Sunday 11 March 2018

'जन्म वृक्ष", जो बनता है विवाह का साक्षी


बच्चे के जन्म पर उसके नाम का पौधा रोपने से लेकर वैवाहिक जीवन का आरंभ पौधा रोपकर करने तक अनेक परंपराएं चली आई हैं। मृत्यु के बाद यही पेड़ हमारी स्मृति को जीवित बनाए रखते हैं।
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क्या आप वृक्षों के बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना कर सकते हैं? नहीं ना? ये हमारे अस्तित्व मात्र में इस कदर रच-बस गए हैं कि हमारी कई परंपराओं में भी ये शामिल हैं। इसराइल में प्राचीन काल से एक परंपरा चली आ रही है। जब भी घर में बच्चे का जन्म होता है, तो उसके नाम का एक पौधा रोपा जाता है। इसे बर्थ ट्री या जन्म वृक्ष भी कहा जाता है। आम तौर पर लड़का होने पर देवदार और लड़की होने पर सरू वृक्ष लगाया जाता है। ये पौधे भी बच्चे के साथ-साथ बड़े होते हैं। बड़े होने पर बच्चे खुद 'अपने" पेड़ की देखभाल करते हैं। जब शादी होती है, तब दूल्हे व दुल्हन दोनों ही के जन्म वृक्ष की टहनियों से विवाह मंडप सजाया जाता है। इस प्रकार जन्म से लेकर विवाह तक यह पेड़ मनुष्य का साथी बनता है। कहने की जरूरत नहीं कि जब इंसान इस दुनिया से विदा हो जाता है, तब भी उसका यह वृक्ष उसकी याद को जीवित रखता है।
जन्म वृक्ष की परंपरा जमैका में भी प्रचलित रही है। इसमें बच्चे का जन्म होने पर उसकी गर्भनाल जमीन में गाड़ दी जाती है और उस स्थान पर एक पौधा रोप दिया जाता है। यह पौधा बच्चे का उसकी मिट्टी से अटूट संबंध स्थापित करता है। कुछ हद तक इससे मिलता-जुलता रिवाज चीन के पश्चिमी भाग में भी रहा है, हालांकि इसके अंत में एक 'टि्वस्ट" है। इसके अनुसार, बेटी का जन्म होने पर एक खास प्रजाति का पौधा लगाया जाता है, जिसे बोलचाल की भाषा में महारानी वृक्ष या राजकुमारी वृक्ष कहा जाता है। यह पेड़ करीब-करीब उसी गति से बढ़ता है, जिस गति से मानव शिशु बढ़ता है। जब बच्ची युवा हो जाती है, तो यह पेड़ भी अपना पूरा आकार पाकर परिपक्व हो जाता है। फिर, जब लड़की की शादी तय होती है, तो इस पेड़ को काट दिया जाता है! इसी की लकड़ी से लड़की के दहेज के लिए सामान तैयार किया जाता है!
अनेक संस्कृतियों में विवाह के अवसर पर दूल्हा-दुल्हन द्वारा पौधा रोपने का भी रिवाज है। यह वर-वधु द्वारा एक नया जीवन शुरू करने का प्रतीक भी है। अब उन्हें ही इस वैवाहिक जीवन रूपी पौधे को सींचकर बढ़ाना है। जैसे-जैसे नव-विवाहितों का प्रेम गाढ़ा होता जाता है, वैसे-वैसे इस पौधे की जड़ें गहरी होती जाती हैं। चेक गणराज्य के मोराविया प्रांत में विवाह के अवसर पर दुल्हन की सखियां उसके आंगन में एक पौधा लगाती हैं व उसे रंग-बिरंगी रिबिन और रंग से सजे अंडे के छिलकों से सजाती हैं। ऐसा माना जाता है कि दुल्हन को इस पौधे की (लंबी) उम्र लग जाती है और जब तक पौधा फलता-फूलता रहेगा, दुल्हन अपने नए घर में खुशहाल रहेगी।
पारसी विवाह में भी शादी से चार दिन पहले होने वाली एक रस्म में वर-वधु दोनों के घर की दहलीज पर एक गमले में उर्वरता के प्रतीक के तौर पर आम का पौधा विधि-विधानपूर्वक रोपा जाता है। शादी के बाद आठवें दिन तक यह पौधा यहीं रहता है व इसे रोज पानी दिया जाता है। इसके बाद इसे अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया जाता है। यह कामना की जाती है कि जिस प्रकार यह पौधा बड़ा व मजबूत होगा तथा मीठे फल देगा, उसी प्रकार नव-दंपति का प्रेम भी बढ़े, मजबूत हो व फले-फूले।
जन्म और विवाह ही नहीं, व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी उसकी स्मृति में पौधा रोपने की परंपरा कई स्थानों पर रहती आई है। किसी प्रियजन की याद में जीता-जागता पौधा रोपकर उसकी स्मृति को जीवित रखा जाता है। जीवन के हर पड़ाव पर साथ देने के बाद पेड़ मृत्यु में भी हमें नया जीवन दे जाते हैं।

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