हंसते तो
हम सब हैं लेकिन एक समुदाय शिशु की पहली-पहली
हंसी का उत्सव भी मनाता है। हंसी के देवता का मंदिर भी बना है और हंसने की
पार्टियां भी हुई हैं। यहां तक कि हंसी मृत्यु का कारण भी बनी है।
***
दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका के नैवहो आदिवासी समुदाय
में शिशु के जन्म के बाद उसकी पहली हंसी का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। शिशु
के करीब तीन महीने का होते ही मित्र-रिश्तेदार
माता-पिता से पूछने लगते हैं, 'बच्चा हंसा कि नहीं?" दरअसल, इस समुदाय में ऐसी मान्यता है कि जन्म लेने पर मानव शिशु आत्मिक
लोक व भौतिक लोक दोनों में मौजूद होता है। उसकी पहली हंसी इस बात का संकेत मानी
जाती है कि अब वह आत्मिक लोक को छोड़कर पूरी तरह भौतिक लोक का होकर रहना चाहता है।
जाहिर है, यह परिवार के लिए एक बड़ा अवसर होता
है, जिसका जश्न मनाना अपरिहार्य हो जाता
है। परंपरा यह है कि जो भी व्यक्ति शिशु को पहली बार हंसाए, उसे तमाम रिश्तेदारों व मित्रों को दावत
देनी होती है। वैसे इस दावत का आधिकारिक मेजबान शिशु को ही माना जाता है। दावत में
आने वाले प्रत्येक मेहमान को नमक,
मिठाई और कोई उपहार
दिया जाता है। माता-पिता शिशु का हाथ पकड़कर औपचारिक रूप
से उसी के हाथों सबको ये वस्तुएं भेंट करते हैं।
नैवहो
समुदाय की इस दिलचस्प परंपरा के पीछे कारण शायद यह रहा है कि पुरातन काल में शिशु
मृत्यु दर बहुत ऊंची होने के चलते जन्म लेने वाला शिशु कितने दिन का मेहमान है, इसे लेकर सदा संशय रहता था। इसलिए कहा जाता
था कि बच्चा अभी आत्मिक व भौतिक दोनों लोकों में है। शिशु यदि तीन-एक महीने निकाल ले और हंसना शुरू कर दे, तो यह इस बात का संकेत है कि असमय मृत्यु का
खतरा टल गया है और बच्चा स्वस्थ है। ऐसे में जश्न मनाना तो बनता है। बच्चा जिएगा
या नहीं, यह संशय दूर होते ही मान लिया जाता
है कि अब वह पूरी तरह भौतिक लोक में है। एक अन्य स्तर पर हम इस परंपरा की व्याख्या
इस प्रकार भी कर सकते हैं कि पहली बार हंसने पर ही कोई पूरी तरह मनुष्य बनता है।
ऐसा भी
नहीं है कि हंसी पर मानव का ही एकाधिकार माना गया हो। ग्रीक देवताओं की लंबी सूची
में एक गैलॉस भी थे,
जिन्हें हंसी का देवता
माना गया। प्राचीन ग्रीक शहर स्पार्टा में गैलॉस को समर्पित मंदिर भी था। ग्रीस
में हंसने-हंसाने को विशेष महत्व दिया जाता
था। बताया जाता है कि सिकंदर के पिता सम्राट फिलिप ने बाकायदा चुटकुले लिखने के
लिए लोग नियुक्त कर रखे थे!
अठारहवीं
सदी के अंत में नाइट्रस ऑक्साइड के चिकित्सकीय गुणों की खोज के दौरान पता चला कि
इसे खास मात्रा में ग्रहण करने पर व्यक्ति को हंसी के फव्वारे छूटने लगते हैं।
इसलिए इसे लाफिंग गैस का नाम भी दिया गया। इस गुण की खोज करने वाले हंफ्री डेवी ने
पहले तो खुद पर ही प्रयोग किए,
फिर अपने मित्रों को
आमंत्रित कर उन पर प्रयोग करने लगे। वे मित्रों को मुंह के जरिए नाइट्रस ऑक्साइड
देते और उनसे कहते कि बताओ,
तुम्हें कैसा अनुभव
होता है। इन प्रयोगों को लाफिंग गैस पार्टियों के नाम से भी जाना गया। लोग गैस के
प्रभाव से बेकाबू हंसी की गिरफ्त में आ जाते और बाद में अपने-अपने तरीके से बताते कि उन्हें उस दौरान
कैसा अनुभव हुआ।
यह समझने
की गलती न करें कि हंसी कोई हंसने का विषय मात्र है। हंसी मारक भी हो सकती है। एक
किंवदंति है कि कैलकस नामक भविष्यदृष्टा के बारे में एक अन्य भविष्यदृष्टा ने कहा
था कि वे अपने द्वारा रोपे गए पौधों के अंगूरों से बनी मदिरा का सेवन करने से पहले
ही स्वर्ग सिधार जाएंगे। कैलकस के रोपे हुए पौधे बड़े हुए, उन पर अंगूर आए, अंगूरों
से मदिरा बनाई गई। कैलकस इसका सेवन करने ही वाले थे कि उन्हें यह सोचकर हंसी आ गई
कि उनके प्रतिद्वंद्वी की भविष्यवाणी गलत सिद्ध हो गई। कहते हैं कि वे इस कदर जोर-जोर से हंसे कि मदिरा का पहला घूंट लेने से
पहले ही हंसते-हंसते मृत्यु के आगोश में चले गए...!
No comments:
Post a Comment