Sunday 9 September 2018

पत्थर पर दर्ज चेतावनियां


पुरातन शिलालेख केवल राजे-महाराजों के गुणगान या नियम-कायदे गिनाने तक सीमित नहीं थे। कहीं-कहीं ये प्राकृतिक आपदा से बचाने वाले संकेतकों का भी काम करते आए हैं।
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हाल ही में योरप में पड़ी भीषण गर्मी के चलते जब कई नदियों का जलस्तर काफी नीचे चला गया, तो कुछ अनोखे पुरातन शिलालेख प्रकट हुए। इन पर लिखी इबारत एक प्रकार से लोगों को आगाह करती है कि अब सूखे का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल यह अतीत में पड़े सूखे के दौरान पत्थरों पर दर्ज चेतावनियां हैं। जिस प्रकार आज हम नदियों में 'खतरे का निशान" पाते हैं, जिसके ऊपर पानी आने से बाढ़ का खतरा होता है, उसी प्रकार ये शिलालेख जताते थे कि इस स्तर के नीचे पानी जाने से सूखे का खतरा रहेगा। यह तब की बात है, जब योरपीय समाज बस इतना अन्ना उगा लेता था कि जीवन निर्वाह हो जाए। ऐसे में सूखा पड़ने पर जीवन संकट में पड़ जाता था। इसलिए उस दौर के लोग आने वाली पीढ़ियों के लिए सूखे की पूर्व चेतावनी के तौर पर ये शिलालेख छोड़ गए। इन्हें सूखे के पत्थर या भूख के पत्थर भी कहा जाता है क्योंकि इनके प्रकट होने पर भूख का खतरा मंडराने लगता था।
इन शिलालेखों पर चेतावनी अलग-अलग अंदाज में लिखी गई है। मसलन, जर्मनी व चेक गणराज्य की सीमा पर पाए गए ऐसे ही एक शिलालेख पर लिखा है, 'जब तुम मुझे देखो, तो रोओ।" संदेश स्पष्ट है कि जब नदी का पानी इतना नीचे चला जाए कि यह शिलालेख दिखने लगे, तो संकट आसन्ना है। ऐसे कुछ शिलालेखों पर वे सन् भी अंकित हैं, जब-जब जल स्तर नीचे गया और ये प्रकट हुए थे। कुछ पर लिखने वालों के हस्ताक्षर भी हैं। आज योरप इतना संपन्ना हो चुका है कि एकाध साल के सूखे से उसकी अर्थव्यवस्था पर भले ही थोड़ा फर्क पड़े लेकिन जीवन-मृत्यु का मामला नहीं बनता। इसलिए अब जब भी ये शिलालेख प्रकट होते हैं, तो एक प्रकार से पर्यटकों के लिए आकर्षण भर रहते हैं। ये जताते हैं कि बीते दौर में पत्थरों पर दर्ज शब्द केवल किसी राजा का महिमागान ही नहीं करते थे या राजसी अथवा धार्मिक नियम-कायदों की सूची ही नहीं दर्शाते थे। ये आम जन की जीवन रक्षा के लिए महत्वपूर्ण संकेतक का काम भी करते थे। साथ ही अतीत में आई प्राकृतिक विपदा के स्मारक भी बनते थे।
उधर जापान में समुद्रतट से लगे इलाकों में जगह-जगह पर सुनामी संबंधी चेतावनियां देने वाले शिलालेख खड़े मिलते हैं। इन पर कुछ इस प्रकार की इबारत लिखी होती है- 'भीषण सुनामियों को याद करो। इस बिंदु से निचले स्तर पर अपने मकान मत बनाओ।" जापान भूकंप प्रवण क्षेत्र है और कभी-कभी इन भूकंपों के कारण यहां सुनामी भी आती है। ऐसे में समुद्र की कातिल लहरों से बचने के लिए ऊंचाई वाले स्थान पर चले जाना ही बचाव का उपाय होता है। समझदारी इसी में है कि एक निश्चित स्तर से अधिक ऊंचाई पर ही लोग बसें। ये 'सुनामी पत्थर" बताते हैं कि अमुक ऊंचाई से नीचे सुनामी का खतरा रहेगा, इसलिए इसके नीचे बसाहट न हो।
पत्थर पर दर्ज ये चेतावनियां सदियों पुरानी हैं मगर आज भी अपनी जगह पर मुस्तैदी से डटी हैं। ये जीवन की नश्वरता व प्रकृति के सर्वशक्तिमान होने का आभास लगातार कराती हैं। साथ ही पूर्वजों में मौजूद, आने वाली पीढ़ियों के कुशलक्षेम की चिंता को भी दर्शाती हैं।

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