने लगा। खरगोश उसके इरादों को भांप गया और उससे दूर-दूर रहने लगा। मगर शेर उसके पीछे आ ही जाता। आखिर एक रात खरगोश ने मरने का नाटक किया। जब शेर उसे मरा हुआ मानकर चला गया, तो खरगोश ने नदी में तैर रहे एक मगरमच्छ को बुलाकर पूछा, 'आप लोग संख्या में कितने हो?" मगरमच्छ ने जवाब दिया, 'बहुत सारे।" इस पर खरगोश बोला, 'मैं कैसे मानूं? आप सब नदी के इस किनारे से उस किनारे तक कतार लगा लो, मैं एक-एक को गिनूंगा।" मगरमच्छ ने अपने सारे साथियों को बुला लिया। सबने कतार बना ली। तब खरगोश बारी-बारी से एक-एक मगरमच्छ की पीठ पर कूदता हुआ गिनने लगा, 'एक, दो, तीन, चार...." और यूं गिनते-गिनते वह नदी के उस पार पहुंच गया, जहां उसे अपने अब 'भूतपूर्व" हो चुके दोस्त से कोई खतरा नहीं था...! इस कहानी का संदेश यही है कि स्वार्थ के चलते दोस्ती का रिश्ता कभी भी टूट सकता है और ऐसी स्थिति आने पर यथाशीघ्र इस रिश्ते को समाप्त कर देना ही ठीक होता है।
यूं शेर और खरगोश की दोस्ती होना असंभव लगता है और हमारी तर्कशक्ति यही कहती है कि अगर ऐसी दोस्ती हो भी जाए, तो उसका हश्र इस फिलिपीनी कहानी की तरह ही होगा। यानी शेर आखिर में 'अपनी वाली" पर आ ही जाएगा। आखिर हर पशु की अपनी प्रकृति होती है। हम मनुष्य हिंसा को त्याज और सहचर्य को वांछनीय मानते हैं। मगर पशु जगत में इस प्रकार की नैतिक संहिता काम नहीं करती। इसके बावजूद हम एक ऐसे आदर्श संसार की कामना करते हैं, जहां ऐसे नैतिक आदर्श पशु जगत पर भी लागू हों। याद है न, आदर्श संसार की वह प्राचीन भारतीय परिकल्पना, जिसमें शेर और बकरी एक ही घाट का पानी पिएंगे/ पीते थे...? बाइबल में भी ऐसे आदर्श संसार का उल्लेख है, जिसमें भेड़िया और भेड़, तेंदुआ और मेमना, शेर और बछड़ा साथ रहेंगे। इसे शब्दश: न भी लें, तो कुल मिलाकर यह आदर्श है एक ऐसे विश्व का, जिसमें कोई क्लेश, कोई हिंसा, कोई स्वार्थ, कोई भय नहीं होगा।

हम स्वयं को ऐसे किसी आदर्श संसार में पाएंगे, इसकी निकट भविष्य में तो कोई संभावना फिलहाल नजर नहीं आती। मगर पशु जगत की असंभव, अस्वाभाविक मित्रताओं के उदाहरण जब-तब हमारे सामने आते रहते हैं और हमें गुदगुदाते हैं। ... और शायद हमारे दिल में कहीं यह आस भी जगाते हैं, कि एक दिन ऐसी दुनिया वास्तव में होगी, जिसमें शेर और बकरी एक ही घाट से पानी पिएंगे...। 

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