Sunday 27 November 2016

बया के घोंसले में बटेर मेहमान

बायस्कोप:
पंछियों में घोंसला बनाने की सहज वृत्ति होती है मगर संसार के पहले पंछी ने पहला घोंसला भला कैसे बनाया होगा? उसके पास इसके लिए सहज-वृत्ति कहां से आई होगी?
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क्या आप मकान बना सकते हैं? बिना इंजीनियरिंग सीखे, बिना किसी प्रशिक्षण के? नहीं न? मगर पंछी तो ऐसा कर लेते हैं! विभिन्ना प्रजातियों के पक्षी अपनी-अपनी तरह के घोंसले बनाते हैं और मजेदार बात यह है कि वक्त आने पर हर पंछी ठीक अपनी प्रजाति की 'परंपरा" के अनुरूप घोंसला बना डालता है। बिना कहीं से 'घोंसला निर्माण कला" सीखे, बिना विज्ञान की कोई डिग्री लिए! अब आप इसे सहज-वृत्ति कह लें या कुछ और मगर है यह प्रकृति का करिश्मा ही। प्रकृति के ये करिश्मे कला और विज्ञान की लाजवाब मिसाल होते हैं। एक सवाल मन मंे आता है कि संसार के पहले पंछी ने पहला घोंसला भला कैसे बनाया होगा! उसके पास इसके लिए सहज-वृत्ति कहां से आई होगी? इस सवाल का जवाब शायद ही कभी मिल पाए। खैर, तथ्यात्मक जानकारी की कमी की पूर्ति हमारी कल्पनाएं बखूबी कर लेती हैं। पक्षियों के घोंसलों के निर्माण, उनकी विशेषताओं, उनसे जुड़े शुभ-अशुभ आदि को लेकर मनुष्य ने खूब चिंतन किया है और इस चिंतन, इन कल्पनाओं के निष्कर्ष बड़े दिलचस्प रहे हैं।
एक इंडोनेशियाई लोकथा में बया और बटेर तथा उनके घोंसलों के बहाने यह बताया गया है कि जो एक के लिए अच्छा है, जरूरी नहीं कि वह दूसरे के लिए भी भला हो। बया और बटेर में इस बात को लेकर बहस हो गई कि किसका घोंसला बेहतर है। दोनों अपने-अपने घोंसले को दूसरे से अच्छा बताने लगीं। तय हुआ कि दोनों बारी-बारी से एक-दूसरे के घर में मेहमान बनेंगी और देखेंगी कि दूसरे का घोंसला कैसा है। पहली रात बटेर बया की मेहमान बनी। बया तो फुर्र से उड़कर पेड़ पर बने अपने घोंसले में पहुंच गई लेकिन बटेर को पेड़ चढ़कर वहां तक पहुंचने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। रात को तेज तूफान के साथ बारिश होने लगी। पेड़ की डालियां हवा में इस कदर लहराने लगीं, कि बटेर बुरी तरह डर गई। उसे लगा कि घोंसला अब गिरा कि तब गिरा। मगर बया चैन से सोती रही। दूसरी रात बया बटेर की मेहमान बनी। बटेर ने उसे गर्व से बताया कि मेरा घर तो जमीन पर गिरे एक पेड़ के अंदर है, वहां आंधी-तूफान का कोई डर नहीं। बया को ऐसे घर में सोना अटपटा लगा। रात को तेज बारिश होने लगी। पानी बढ़ते-बढ़ते घोंसले तक आने लगा। बया घबरा गई और बोली कि मैं भीग गई, तो क्या होगा। बटेर ने कहा, कोई बात नहीं, भीगोगी तो सूख भी जाओगी। उस रात बया सो नहीं पाई। अगली सुबह दोनों ने एक-दूसरे के घोंसले की बुराई की मगर फिर उन्हें एहसास हुआ कि वे दोनों अलग हैं, इसलिए उनकी जरूरतें और उनके घोंसले भी अलग हैं। ऐसे में यह बात बेमानी है कि किसका घोंसला बेहतर है।
योरप में एक बड़ी ही मजेदार धारणा चली आई है। वह यह कि अगर आपके सिर से झड़े बालों को कोई पक्षी ले जाए और उनका उपयोग अपना घोंसला बनाने में करे, तो आपके सिर में तब तक दर्द होता रहेगा, जब तक कि आप उस घोंसले को नष्ट न कर दें। वैसे आम तौर पर पक्षियों के घोंसलों को नुकसान पहुंचाना अच्छा नहीं ही माना जाता। प्राचीन मिस्र में कौए का बड़ा मान था और उससे जुड़ी गतिविधियों के आधार पर भविष्यवाणियां तक की जाती थीं। एक मान्यता यह थी कि अगर कहीं कौए का घोंसला नष्ट हो जाए, तो तीन दिन के भीतर उस जगह के आसपास आगजनी की घटना हो सकती है।
गौरैयाएं हमारे यहां कम होती चली गई हैं मगर पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह धारणा चली आई है कि घर में गौरैया का घोंसला बनाना शुभ होता है। इससे भले ही थोड़ी परेशानी हो, फिर भी गृहस्वामी घोंसला हटाता नहीं। इसी प्रकार पश्चिम में ब्लैकबर्ड को यूं तो अशकुनी माना जाता है लेकिन यदि वह आपके घर में घोंसला बना ले, तो इसे शुभ कहा जाता है। ब्लूबर्ड भी यदि आपके द्वार के पास घोंसला बनाए, तो शुभ माना जाता है लेकिन यदि वह अगले साल फिर उसी स्थान पर घोंसला बनाने न आए, तो यह अशुभ कहा जाता है! ऐसी भी मान्यता है कि घर में अबाबील द्वारा घोंसला बनाया जाए, तो उस घर में रहने वालों को हर काम में सफलता और भरपूर खुशहाली मिलती है।

अनेक देशों में धनेश पक्षी का घर की छत पर घोंसला बनाना शुभ समझा जाता है। खास तौर से स्वीडन में, जहां धनेश को पवित्र माना गया है। कारण यह कि जब ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था, जब एक धनेश ने जोर-जोर से पुकारकर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी। वहीं जर्मनी में कहा जाता है कि यदि आपके क्रिसमस ट्री में घोंसला बना हो, तो आपके परिवार को धन, अच्छे स्वास्थ्य तथा भरपूर खुशियों की प्राप्ति होगी।

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