Saturday 11 February 2017

"मेरे देश का कपड़ा...!"

कोई छः-सात साल का वह बालक शायद अपने पापा की बाइक को साफ करने का शौक पूरा करने एक हाथ में पानी स्प्रे करने वाली बोतल और दूसरे में कपड़ा लेकर बाहर निकला। मगर बाहर अपनी ही लगभग हमउम्र दोस्तों को देख उनके साथ खेलने लगा। खेल-खेल में शरारत सूझी और वह दोनों लड़कियों पर पानी स्प्रे करने लगा। लडकियां इधर-उधर भागने लगीं, वह पानी छिड़कता गया। बड़ी वाली लड़की डांटने लगी, "इतनी ठंड है और तू पानी डाल रहा है!" बालक को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह दूसरे हाथ में थामे कपड़े से अपनी दोस्त के चेहरे पर लगा पानी पोछने लगा। मगर इस पर वह और भड़क गई। "तूने मेरे मुंह पर ये गन्दा कपड़ा लगाया!" बालक तपाक से बोल पड़ा, "ए भाई, ये कपड़ा गन्दा नईं है, हो!" मगर उसकी सफाईपसंद दोस्त संतुष्ट नहीं हुई और उसे चपत-पर-चपत मारने लगी और दोहराती रही, "तूने मुंह पर गंदा कपड़ा लगाया...।" थोड़ी और मार खा लेने के बाद बालक अचानक अपने कंधे चौड़े करके बोल पड़ा, "तो क्या? ये मेरे देश का कपड़ा है!"
अभी जीवन का एक दशक पूरा करने से दूर वह मासूम न जाने कैसे सीख चुका है कि अपनी गलत करतूतों पर पर्दा डालने की लिए देश (और देशभक्ति) की आड़ लेना मुफ़ीद रहता है...।
...(अपने ड्रॉइंग रूम की खिड़की से देखी सत्य घटना)।

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