Sunday 14 January 2018

राजा की बूटी से जन्मता बिच्छू!

तुलसी के पश्चिमी रिश्तेदार को राजा के योग्य बूटी कहा गया। इसे पवित्र भी माना गया लेकिन साथ ही, बिच्छुओं से इसका अनोखा संबंध बताया गया...
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भारतीय संस्कृति में तुलसी का महत्व सर्वविदित है। दिलचस्प बात यह है कि इसी गुणी पौधे का रिश्तेदार, जिसे पश्चिमी जगत बेसिल के नाम से जानता है, भी सांस्कृतिक परंपराओं की समृद्ध विरासत लिए हुए है। इसे पवित्र भी माना गया है, राजसी भी। इसके लिए ग्रीक भाषा में जो शब्द है, उसका शाब्दिक अर्थ है 'राजा के योग्य बूटी"। मगर विरोधाभास यह है कि ग्रीस और रोम में ही प्राचीन काल में माना जाता था कि बेसिल का पौधा तभी पनपेगा, जब इसके बीज बोते समय धरती को खूब अपशब्द कहे जाएं!
एक समय पश्चिमी योरप में बेसिल को इस कदर पवित्र माना जाता था कि इसकी कटाई करने से पहले व्यक्ति को विशेष नियमों का पालन करना पड़ता था। उसे तीन पवित्र जल स्रोतों के पानी में हाथ धोने होते थे, फिर स्वच्छ सफेद सूती कपड़े धारण कर, 'अपवित्र" लोगों के स्पर्श से बचते हुए, बिना धातु के औजार इस्तेमाल किए, कटाई करनी होती थी। क्रीट (ग्रीस का एक द्वीप) में लोग घर की खिड़कियों पर बेसिल लगाते थे। उनका विश्वास था कि इससे घर शैतान के दुष्प्रभाव से बचा रहेगा। इसी प्रकार अलग-अलग समय पर योरप के अलग-अलग भागों में ये धारणाएं भी चल पड़ी थीं कि दुकान के द्वार पर बेसिल लगाने से बिक्री बढ़ जाती है, जेब में इसकी टहनी लेकर चलने से धन प्राप्ति होती है तथा फर्श पर इसके पत्ते बिखेरने से अपशकुन दूर होता है।
रोम के ख्यात प्रकृतिविद प्लिनी को विश्वास था कि बेसिल के बीजों में यौन क्षमता बढ़ाने का गुण होता है। मोलदेविया (आधुनिक रोमानिया का हिस्सा) में ऐसी मान्यता थी कि यदि कोई युवक किसी युवती के दिए बेसिल के पत्ते ग्रहण कर ले, तो उसे उस युवती से प्रेम हो जाता है। योरप में एक समय दुल्हनों की 'पवित्रता" आंकने के लिए बेसिल का उपयोग किया जाता था। दुल्हन को एक बेसिल की टहनी कुछ देर के लिए थामने को दी जाती। अगर वह कुम्हला न जाए, तो माना जाता था कि दुल्हन पाक-साफ है। और कुम्हला जाए, तो समझ लीजिए शादी कैंसल...!
चौदहवीं सदी में इतालवी लेखक जियोवादी बोकाचियो ने अपने एक दुखांत लघु उपन्यास में बेसिल का अनूठा चित्रण किया। इसमें नायिका के भाई उसके प्रेमी की हत्या कर उसे दफना देते हैं। प्रेमी उसके सपने में आकर बताता है कि वह कहां दफन है। तब नायिका रात के अंधेरे में उस स्थान पर जाकर, कब्र खोदकर, प्रेमी के शव से सिर काट लाती है और अपने घर में बेसिल की गमले में उसे छुपा देती है। फिर वह प्रतिदिन अपने आंसुओं से इस पौधे को सींचती है। एक दिन उसके भाइयों को पता चल जाता है और वे उससे वह गमला छीनकर दूर ले जाते हैं। तब नायिका भी प्राण त्याग देती है।

बेसिल को लेकर कुछ धारणाएं तो बिल्कुल ही हैरत में डालने वाली रही हैं। मध्यकाल में एक अंगरेज वैज्ञानिक ने दावा किया था कि अगर बेसिल के पत्तों को किसी नम स्थान पर पत्थर के नीचे दबाकर रखा जाए, तो दो दिन बाद वहां एक बिच्छू जन्म ले लेता है! हद तो तब हो गई, जब लोग इस बात को और आगे ले गए और कहा जाने लगा कि अगर कोई बेसिल के पत्तों को अधिक देर तक सूंघता रहे, तो उसके मस्तिष्क में ही बिच्छू आकार ले लेता है...!

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