Sunday 1 July 2018

जिसके बिना अधूरा है देवताओं का अस्तित्व


सोने को सदा चुनौती देती आई चांदी की कीमत उसकी प्रतीकात्मकता व धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व में निहित है। इसके बिना तो देवी-देवताओं का अस्तित्व भी अधूरा माना गया है।
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अफगानिस्तान की एक बड़ी प्यारी-सी लोककथा है। एक गरीब किसान जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी तंगहाली से मुक्त नहीं हो पा रहा था। वह कल्पना किया करता था कि काश किसी दिन उसका घर धन-दौलत से भर जाए! एक दिन वह खेत में काम कर रहा था कि अचानक कंटीली झाड़ियों में उसके कपड़े फंसकर फट गए। उसने यह सोचकर झाड़ी उखाड़ना शुरू की कि कहीं दोबारा इसकी वजह से किसी के कपड़े न फट जाएं। जब झाड़ियों की जड़ों के साथ कुछ मिट्टी भी उखड़ आई, तो उसने देखा कि नीचे एक बड़ा-सा मर्तबान दफन है। मर्तबान निकालकर व खोलकर देखा, तो वह दंग रह गया। उसमें चांदी के सिक्के भरे पड़े थे। उसने सोचा, 'मैंने धन-दौलत चाही तो थी लेकिन अपने घर में। मैं कैसे मान लूं कि यह दौलत मेरे ही लिए है!" यह सोचकर वह मर्तबान वापस वहीं गाड़कर घर चला आया। बीवी को बताया, तो वह आग-बबूला हो गई कि कैसा अहमक है, हाथ लगी दौलत को घर लाने से इनकार कर रहा है! रात को वह पड़ोसी के पास गई और उसे खेत में दफन खजाने के बारे में बताते हुए कहा कि मेरा शौहर तो उसे ला नहीं रहा, तुम जाकर ले आओ और आधा खजाना मेरे साथ बांट लो।
पड़ोसी तुरंत खेत की ओर लपका। उसे वह मर्तबान मिल भी गया मगर जैसे ही उसने उसे खोलकर देखा, तो पाया कि वह जहरीले सांपों से भरा है। उसने तुरंत मर्तबान का ढक्कन लगा दिया और सोचने लगा कि पड़ोसन मेरी जान की दुश्मन है, तभी मुझे इस लालच में फंसाया। उसे सबक सिखाने के इरादे से वह मर्तबान उठा लाया और किसान के घर की छत पर चढ़कर उसकी चिमनी में मर्तबान खाली कर दिया। वह यह सोचकर संतुष्ट था कि जहरीले सांप किसान पति-पत्नी का काम तमाम कर देंगे। मगर अगली सुबह जब किसान की नींद खुली, तो उसने देखा कि उसका घर चांदी के सिक्कों से भर गया है- ठीक वैसे ही, जैसे कि उसने इच्छा की थी...
गौर करें, एक भोले, गरीब किसान को मालामाल होते दिखाने के लिए यहां सोना नहीं, चांदी को माध्यम बताया गया है। धातु जगत में धन-दौलत की चरम सीमा का प्रतीक होना सोने का एकाधिकार नहीं, इसमें चांदी की भी भागीदारी है। वैसे सोने के साम्राज्य के आगे चांदी की सल्तनत भी हमेशा पूरे ठस्से से खड़ी रहती ही आई है। प्राचीन मिस्र में तो कहा गया था कि देवी-देवताओं के शरीर का मांस सोने का और अस्थियां चांदी की होती हैं। यानी देवी-देवताओं के अस्तित्व के लिए भी सोने के साथ-साथ चांदी का होना अनिवार्य है।
अपने रंग-रूप के कारण अनेक स्थानों पर चांदी का संबंध चंद्रमा से जोड़ा गया। साथ ही, यह कई चीजों की प्रतीक भी रही है। इसका उपयोग आभूषण बनाने व सिक्के ढालने में तो होता ही रहा है मगर इसका वास्तविक मूल्य इससे कहीं बढ़कर होता आया है। वजह है, इससे जुड़ी प्रतीकात्मकता और धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व। अनेक स्थानों पर इसे प्रेम, सत्यनिष्ठा, विश्वास व बुद्धिमत्ता के प्रतीक के तौर पर किसी को भेंट करने की परंपरा रही है। लिथुएनिया में विवाह में आने वाले मेहमान चांदी के सिक्के लेकर आते हैं। जब नृत्य शुरू होता है, तो सभी मेहमान अपने-अपने सिक्के नृत्य स्थल पर बिखेर देते हैं। बाद में इन सिक्कों को एक पात्र में इकट्ठा कर दिया जाता है और इनमें एक खास सिक्का मिला दिया जाता है, जिस पर वर-वधु के नामों के पहले अक्षर दर्ज होते हैं। अब मेहमानों से कहा जाता है कि वे बारी-बारी से पात्र में से एक सिक्का निकालें। जिस मेहमान के हाथ वर-वधु के नाम वाला विशेष सिक्का आता है, उसे वर या वधु के साथ नृत्य करने का मौका मिलता है।

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