Sunday, 28 January 2018

बर्फ को आग के हवाले कर जाड़े की विदाई

यूं तो वसंत का स्वागत दुनिया के हर कोने में अपने-अपने तरीके से किया जाता है मगर ठंडे देशों में इसका महत्व इसलिए जरा अलग है कि इसके साथ ही भीषण जाड़े की विदाई भी हो जाती है। विदाई और स्वागत के ये उत्सव विविध रंगों से भरपूर होते हैं।
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सर्दियों में सुस्त, जड़वत पड़ी प्रकृति जब ठंड की विदाई के साथ नवजीवन से निखर उठती है, तो संसार भर में वसंत का उल्लास छा जाता है। अमूमन हर संस्कृति में वसंत के आगमन को प्रकृति के पुनर्जीवन से जोड़ा जाता आया है। इसके साथ ही जुड़े हैं अनेक रोचक मिथक। मसलन, ग्रीस में कहते हैं कि जब कृषि व वनस्पति की देवी डिमीटर की बेटी परसेफनी को पाताल लोक का राजा हेडीज उठा ले गया, तो डिमीटर ने धरती पर सारी वनस्पति को जड़वत कर दिया। न कहीं कोई फूल खिला, न कोई फल पका। खेत सूख गए, अकाल पड़ गया। तब देवराज ज़्युस, जोकि परसेफनी के पिता भी थे, ने हेडीज को परसेफनी को लौटाने का आदेश दिया। हेडीज इस आदेश को मानने के लिए बाध्य था मगर इससे पहले उसने चालाकी से परसेफनी को अनार के कुछ दाने खाने को दिए, जिन्हें परसेफनी ने खा लिया। चूंकि उसने पाताल लोक का फल खाया था, सो उसके लिए हर साल कुछ समय पाताल लोक में गुजारना अनिवार्य हो गया। इसीलिए प्रति वर्ष जब वह पाताल लोक चली जाती है, तो धरती पर सर्दियां पड़ती हैं और प्रकृति सुप्तावस्था में चली जाती है। परसेफनी के पाताल लोक से लौटने पर वसंत ऋतु आती है और प्रकृति पुनर्जीवन को प्राप्त होती है।
एक दिलचस्प बात यह है कि मिस्र से लेकर चीन तक और फारस से लेकर रोम तक अंडे को पुनर्जीवन या नवजीवन के प्रतीक के रूप में देखा और अपनाया गया। इसके पीछे संभवत: फीनिक्स नामक मिथकीय पक्षी की कथा है। माना जाता है कि इस पक्षी ने ईडन (अदनवाटिका) के वर्जित वृक्ष का फल खाने से इनकार कर दिया था, जबकि आदम-हव्वा ने इस वर्जना को तोड़ा था। इसके चलते फीनिक्स को वरदान प्राप्त हुआ। हर 500 साल बाद वह विशेष जड़ी-बूटियों से अपने लिए घोंसला बनाता है, कुछ देर उसमें विश्राम करता है और फिर खुद को भस्म कर लेता है। जब उसकी आग बुझती है, तो उसकी राख में एक अंडा पाया जाता है, जिसमें से फीनिक्स पुन: प्रकट हो उठता है। कुछ वैसे ही, जैसे प्रकृति वसंत के आगमन के साथ फिर से जी उठती है।

वसंत के आगमन व सर्दियों की विदाई के लिए दुनिया के कोने-कोने में अलग-अलग तरह से उत्सव मनाए जाते हैं। बोस्निया के जेनिका नामक शहर में वसंत का आगमन सामूहिक रूप से अंडे की भुर्जी बनाकर किया जाता है। शहर भर के लोग नदी किनारे इकट्ठा होते हैं और बड़े-बड़े बर्तनों में अंडे की भुर्जी बनाते हैं, जिसे लोगों में बांट दिया जाता है। स्विट्जरलैंड के ज्युरिख में वसंत ऋतु के फूलों का खिलना आरंभ होने के साथ ही जाड़े के प्रतीक स्वरूप बर्फ के पुतले को होली-नुमा लकड़ी के ढेर पर खड़ा कर, धूमधाम से आग के हवाले कर दिया जाता है। कभी-कभी धूम-धड़ाके के लिए पुतले में पटाखे भी भरे जाते हैं। पोलैंड में जाड़ों के प्रतीक रूप में सूखी घास से 'मरजाना" नामक लड़की का पुतला बनाया जाता है। फिर इसे जुलूस के साथ गांव-शहर भर में घुमाकर अंत में या तो आग के हवाले कर दिया जाता है या फिर नदी में बहा दिया जाता है। इसके साथ ही वसंत के आगमन का उत्सव शुरू हो जाता है।

Sunday, 14 January 2018

राजा की बूटी से जन्मता बिच्छू!

तुलसी के पश्चिमी रिश्तेदार को राजा के योग्य बूटी कहा गया। इसे पवित्र भी माना गया लेकिन साथ ही, बिच्छुओं से इसका अनोखा संबंध बताया गया...
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भारतीय संस्कृति में तुलसी का महत्व सर्वविदित है। दिलचस्प बात यह है कि इसी गुणी पौधे का रिश्तेदार, जिसे पश्चिमी जगत बेसिल के नाम से जानता है, भी सांस्कृतिक परंपराओं की समृद्ध विरासत लिए हुए है। इसे पवित्र भी माना गया है, राजसी भी। इसके लिए ग्रीक भाषा में जो शब्द है, उसका शाब्दिक अर्थ है 'राजा के योग्य बूटी"। मगर विरोधाभास यह है कि ग्रीस और रोम में ही प्राचीन काल में माना जाता था कि बेसिल का पौधा तभी पनपेगा, जब इसके बीज बोते समय धरती को खूब अपशब्द कहे जाएं!
एक समय पश्चिमी योरप में बेसिल को इस कदर पवित्र माना जाता था कि इसकी कटाई करने से पहले व्यक्ति को विशेष नियमों का पालन करना पड़ता था। उसे तीन पवित्र जल स्रोतों के पानी में हाथ धोने होते थे, फिर स्वच्छ सफेद सूती कपड़े धारण कर, 'अपवित्र" लोगों के स्पर्श से बचते हुए, बिना धातु के औजार इस्तेमाल किए, कटाई करनी होती थी। क्रीट (ग्रीस का एक द्वीप) में लोग घर की खिड़कियों पर बेसिल लगाते थे। उनका विश्वास था कि इससे घर शैतान के दुष्प्रभाव से बचा रहेगा। इसी प्रकार अलग-अलग समय पर योरप के अलग-अलग भागों में ये धारणाएं भी चल पड़ी थीं कि दुकान के द्वार पर बेसिल लगाने से बिक्री बढ़ जाती है, जेब में इसकी टहनी लेकर चलने से धन प्राप्ति होती है तथा फर्श पर इसके पत्ते बिखेरने से अपशकुन दूर होता है।
रोम के ख्यात प्रकृतिविद प्लिनी को विश्वास था कि बेसिल के बीजों में यौन क्षमता बढ़ाने का गुण होता है। मोलदेविया (आधुनिक रोमानिया का हिस्सा) में ऐसी मान्यता थी कि यदि कोई युवक किसी युवती के दिए बेसिल के पत्ते ग्रहण कर ले, तो उसे उस युवती से प्रेम हो जाता है। योरप में एक समय दुल्हनों की 'पवित्रता" आंकने के लिए बेसिल का उपयोग किया जाता था। दुल्हन को एक बेसिल की टहनी कुछ देर के लिए थामने को दी जाती। अगर वह कुम्हला न जाए, तो माना जाता था कि दुल्हन पाक-साफ है। और कुम्हला जाए, तो समझ लीजिए शादी कैंसल...!
चौदहवीं सदी में इतालवी लेखक जियोवादी बोकाचियो ने अपने एक दुखांत लघु उपन्यास में बेसिल का अनूठा चित्रण किया। इसमें नायिका के भाई उसके प्रेमी की हत्या कर उसे दफना देते हैं। प्रेमी उसके सपने में आकर बताता है कि वह कहां दफन है। तब नायिका रात के अंधेरे में उस स्थान पर जाकर, कब्र खोदकर, प्रेमी के शव से सिर काट लाती है और अपने घर में बेसिल की गमले में उसे छुपा देती है। फिर वह प्रतिदिन अपने आंसुओं से इस पौधे को सींचती है। एक दिन उसके भाइयों को पता चल जाता है और वे उससे वह गमला छीनकर दूर ले जाते हैं। तब नायिका भी प्राण त्याग देती है।

बेसिल को लेकर कुछ धारणाएं तो बिल्कुल ही हैरत में डालने वाली रही हैं। मध्यकाल में एक अंगरेज वैज्ञानिक ने दावा किया था कि अगर बेसिल के पत्तों को किसी नम स्थान पर पत्थर के नीचे दबाकर रखा जाए, तो दो दिन बाद वहां एक बिच्छू जन्म ले लेता है! हद तो तब हो गई, जब लोग इस बात को और आगे ले गए और कहा जाने लगा कि अगर कोई बेसिल के पत्तों को अधिक देर तक सूंघता रहे, तो उसके मस्तिष्क में ही बिच्छू आकार ले लेता है...!