Sunday 30 December 2018

जिनके पांव जमीं पर नहीं पड़ते...!


धरती पर पांव रखे रहना यदि मनुष्य होने की निशानी है, तो देवता माना जाने वाला राजा जमीन पर कैसे पैर रखे...? और यदि धरती से ही शक्ति प्राप्त हो, तो भला कोई इसके स्पर्श से दूर क्यों रहना चाहे...? धरती और इंसान के बीच बड़ा अनोखा संबंध है।
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प्रशांत महासागर के छोटे-से देश टोंगा में राजा को अर्द्ध दैवीय दर्जा प्राप्त रहा है। यूं तो अनेक देशों में राजा को दैवीय शक्तियों से लैस, ईश्वर तुल्य या फिर साक्षात ईश्वर मानने का रिवाज रहा है। इसके साथ ही उन्हें भांति-भांति के विशेषाधिकारों से लैस किया जाता रहा है। टोंगा के राजा को चूंकि मनुष्य से ऊंचा दर्जा दिया गया है, सो माना जाता है कि उनके पैर साधारण मनुष्यों की भांति धरती को स्पर्श नहीं करने चाहिए। टोंगा स्थित प्राचीन तलाईतुमु किले के बीचो-बीच एक ऊंचा मंच बना हुआ है, जिस पर राजा विशेष अवसरों पर कुछ खास अनुष्ठान किया करते थे। इसके आसपास जमीन से ऊपर उठे हुए पैदल रास्ते बनाए गए हैं, जिन पर चलने का अधिकार केवल राजा को था।
यह मजेदार है कि जिस धरती से जीवन निकला, राजा को उससे भी ऊपर मान लिया जाए। गोया राजा के पांव जमीन पर टिकना उसकी शान के खिलाफ हो! या फिर शायद इसके जरिए यह दिखाया जाता हो कि देव-तुल्य राजा सारे जमीनी पचड़ों से ऊपर है। जमीन या कहें धरती से मानव का खास रिश्ता है। वह धरती पर ही जन्मा, उसी पर अपना जीवन गुजारता है। धरती को मां का दर्जा अनेक संस्कृतियों में दिया गया है। इसके साथ ही इंसान जमीन को लेकर कई तरह के अनुष्ठान विभिन्ना अवसरों पर करता आया है और यह सिलसिला आज भी कायम है। यह तो हुआ मनुष्य व धरती के रिश्ते का आध्यात्मिक पहलू। भौतिक पहलू की बात करें, तो जमीन के मालिकाना हक को लेकर इंसान सदियों से मरने-मारने पर उतारू होता आया है। न जाने कितने युद्ध इसी आधिपत्य के लिए लड़े गए। राजाओं के लिए यह आम था कि वे जमीन के साथ-साथ उस पर मौजूद हर चीज पर अपना स्वामित्व मानकर चलते थे। मगर जब राजा पर 'ईश्वरत्व" या 'देवत्व" सवार हो, तो वह खुद को इसी धरती से ऊपर भी मान सकता है। आखिर ईश्वर और देवी-देवताओं को भी पृथ्वीवासी नहीं माना गया है। राजा आकाश में स्थित किसी लोक में भले न रह पाए, धरती पर पैर न रखकर खुद को धरतीवासियों से अलग तो जता ही सकता है!
उधर इंडोनेशिया के बाली द्वीप में लोग मानते हैं कि मनुष्य दैवी लोक से जन्म लेकर धरती पर आता है। जन्म के बाद पहले 105 दिन तक उसमें देवत्व के अंश मौजूद रहते हैं। इसीलिए शिशु के 105 दिन का होने तक उसके पैर जमीन को छूने नहीं दिए जाते। इस दौरान उसे देवता-तुल्य माना जाता है।
ग्रीक मान्यताओं में एंटियस को समुद्र व धरती की संतान माना गया है। ऐसा कहा जाता था कि धरतीपुत्र होने के नाते वह धरती, यानी अपनी माता से ही शक्ति पाता था। वह अपने सामने से गुजरने वाले लोगों को दंगल की चुनौती देता था। चूंकि उसे धरती मां से लगातार शक्ति प्राप्त होती रहती थी, सो उसे हराना असंभव था। वह अपने प्रतिद्वंद्वी को न केवल परास्त कर देता था, बल्कि उसके प्राण भी हर लेता था। अपने द्वारा मारे गए लोगों की खोपड़ियों से उसने अपने पिता का मंदिर भी बना डाला था। एक दिन उसने अपने इलाके से गुजर रहे योद्धा हेराक्लिज को दंगल के लिए ललकारा। दंगल शुरू हुआ और हेराक्लिज ने थोड़ी ही देर में जान लिया कि एंटियस को जमीन पर पटककर चित्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उसकी शक्ति का तो स्रोत ही धरती है। सो हेराक्लिज ने एंटियस को अपने बलशाली बाजुओं में भींच लिया और उसे जमीन से ऊपर उठाकर, तब तक भींचे रखा, जब तक कि उसने दम नहीं तोड़ दिया। धरती पर पांव न पड़ना एंटियस को भारी पड़ गया।

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