Sunday 5 March 2017

मुस्कान के तोहफे लाते पंछी

इस दुनिया को जो चीजें रहने लायक और हंसी-खुशी रहने लायक बनाती हैं, उनमें कुछ भोले-से, कुछ खब्ती-से, कुछ नटखट तो कुछ सयाने ये पंछी भी शामिल हैं।

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आप कहीं बैठे हों और अचानक कोई नन्ही-सी चिड़िया फुर्र से उड़कर या हौले-हौले फुदकते हुए आपके पास आ जाए, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी? मन पुलकित हो उठेगा। चेहरे पर बरबस मुस्कान खिल उठेगी। कुछ पलों के लिए ही सही, चिंताएं मानो गायब हो जाएंगी...। अब ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के कुछ शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग चहचहाते पंछियों के बीच रहते हैं, उनके अवसाद, तनाव व व्यग्रता से ग्रस्त होने की संभावना घट जाती है। दूसरे शब्दों में, प्रकृति और खास तौर पर पक्षियों का सान्निाध्य हमारे मानसिक कुशलक्षेम पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
देखा जाए, तो यह कोई बहुत अनोखी बात नहीं है। मनुष्य और पक्षियों के मध्य एक अनूठा रिश्ता सदा से रहता आया है। इस रिश्ते में नैसर्गिक वात्सल्य का भी पुट है और पारस्परिक सहयोग व आदान-प्रदान का भी। इस दुनिया को जो चीजें रहने लायक और हंसी-खुशी रहने लायक बनाती हैं, उनमें कुछ भोले-से, कुछ खब्ती-से, कुछ नटखट तो कुछ सयाने ये पंछी भी शामिल हैं।
वापस ब्रिटिश-ऑस्ट्रेलियाई शोध पर लौटें, तो पक्षियों के हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव की अनेक मिसालें सामने आती रही हैं। मसलन, अमेरिका में 1970 के दशक में सारस की एक प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई थी। उसके संरक्षण के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास चल रहे थे। संरक्षणकर्ता चाहते थे कि ये सारस मनुष्यों से जितना दूर रह सकें, दूर ही रहें क्योंकि मनुष्य इन्हें नुकसान पहुंचाते हैं और यदि ये मनुष्यों के सान्निाध्य के आदी हो गए, तो अनजाने में अपनी व अपनी प्रजाति की मौत को बुलावा देंगे। उधर क्लैरिस नामक महिला अपने आंगन में पक्षियों के लिए खूब दाना डालकर रखा करती थी। सारसों के एक समूह की नजर यहां पड़ी और वे नियमित रूप से क्लैरिस के आंगन में आने लगे। देखते ही देखते उन्होंने इस आंगन को मानो अपना घर ही बना लिया। मगर संरक्षणकर्ता तो इन्हें मनुष्यों से दूर रखना चाहते थे। सो उन्होंने क्लैरिस से आग्रह किया कि वे अपने आंगन में दाना डालना बंद कर दें। मगर क्लैरिस ने साफ इनकार कर दिया। कारण यह कि उनके पति अलजाइमर रोग से पीड़ित थे। वे अपने में सिमटे, गुमसुम रहते थे मगर जैसे ही आंगन में ये खूबसूरत सारस दिखाई देते, उनके चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती। खुशी मानो कुछ पलों के लिए उनके जीवन में लौट आती। जो काम कोई दवा न कर पाई थी, वह इन पंछियों ने कर दिखाया था...
अफ्रीका के तंजानिया व मोजांबिक में 'हनीगाइड" नामक पक्षी पाए जाते हैं। इनका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि ये वाकई गाइड की तरह मुनष्यों को मधुमक्खियों के छत्तों तक ले जाते हैं। शहद निकालने वालों और इन वन्य पक्षियों के बीच एक बिल्कुल अनूठा संबंध पनप गया है। जंगलों के ऊंचे पेड़ों पर या पहाड़ियों में बने छत्ते, जो इंसान को नजर नहीं आ पाते, उन्हें ये पक्षी खोज निकालते हैं। फिर शहद निकालने वालों के पास जाकर एक खास तरह की ध्वनि निकालते हैं और यहां से वहां छोटी-छोटी उड़ान भरकर उस दिशा को इंगित करते हैं, जहां चलना है। उनके इंसानी मित्र उनके दिखाए रास्ते पर चल पड़ते हैं। छत्ते तक पहुंच जाने पर मनुष्य अपने 'हुनर" से धुआं वगैरह करके मधुमक्खियों को भगा देते हैं व शहद निकाल देते हैं। अब छत्ते में बचा मोम हनीबर्ड्स की दावत बनता है। दरअसल इसी दावत की प्राप्ति के लिए इन्होंने शहद निकालने वाले मनुष्यों के साथ यह रिश्ता बनाया है। मधुमक्खियों के हमले के डर से ये सीधे छत्तों तक नहीं पहुंच सकते, सो इंसानी मदद लेते हैं और बदले में इंसानों का भी भला करते हैं!

कुछ समय पहले गेबी नामक बच्ची के बारे में पढ़ा था, जिसकी इधर-उधर खाना गिराने की आदत ने उसे मोहल्ले के कौओं की दोस्त बना दिया। कौए रोज उसके आने-जाने का इंतजार करने लगे। फिर गेबी व उसकी मां बाकायदा कौओं के लिए आंगन में खाना डालने लगीं। अब एक अजीब-सी बात देखने में आई। कौए जब खाना चट कर लौट जाते, तो अपने पीछे गेबी के लिए लाए कुछ 'तोहफे" छोड़ जाते, जैसे कान की बाली, स्क्रू, शीशे का टुकड़ा आदि। मानो वे अपनी इस नन्ही अन्नापूर्णा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर रहे हों! सच तो यह है कि पंछी हमारे लिए इन छोटे-छोटे भौतिक उपहारों से कहीं बढ़कर तोहफे लेकर आते हैं...

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