Sunday 28 October 2018

क्यों लंबी हुई शुतुरमुर्ग की गर्दन?


शुतुरमुर्ग ने भले ही कभी उड़ान न भरी हो, मगर उसके आकार व अन्य विचित्रताओं ने मनुष्य की कल्पनाओं से खूब उड़ानें भरवाई हैं। इसे लेकर व्याप्त धारणाएं व किस्से बड़े रोचक हैं।
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कुछ मिथक इस कदर जनमानस में पैठ कर जाते हैं कि हम इन्हें निर्विवाद तथ्य मान लेते हैं। ऐसा ही एक मिथक शुतुरमुर्ग से जुड़ा है। वह यह कि किसी खतरे या अप्रिय स्थिति को देखकर शुतुरमुर्ग अपना सिर जमीन में गाड़ देता है। वह सोचता है कि इससे आसन्ना खतरा या अप्रिय स्थिति टल जाएगी। इसी के चलते, कड़वी हकीकत से मुंह फेरने वाले व्यक्ति को शुतुरमुर्ग प्रवृत्ति का कहा जाता है। जबकि तथ्य यह है कि शुतुरमुर्ग ऐसा कुछ करता ही नहीं। दरअसल, मादा शुतुरमुर्ग अपने अंडे घोंसले में देने के बजाए जमीन में बनाए गए गड्ढों में देती है। वह दिन में कई बार इन अंडों को उलटती-पलटती है। इस दौरान, देखने वाले को भ्रम हो सकता है कि वह अपना सिर जमीन में गाड़ रही है। वैसे भी, शुतुरमुर्ग का सिर काफी छोटा होता है, सो यदि वह सिर झुकाए खड़ा हो, तो यह भ्रम होना मुश्किल नहीं है कि उसका सिर जमीन के अंदर है।
शुतुरमुर्ग की खासियत यह है कि यह सबसे बड़ा जीवित पक्षी है और उड़ने से लाचार है। इस कारण अफ्रीकी मूल का होते हुए भी यह दुनिया भर में प्रसिद्ध है। साथ ही कई तरह के मिथकों और असत्य धारणाओं का विषय भी। कहते हैं कि प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक अरस्तू ने शुतुरमुर्ग के विशाल आकार को देखते हुए इसे पक्षी मानने से ही इनकार कर दिया था। उनका मानना था कि यह आधा पक्षी व आधा पशु है! मध्य-पूर्व की प्राचीन संस्कृति में लोग इसे दुष्ट प्राणी मानते थे। वे इसका संबंध सृष्टि से पहले व्याप्त रहे अंधकार व अस्त-व्यस्तता की देवी तियामत से जोड़ते थे। वहीं प्राचीन मिस्र में इसका खासा धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व था। इसका संबंध सत्य व न्याय की देवी मात से जोड़ा जाता था। इसीलिए इसके पंख को भी सत्य का प्रतीक माना गया। बाद के दौर में शुतुरमुर्ग के पंख कई संस्कृतियों में श्रेष्ठि वर्ग के श्र्ाृंगार का हिस्सा बने।
शुतुरमुर्ग की लंबी गर्दन को लेकर अफ्रीका में एक मजेदार लोककथा चली आई है। इसके अनुसार, बहुत पहले शुतुरमुर्ग की गर्दन छोटी हुआ करती थी। एक बार नर शुतुरमुर्ग ने अंडे सेने में मादा का हाथ बंटाने का प्रस्ताव रखा। तय हुआ कि दिन में मादा यह जिम्मेदारी निभाएगी और रात में नर। मगर एक रात अचानक अपनी पत्नी की खिलखिलाहट भरी हंसी सुनकर शुतुरमुर्ग के कान खड़े हो गए। उसने सिर उठाकर देखा तो पाया कि उसकी पत्नी एक अन्य सजीले नर शुतुरमुर्ग के साथ चांदनी रात में, दीमक के टीलों के बीच लुका-छिपी खेल रही है! जाहिर है, इस बेवफाई पर उसका पारा चढ़ गया मगर वह अंडों को छोड़कर नहीं जा सकता था। सो वहीं बैठा-बैठा, अपनी गर्दन लंबी कर-करके देखने की कोशिश करता रहा कि दीमक के टीलों के बीच क्या चल रहा है। सारी रात यूं ही बीत गई। सुबह जब बेवफा मादा अंडों के पास लौटी, तो गुस्से में आग-बबूला हो रहा शुतुरमुर्ग उठ खड़ा हुआ। अचानक उसे अपनी गर्दन में कुछ अजीब-सा लगा। जब उसने अपने पैरों की ओर देखा, तो पाया कि वे उसके सिर से बहुत दूर हो गए हैं। तब उसे समझ में आया कि रात भर गर्दन तानकर पत्नी की हरकतों पर नजर रखने के चलते उसकी गर्दन इतनी लंबी हो गई है। बस, तभी से शुतुरमुर्गों की गर्दन लंबी रहने लगी।

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