Sunday 13 May 2018

ककड़ी से रोग दूर और पिशाच प्रसन्न्!


शीतलता भरी ककड़ी किस्से-कहानियों व अनूठे विश्वासों का भी भंडार है। फिर बात चाहे रोगों से मुक्ति पाने की हो या नन्हे पिशाचों को खुश करने की...
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गर्मियों के दिन हों और खीरा-ककड़ी का लुत्फ न लिया जाए, यह संभव नहीं। मगर क्या आप जानते हैं कि ककड़ी शीतलता व तरावट देने के साथ-साथ रोचक आस्थाओं व दंतकथाओं के रस से भी भरपूर है? मसलन, इसके औषधीय गुणों से तो सभी अवगत हैं मगर जापान में इसकी मदद से तमाम व्याधियों से छुटकारा पाने का विशेष उपक्रम किया जाता है। कुछ खास मंदिरों में साल के एक तयशुदा दिन लोग ककड़ियां लेकर आते हैं। हर व्यक्ति अपनी लाई ककड़ी पर कागज चिपकाकर अपना नाम, उम्र व व्याधि लिख देता है। फिर मंदिर में विशेष मंत्रोच्चार के बीच इस ककड़ी को शरीर के प्रभावित भाग पर रगड़ा जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से शरीर की व्याधि ककड़ी में चली जाती है। बाद में इस ककड़ी को जमीन में गाड़ दिया जाता है।
जापान की बात चली है, तो यह भी जान लें कि वहां 'कप्पा" नामक नन्हे, शरारती पिशाचों का अस्तित्व माना जाता है। ये दस साल के बच्चे के बराबर होते हैं, पानी में रहते हैं, इनका रंग हरा-पीला होता है, त्वचा कछुए के खोल के समान होती है और सिर पर कटोरे नुमा गड्ढा होता है, जिसमें पानी भरा रहता है। इनकी तिलस्मी शक्तियां तभी तक इनका साथ देती हैं, जब कि इनके सिर पर यह पानी सवार रहे। इसलिए सलाह दी जाती है कि यदि कप्पा से सामना हो जाए, तो उसे किसी भी बहाने झुकने पर मजबूर किया जाए, जिससे कि उसके सिर के कटोरे में भरा पानी ढुल जाए और उसकी शक्तियां जाती रहें। मगर कप्पा को सिर झुकाने के लिए मजबूर करने में काफी दिमागी मशक्कत करनी पड़ सकती है। तो एक आसान रास्ता भी सुझाया गया है। वह यह कि कप्पा महाशय को ककड़ी भेंट की जाए। उन्हें ककड़ी बेहद पसंद है और इसे पाने पर वे प्रसन्न् होे जाते हैं व आपका नुकसान नहीं करते।
इंडोनेशिया में स्वर्णिम ककड़ी की कहानी कही जाती है। इसमें एक निसंतान दंपति को एक राक्षस से बेटी का वरदान मिलता है मगर एक शर्त पर कि जब बेटी 17 साल की हो जाएगी, तो वह उसे अपने साथ ले जाएगा। पति-पत्नी राजी हो जाते हैं। राक्षस उन्हें ककड़ी के बीज देकर घर के पीछे बोने को कहता है। पति-पत्नी ऐसा ही करते हैं। कुछ समय बाद वहां ककड़ी का पौधा उग आता है। एक दिन उसमें एक सुनहरे रंग की ककड़ी लगती है। वह सामान्य ककड़ियों से कहीं बड़ी व भारी होती है। उसके पक जाने पर पति-पत्नी उसे तोड़ लाते हैं और सावधानी से काटते हैं। ककड़ी के भीतर से बच्ची प्राप्त होती है। दंपति की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वे उसका नाम तिमुन मास यानी सुनहरी ककड़ी रखते हैं और उस पर अपनी ममता लुटाते हैं।
देखते ही देखते 17 साल बीत जाते हैं। राक्षस लड़की को ले जाने आ धमकता है। मगर माता-पिता उसे अपने से दूर नहीं करना चाहते। पिता उसे एक थैला देकर पिछले दरवाजे से भाग निकलने को कहते हैं। राक्षस समझ जाता है कि उसके साथ धोखा हो रहा है। वह लड़की के पीछे भागता है। लड़की थैले में से नमक निकालकर पीछे फेंकती है, तो उससे समंदर बन जाता है। मगर राक्षस समंदर को पार कर फिर उसके पीछे हो लेता है। तब वह थैले में से मिर्ची निकालकर फेंकती है। मिर्ची ऊंचे, कंटीले पेड़ों वाले जंगल का रूप ले लेती है। राक्षस उसे भी पार कर जाता है। अब लड़की थैले में से ककड़ी के बीज निकालकर फेंकती है। ये ककड़ी के खेत का रूप ले लेते हैं। थका-हारा राक्षस ककड़ी खाने बैठ जाता है व फिर सो जाता है। मगर कुछ देर बाद वह फिर दौड़ते हुए लड़की के पीछे हो लेता है। अब लड़की थैले में से झींगे की चटनी निकालकर फेंकती है। यह दलदल का रूप ले लेता है और राक्षस उसमें डूब मरता है। लड़की माता-पिता के पास लौट आती है और सब खुशी-खुशी रहने लगते हैं।

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