Sunday 8 April 2018

कौतूहल जगाता 'अदृश्य" का दर्शन


कोई हमारे सामने होते हुए भी दिखाई न दे, इससे ज्यादा रोमांचक क्या हो सकता है? इस रोमांच ने जनश्रुतियों में भी खूब जगह पाई है।
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अदृश्यता की अवधारणा अपने आप में बड़ी रोमांचक है। कोई जीता-जागता शख्स हमारे बीच है, हमारी ही तरह उठ-बैठ रहा है, खा-पी रहा है, यहां तक कि हंस-बोल भी रहा है मगर नजर नहीं आ रहा...! यह खयाल मात्र कौतूहल उत्पन्ना कर देता है। किसी का अस्तित्व हम उसके दिखने से ही पहचानते हैं। इसलिए जब कोई होते हुए भी दिखाई न दे, तो यह आला दर्जे के अजूबे से कम नहीं होता। मजेदार बात यह है कि अदृश्यता के इस रोमांच में लगभग पूरी मानवता शामिल रही है। विश्व के हर कोने में इससे जुड़ी कोई किंवदंति, कोई मान्यता, कोई पौराणिक कथा मिल जाती है।
अदृश्यता का रोमांच इसलिए भी है क्योंकि प्रकट-अप्रकट तौर पर यह माना जाता है कि मृत्यु के बाद मनुष्य एक किस्म की अदृश्यता को प्राप्त हो जाता है। यानी मृत्यु के बाद भी उसका अस्तित्व समाप्त नहीं माना जाता, बल्कि कहा जाता है कि वह अब भी है बस नजर नहीं आ रहा। भूत-प्रेतों की अवधारणा में भी उनके अदृश्य होने का विश्वास आम है।
ग्रीक पौराणिक कथाओं में पाताल लोक के देवता हेडीज के पास एक तिलस्मी शिरस्त्राण (लोहे का टोप) होने का उल्लेख आता है। यह सिर्फ युद्ध में सिर की हिफाजत करने तक सीमित नहीं था। इसे धारण करने पर पहनने वाला अदृश्य हो जाता था। अनेक जनश्रुतियों में ऐसी वस्तुओं का जिक्र आता है, जिन्हें धारण करने वाला नजर से ओझल हो जाता है। कभी कोई लबादा, तो कभी जूते या फिर कोई तावीज आदि। यूं देवी-देवताओं में अपनी इच्छानुसार अदृश्य होने व फिर प्रकट हो जाने का शक्ति का उल्लेख तो तमाम प्राचीन संस्कृतियों में आता ही है। इसलिए किसी मनुष्य में यह शक्ति होना उसे दिव्यता से लैस करता है। जादूगरों द्वारा 'गायब" होने का करतब दिखाना न जाने कब से चला आया है और देखने वाला यह जानते हुए भी हैरत में पड़ जाता है कि यह नजर का धोखा मात्र है।
अमेरिकी जनजातियों में अदृश्यता को लेकर एक रोचक जनश्रुति चली आई है। एक झील के किनारे एक शिकारी अपनी बहन के साथ रहता था। वह कुशल शिकारी तो था ही, उसकी एक और खासियत यह थी कि वह अपनी बहन के अलावा किसी को नजर नहीं आता था। कहा जाता था कि जो भी विवाह योग्य युवती इस अदृश्य शिकारी को देख पाएगी, वही उसकी दुल्हन बनेगी। आसपास के गांवों की युवतियां बारी-बारी से अपनी किस्मत आजमाने झील के किनारे जातीं। वहां शिकारी की बहन उनसे पूछती, 'वह आ रहा है मेरा भाई! तुम्हें दिख रहा है?" यदि युवती हां में जवाब देती, तो वह कहती, 'बताओ उसके कंधे पर पट्टा कौन-सा है?" अब विवाहाकांक्षी युवती का झूठ पकड़ा जाता और उसे वहां से रवाना कर दिया जाता। पास ही के गांव में दो बहनें अपने पिता के साथ रहती थीं। पिता दिन भर शिकार करने घर से बाहर रहते और बड़ी बहन छोटी पर जुल्म करती। उसे पीटती, यहां तक कि उसे जलती लकड़ी से दागती। इससे छोटी बहन के चेहरे व बदन पर जगह-जगह जले के निशान पड़ गए थे। पिता के पूछने पर बड़ी बहन यही कहती कि छोटी अपनी ही लापरवाही से खुद को चोट लगाती रहती है।
खैर, एक दिन बड़ी बहन ने झील का रुख किया ताकि अदृश्य शिकारी से ब्याह कर सके। मगर अन्य युवतियों की तरह विफल रही और झूठ बोलने पर शिकारी की बहन की झिड़की सुनकर मुंह लटकाए लौट आई। दूसरे दिन छोटी बहन ने कहा कि वह भी अपनी किस्मत आजमाकर देखेगी। इस पर बड़ी हंस दी कि जहां मैं नाकाम हुई, वहां तुम भला क्या कामयाब हो जाओगी! गांव के लोग भी हंसने लगे कि उस जैसी बदसूरत लड़की को अगर शिकारी दिख भी गया तो वह उससे ब्याह नहीं करेगा। मगर सबको हैरत में डालते हुए छोटी वास्तव में शिकारी को देखने में कामयाब रही। शिकारी ने उससे कहा, 'बरसों से मैं ऐसी लड़की की प्रतीक्षा कर रहा था, जिसका हृदय पूर्ण रूप से निर्मल हो। तुम्हीं हो वह..."

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